स्ट्रोक के बाद जीवन बच जाना चिकित्सा विज्ञान की बड़ी सफलता है, लेकिन उसके बाद शुरू होने वाला लगातार दर्द कई मरीजों के लिए एक नई लड़ाई बन जाता है. पोस्ट-स्ट्रोक पेन न केवल शरीर को, बल्कि मन और आत्मवेिशास को भी तोड़ देता है. अक्सर मरीजों को यह कहकर चुप करा दिया जाता है कि अब इसे सहना ही पड़ेगा. जबकि आधुनिक पेन मैनेजमेंट इस सोच को पूरी तरह बदल चुका है. यह लेख पोस्ट-स्ट्रोक दर्द के कारणों, प्रकारों और आधुनिक उपचारों पर रोशनी डालता है और यह भरोसा भी देता है कि उम्मीद अब भी जिंदा है. दुर्भाग्य से, बहुत से मरीजों और उनके परिवारों को यह सुनने को मिलता है. यह स्ट्रोक का असर है, अब आपको यह दर्द सहना ही पड़ेगा. यह कथन न केवल निराशाजनक है, बल्कि हर मरीज के लिए चिकित्सकीय रूप से सही भी नहीं है.
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डॉ. प्रिया राठी
MBBS, MD, DNB, FCPM, FIA PM
पेन व स्पाइन स्पेशलिस्ट, पुणे
मो.: 9823743726
पोस्ट-स्ट्रोक पेन क्यों होता है?
स्ट्रोक दिमाग के उन हिस्सों को प्रभावित करता है जो मांसपेशियों की गतिविधि, संवेदना और दर्द के संकेतों को नियंत्रित करते हैं. इसी कारण पोस्ट-स्ट्रोक पेन कई रूपों में सामने आता है.
1. स्पास्टिसिटी-संबंधित दर्द
स्ट्रोक के बाद दिमाग और मांसपेशियों के बीच का संतुलन बिगड़ जाता है. मांसपेशियों को ढीला होने का सही संदेश नहीं मिल पाता, जिससे वे लगातार सिकुड़ी रहती हैं. इसके परिणामस्वरूप हाथ या पैर अकड़े रहते हैं.हरकत करने पर खिंचाव और दर्द होता है. कपड़े पहनना, हाथ उठाना या चलना कठिन हो जाता है. यह दर्द मांसपेशीय अकड़न से जुड़ा होता है और सही इलाज से इसमें स्पष्ट सुधार संभव है.
2. न्यूरोपैथिक पेन
जब स्ट्रोक के कारण नसों के संकेत प्रभावित होते हैं, तब मरीज को जलन,चुभन, बिजली के झटके जैसा दर्द, सुन्नता या असामान्य संवेदनाएं महसूस हो सकती हैं. चूँकि यह दर्द सामान्य पेनकिलर से ठीक नहीं होता, इसलिए इसे अक्सर लाइलाज समझ लिया जाता है, जबकि वास्तव में विशेष प्रकार की दवाओं से इसमें राहत संभव है.
3. सेंट्रल पोस्ट-स्ट्रोक पेन
यह पोस्ट-स्ट्रोक पेन का सबसे जटिल प्रकार है. इसमें समस्या नस या मांसपेशी में नहीं, बल्कि दिमाग के दर्द-नियंत्रण केंद्र में होती है.इस स्थिति में हल्का स्पर्श भी असहनीय दर्द पैदा कर सकता है. दर्द की कोई स्पष्ट बाहरी वजह नहीं दिखाई देती है.दर्द लंबे समय तक बना रह सकता है.यही वह अवस्था है जिसमें मरीजों द्वारा सबसे अधिक कहा जाता है कि अब यह दर्द सहना ही पड़ेगा.जबकि आधुनिक पेन मैनेजमेंट इस सोच को पूरी तरह बदल चुका है.
एक मरीज की कहानी
45 वर्षीय एक महिला स्ट्रोक के बाद कई महीनों तक बेहोशी की अवस्था में रही और सौभाग्यवश जीवित बची. इसके बाद उसे शरीर के एक हिस्से में लगातार जलन और दर्द रहने लगा. कई जगह उपचार के दौरान उसे बताया गया कि यह सेंट्रल पोस्ट-स्ट्रोक पेन है और उसे इसके साथ ही जीना होगा. जब समस्या को पेन मैनेजमेंट के दृष्टिकोण से समझा गया और अल्ट्रासाउंड-गाइडेड ड्राई नीडलिंग जैसे लक्षित उपचार किए गए, तो दर्द में स्पष्ट कमी आई. आज वह न केवल दैनिक कार्य कर पा रही है, बल्कि जीवन को फिर से उद्देश्य के साथ जी रही है.
पोस्ट-स्ट्रोक पेन के आधुनिक उपचार
आज पोस्ट-स्ट्रोक पेन का उपचार केवल दवाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि दर्द के प्रकार के अनुसार किया जाता है
अल्ट्रासाउंड-गाइडेड ड्राई नीडलिंग
स्पास्टिसिटी और मांसपेशीय दर्द में एक सटीक और प्रभावी तकनीक. नसों के दर्द में भी उपयोगी.
बोटॉक्स इंजेक्शनग
गंभीर मांसपेशीय अकड़न में मांसपेशियों को रिलैक्स करने के लिए अत्यंत प्रभावी उपचार. सेंट्रल पेन के लिए विशेष दवाएं जो दिमाग में दर्द के संकेतों को नियंत्रित करती हैं. पेन मैनेजमेंट और फिजियोथेरेपी का संयुक्त दृष्टिकोण-जिससे मूवमेंट, कार्यक्षमता और आत्मनिर्भरता में सुधार होता है.
सबसे जशरी संदेश
अब यह दर्द सहना ही पड़ेगा. यह हर पोस्ट-स्ट्रोक मरीज के लिए सच नहीं है. दर्द के कारण को सही ढंग से पहचानकर और समय पर विशेषज्ञ से इलाज लेकर दर्द कम किया जा सकता है.पुनर्वास प्रक्रिया बेहतर होती है और जीवन की गुणवत्ता में वास्तविक सुधार संभव है.
निष्कर्ष
पोस्ट-स्ट्रोक पेन को नियति मानकर स्वीकार करना मरीज के साथ अन्याय है. आज चिकित्सा विज्ञान के पास ऐसे साधन हैं जो मरीज को केवल जीवित ही नहीं, बल्कि सम्मान और बेहतर गुणवत्ता के साथ जीवन जीने में मदद कर सकते हैं. दर्द सहना मजबूरी नहीं है सही इलाज से राहत संभव है.