मंदिर तुम बनाओ, परमात्मा ताे खुद आ जाता है

03 Dec 2025 22:31:43
 
 

Osho 
 
एक सूफी कहानी है, एक सम्राट एक फकीर का बहुत सम्मान करता था.लेकिन जब भी सम्राट मिलना चाहता, फकीर कहता, मैं खुद ही आता हूं, आप परेशान न हाें. और फकीर सम्राट के महल पहुंच जाता.सम्राट काे जिज्ञासा लगी कि कभी फकीर मुझे अपने झाेपड़े तक नहीं आने देता, राज क्या है! एक दिन बिना बताए सम्राट फकीर के झाेपड़े पर पहुंच गया.फकीर ताे खेत में काम करने गया था.उसकी पत्नी थी, उसने कहा, बैठें! विराजें! मैं बुला लाती हूं. दाैडूंगी, जल्दी ही बुला लाऊंगी, खेत ज्यादा दूर नहीं है.लेकिन सम्राट ने कहा, मैं यहीं टहलता हूं, तू बुला ला.फकीर की पत्नी ने साेचा कि शायद खाली जगह में सम्राट बैठ नहीं सकता, इसलिए उसके पास जाे कुछ भी था, फटी-पुरानी चटाई, वही उसने बिछा दी.
 
कहा, आप बैठें ताे! लेकिन सम्राट ने चटाई की तरफ एक दफा देखा और कहा कि मैं टहलता हूंतू बुला ला.साेचा उसने कि शायद चटाई याेग्य नहीं सम्राट के. ताे उसके पास जाे शाल थी- किसी ने फकीर काे भेंट की थी- उसे बिछा दिया चटाई पर. कहा, बैठें! लेकिन सम्राट ने कहा, मैं टहलूंगा, तू जाकर अपने पति काे बुला ला, समय खराब न कर.फकीर की पत्नी गई. जब वे दाेनाें वापस आ रहे थे ताे राह में उसने पूछा कि सम्राट बहुत अजीब आदमी है! अपने पास जाे प्यारी से प्यारी चटाई थी, वह मैंने बिछा दी. फिर तुम्हारी जाे शाल थी, जिसे तुम कभी-कभी सूफियाें के उत्सव में ओढ़ कर जाते थे, वह भी मैंने बिछा दी; उससे ज्यादा कीमती ताे हमारे पास कुछ है नहीं. लेकिन सम्राट है कि टहल ही रहा है! वह कहता है, मैं बैठूंगा नहीं, टहलूंगा.
 
फकीर हंसने लगा. उसने कहा, पागल, सम्राट काे बिठाना हाे ताे स्वर्ण-सिंहासन चाहिए. और इसीलिए ताे मैं उसे बार-बार कहता था, मैं खुद ही आता हूं. हमारे घर में उसे बिठाने याेग्य स्थान नहीं है.अगर सम्राट के लिए स्वर्ण-सिंहासन चाहिए ताे परमात्मा के लिए भी काेई सिंहासन भीतर बनाओ. स्वर्ण-सिंहासन परमात्मा के काम नहीं आएगा. चेतना का सिंहासन बनाओ. समाधि का सिंहासन बनाओ.बुद्धत्व का सिंहासन बनाओ. ताे फिर तुम्हारा निमंत्रण स्वीकार है. तत्क्षण स्वीकार हाे जाता है! तुम भेजाे भी नहीं निमंत्रण, ताे भी परमात्मा आकर स्वयं द्वार पर दस्तक दे देता है. तुम्हारी तैयारी पूरी हुई कि परमात्मा प्रकट हाेता है.
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