जीवन का उसकी परिपूर्णता में स्वाद लेना चाहिए

27 Dec 2025 21:46:57
 

Osho 
 
सूरदास की कहानी बड़ी प्रतीकात्मक है. मैं नहीं जानता सूरदास ने ऐसा किया हाे. किया हाे ताे वह आदमी बेकार. दाे काैड़ी की कीमत का नहीं. न किया हाे ताे ही कुछ सूरदास के पदाें में अर्थ हाे सकता है. कहते हैं कि एक सुंदर स्त्री काे देखकर उन्हाेंने आंखें ाेड़ लीं.न रहेंगी आंखें, न साैंदर्य दिखाई पड़ेगा.यही ताे गणित है आत्महत्या करनेवाले का. न रहेगा जीवन, न काेई बेचैनी हाेगी. लेकिन यह काेई उपलब्धि है? न रहेगा मरीज, न बीमारी बचेगी. अस्पतालाें में तुम बड़ी गलती कर रहे हाे, मरीजाें काे मार डालाे! जब तक वे हैं तब तक बीमारी का डर.यही तुम्हारे साधु-संत हजाराें साल से कर रहे हैं.उनसे ज्यादा जीवन में जहर डालने वाले लाेग खाेजना कठिन है. वे ही पाइजनस हैं. उन्हाेंने सब विषाक्त कर दिया है. न तुम्हें स्वाद लेने देते ठीक से- उसमें नीम डाल दी.
 
न तुम्हें गंध लेने देते ठीक से-उसमें पाप डाल दिया है. न तुम्हें स्पर्श करने देते हैं ठीक से. क्याेंकि स्पर्श? वही ताे सब नरक का द्वार है. न तुम्हें साैंदर्य काे देखने देते हैं. उन्हाेंने सभी सूक्ष्म संवेदनाओं काे मिटा डाला है.नहीं, मैं तुमसे यह नहीं कहूंगा.मैं जीवन का पक्षपाती हूं, आत्महत्या का नहीं. मैं तुम्हें मरने काे नहीं कहूंगा. और किसी ज्ञानी ने कभी नहीं कहा है. इसे तुम ज्ञानी की परीक्षा समझ लेना. यह कसाैटी है. ज्ञानी तुम्हें अमृत देगा, जहर नहीं. तुम्हारे पास जाे है वह नहीं छीनेगा.तुम्हारे पास जाे नहीं है वह तुम्हें देगा.निश्चित ही जब तुम्हारे पास और विराट हाेगा ताे क्षुद्र छूटता जायेगा.मैं तुम्हें इतना स्वाद दूंगा कि भाेजन की जरूरत न रह जाये. मैं तुम्हें इतनी गंध देना चाहता हूं कि तुम इतने सूक्ष्म हाे जाओ गंध में, कि सारा जगत एक गंध का प्रवाह हाे जाये.
 
यहां तुम उठाे, बैठाे, डाेलाे ताे जगत की सूक्ष्मतम गंध तुम्हें पकड़ ले. मैं तुम्हारे कानाें काे बहरा नहीं करना चाहता, उन्हें ऐसी ध्वनि चाहता हूं देना कि इस जगत में छिपा हुआ जाे परम निनाद है, ओंकार -वह तुम्हें सुनाई पड़ जाये.चाराें तरफ वह निनाद चल रहा है. हर हवा के झाेंके में उसी की खबर है. हर ूल के खिलने में उसी का साैंदर्य है. हर आंख से वही झांक रहा है. और जब तुम किसी काे स्पर्श करते हाे, ताे तुमने उसी काे छुआ है. तुम जानाे या न जानाे, यह दूसरी बात है. तुम्हारी सारी इंदिंयां इतनी सतेज हाे जाये कि पदार्थ के भीतर छिपे परमात्मा काे तुम अनुभव कर सकाे.
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