तलाकशुदा मुस्लिम महिला विवाह के समय मिली संपत्ति पाने की हकदार, यह महत्वपूर्ण टिप्पणी बुधवार काे सुप्रीम काेर्ट ने किया. काेर्ट ने कलकत्ता हाईकाेर्ट के आदेश काे पलटते हुए ऐतिहसिक फैसला सुनाया है. सर्वाेच्च अदालत ने कहा- तलाकशुदा महिलामाता-पिता द्वारा मिला धन, साेना-चांदी, रिश्तेदाराें से मिले कीमती गिफ्ट पाने की हकदार है.पति द्वारा विवाह के समय या फिर विवाह के बाद दी गई रकम पर भी उसका हक है. काेर्ट ने कहा- ये सभी वस्तुएं महिलकी निजी संपत्ति मानी जाएगी. तलाक के बाद इन्हें लाैटाना अनिवार्य हाेगा.विस्तार से प्राप्त खबराें के अनुसार सुप्रीम काेर्ट ने स्पष्ट किया है कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला काे उसकी शादी के समय पिता द्वारा पति काे दिए गए नकद और साेने के गहने वापस लेने का अधिकार है.
यह अधिकार मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकाराें का संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत सुरक्षित है. इसी के साथ सुप्रीम काेर्ट ने जस्टिस संजय कराेल और जस्टिस एन काेटिश्वर सिंह की पीठ ने कलकत्ता हाईकाेर्ट का फैसला पलट दिया. हाईकाेर्ट ने तलाकशुदा महिला के उस दावे काे खारिज कर दिया था जिसमें उसने शादी के समय पति काे पिता द्वारा दिए गए 7 लाख रुपये और साेने के गहनाें (30 भाैरी) की मांग की थी. महिला की शादी 2005 में हुई थी. 2009 में अलगाव और 2011 में तलाक के बाद उसने 1986 अधिनियम की धारा 3 के तहत 17.67 लाख रुपये की वसूली की मांग की थी, जिसमें नकद और साेने के गहने शामिल थे.
हाईकाेर्ट ने दावा खारिज कर दिया था, क्याेंकि विवाह रजिस्टर (काजी) और महिला के पिता के बयान में मामूली असंगति पाई गई थी. सुप्रीम काेर्ट ने कहा कि विवाह रजिस्टर और काजी का बयान केवल संदेह के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता. काेर्ट ने स्पष्ट किया कि विवाह के समय दिए गए संपत्ति और गहने महिला के भविष्य की सुरक्षा के लिए हैं.सुप्रीम काेर्ट ने कहा कि 1986 अधिनियम की धारा 3 (1) (व) के तहत तलाकशुदा मुस्लिम महिला काे वह सब संपत्ति वापस लेने का अधिकार है जाे शादी से पहले, शादी के समय या शादी के बाद उसके रिश्तेदाराें, दाेस्ताें, पति या पति के रिश्तेदाराें द्वारा दी गई हाे. काेर्ट ने यह भी जाेड़ा कि यह कानून महिला की सम्मान और आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करता है और इसे अनुच्छेद 21 के तहत महिला के मानव अधिकार और आत्मनिर्णय के दृष्टिकाेण से देखा जाना चाहिए.