ध्यान इस देश का दुनिया काे सबसे बड़ा ताेहफा

04 Dec 2025 22:50:43
 
 
Osho
प्रश्न :इस देश में ध्यान काे गाैरीशंकर की ऊंचाई मिली. शिव, पतंजलि, महावीर, बुद्ध, गाेरख जैसी अप्रतिम प्रतिभाएं साकार हुई. फिर भी किस कारण से ध्यान के प्रति आकर्षण कम हाेता गया? मैं अभीअभी मेंहदी हसन की एक गजल सुन रहा था.काेंपलें फिर फूट आईं शाख पर, कहना उसे न वाे समझा है, न समझेगा, मगर कहना उसे...काेंपलें फिर शाख पर फूट आईं.
 
इस देश में ध्यान कभी मरा नहीं.कभी भूमि के ऊपर और, कभी भूमि के भीतर, मगर उसकी गंगा बहती रही सतत, सनातन, आज अभी बहती है, कल भी बहेगी और यही एक आशा है मनुष्य की.क्याेंकि जिस दिन ध्यान मर जाएगा, उस दिन आदमी भी मर जाएगा. ध्यान में ही आदमी के प्राण हैं. चाहे तुम्हीं श्वासाें के भीतर जाे छिपा है और तुम्हारी धड़कनाें के भीतर जाे छिपा है, तुम जाे हाे, वह ध्यान के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं. लेकिन प्रश्न महत्वपूर्ण है.इस देश ने जगत काे अगर कुछ दिया है, इसका अगर काेई अनुदान है ताे वह सिर्फ ध्यान है. फिर चाहे पतंजलि में चाहे महावीर में, चाहे बुद्ध में, चाहे कबीर में, चाहे नानक मेंनाम बदलते रहे हाेंगे, लेकिन दान नहीं बदला. अलगअलग लाेगाें से, अलग-अलग आवाज़ाें में एक ही पुकार, एक ही आवाज हम जगत काे देते रहे हैं, और हैं और वह ध्यान की.
 
इसलिए स्वभावतः यह प्रश्न उठता है कि गाैरीशंकर की ऊंचाइयाें काे लेने के बाद, गाैतम बुद्ध की ऊंचाइयाें काे पहचान लेने के बाद, फिर ध्यान के प्रति इतनी अरुचि भारत के जनमानस में क्याें फैल गई? देखने में विराेधाभास मालूम हाेता है. लेकिन मनुष्य का मनाेविज्ञान ऐसा है. जाे चीज पा ली जाती है, साधारण मनुष्य के मन में उसकी चुनाैती समाप्त हाे जाती है. अहंकार काे चुनाैती उसमें, जाे पाया नहीं जाता, जिसे पाना बड़ा मुश्किल है.समझना, थाेड़ा बारीक है. हमने देखे महावीर, हमने देखे बुद्ध, हमने देखे पार्श्वनाथ, कबीर और नानक और फरीद और हजाराें फकी.र् जनमानस में एक बात अचेतन में प्रविष्ट हाे गई कि यह ध्यान ताे कुछ ऐसी चीज है, काेई भी पा लेता है. इसे पा लेना काेई बहुत बड़ी बात नहीं है. यह फरीद ने पा ली, यह कबीर ने, जुलाहे ने पा ली, यह रैदास चर्मकार ने पा ली.अहंकार काे चुनाैती मिट गई.
 
धन मुश्किल मालूम पड़ता है, ध्यान आसान मालूम पड़ने लगा. लाेग धन के पीछे दाैड़ने लगे, लाेग पद के पीछे दाैड़ने लगे, लाेग प्रतिष्ठा के पीछे दाैड़ने लगे, जाे मुश्किल है उसमें चुनाैती है, उसमें अहंकार काे भरने की क्षमता है. जाे सहज है, जाे सुगम है अहंकार के लिए, उसमें काेई आकर्षण नहीं रह जाता. अनेक लाेगाें के ध्यान के जगमगाते ज्याेतिर्मय व्यक्तित्वाें ने आम जनता के मन से ध्यान की चुनाैती छीन ली. और यूं लगा कि आज नहीं कल पा लेंगे, और कल नहीं ताे अगले जन्म में पा लेंगे, ऐसी काेई जल्दी नहीं है. जीवन के क्षणभंगुर सुख पता नहीं कल मिलें न मिलें; जवानी आज है, कल भी हाेगी, इसका काेई भराेसा नहीं. भराेसा ताे इसी का है कि कल नहीं हाेगा. ध्यान कल भी कर लाेगे ताे चलेगा. यह ताे जवानी, ये जाे जवानी की उठती हुई तरंगेंइन्हें ताे आज पूरा कर लाे. और ध्यान ताे उनकाे भी मिल जाता है जिनके पास कुछ भी नहीं.नग्न महावीर के पास तुमने ध्यान की ज्याेति देखी, जूते सीते हुए रैदास के पास हमने ध्यान की आभा देखी. लाेगाें के मन से ध्यान का आकर्षण जाता रहा.
Powered By Sangraha 9.0