अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने जब टैरिफ बढ़ाया, ताे भारत ने जीएसटी सुधाराें के माध्यम से उसका भरपूर मुकाबला किया. बिहार चुनावाें में प्रवासी मजदूर, औद्याेगिकीकरण और राेजगार बड़ा मुद्दा था. भारी चुनावी जीत के बाद केंद्र सरकार ने पहले से पारित श्रम कानूनाें काे लागू करने का फैसला लिया है. श्रम सहिता में वेतन, औद्याेगिक संबंध, सामाजिक सुरक्षा औरर व्यावसायिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य संबंधी चार कानून हैं.दूसरे राष्ट्रीय आयाेन ने वर्ष 1999 की रिपाेर्ट में कहा था कि पुराने कानूनाें में इतनी जटिलता और विराेधाभास है कि सभी काे लागू करने पर 20 फीसदी कानूनी प्रावधानाें का उल्लंघन हाे सकता है. 29 माैजूदा श्रम कानूनाें काे मिलाकर चार नए कानून बनाने से 1,228 कानून घटकर 480, नियम 1,436 से घटकर 351 और रजिस्टराें की संख्या 84 से घटकर 8 हाे जाएगी.
रजिस्ट्रेशन के लिए सिर्फ एक कानून और 65 प्रावधानाें में अपराध के पहलू काे खत्म करना भी उद्याेग जगत के हित में हाेगा. कहा जा रहा है कि नए कानून से 40 कराेड़ श्रमिकाें और कामगाराें काे नियु्नित पत्र और न्यूनतम मजदूरी, महिलाओं काे बराबर वेतन, ग्रेज्युटी, फ्री मेडिकल चेकअप जैसी सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा मिलेगी. इससे पिछड़े और गरीब राज्याें मेंऔद्याेगिकीकरण बढ़ेगा और वहां से मजदूराें का पलायन भी कम हाेगा.वर्ष 2023-24 के लेबर सर्वे के अनुसार, कुल श्रमिकाें में सिर्फ 11 फीसदी ही 20 से ज्यादा श्रमिकाें वाले बड़े उद्याेगाें में काम करते हैं. ई-श्रम पाेर्टल में 30.48 कराेड़ कामगाराें का रजिस्ट्रेशन है, जिनमें लगभग 53 फीसदी कृषि क्षेत्र में हैं. अंतरराष्ट्रीय श्रमिक संगठन के अनुसार, भारत में हर 10 में से 9 श्रमिकाें का राेजगार अस्थायी हाेने से अर्थव्यवस्था के सामने बड़ी चुनाैती है. एनएचआरसी सर्वे के अनुसार, शाेषण और अनियमित काम के चलते असंगठित क्षेत्र के दाे-तिहाई कामगार बीमारी और अपमान झेलने काे मजबूर हैं.
द हिंदू रिपाेर्ट के अनुसार, मनरेगा के 26 कराेड़ जाॅब कार्ड हाेल्डराें में 41.1 फीसदी आधार भुगतान प्रणाली से नहीं जुड़ पाए हैं. इस वजह से 2.13कराेड़ लाेगाें का काम के बावजूद मजदूरी नहीं मिल पा रही. इन कानूनाें की सफलता की पहली कसाैटी यह हाेगी कि देश भर में मनरेगा कर्मियाें काे नियमित और न्यूनतम वेतन मिल सके.स्वतंत्रता आंदाेलन के दाैरान महात्मा गांधी ने बिहार में नील की खेती करने वाले निलहे मजदूराें की दुर्दशा की ओर दुनिया का ध्यान आकर्षित किया था. निलहे मजदूराें की तरह डिजिटल इकनाॅमी में गिग वर्कर्स या दिहाड़ी कामगाराें का शाेषण हाे रहा है. अमेजन, ओला, उबर, जाेमेटाे, डंजाे, स्विगी और बिन बास्केट जैसी कंपनियाें से जुड़े ड्राइवर, डिलीवरी बाॅय और कामगाराें काे गिन वर्कर कहा जाता है.नीति आयाेग की रिपाेर्ट के अनुसार वर्ष 2021 में भारत में 77 लाख गिग वर्कर्स थे, जिनकी संख्या 2029 तक बढ़कर 2.35 कराेड़ हाेने की संभावना है.
अमेजन के वेयरहाउस कामगाराें ने ब्लैक फ्रायडे हड़ताल करके ‘मेक अमेजन पे’ के बैनर तले सही भुगतान और काम के अच्छे वातावरण की मांग की थी. काम के अनियमित घंटाें और शाेषण की वजह से गिग वर्क से में महिलाओं की भागीदारी बहुत कम है. ड्राइवर और डिलीवरी बाॅय का जमकर शाेषण करने के बावजूद कंपनियां उन्हें न्यूनतम वेतन भी नहीं देना चाहती हैं. इंग्लैंड के राेजगार ट्रिब्यूनल ने 2016 में उबर के ड्राइवराें काे पूर्णकालिक कामगार का दर्जा दिया था. यूराेपीय संघ की काेर्ट ऑफ जस्टिस ने 2017 में कहा था कि उबर काे एग्रीगेटर के बजाय ट्रांसपाेर्ट सेवा के ताैर पर कानून का पालन करना चाहिए. सिंगापुर में गिरा वर्कर्स काे रिटायरमेंट बेनेफिट और इंडाेनेशिया में दुर्घटना, स्वास्थ्य और जीवन बीमा की सुविधा मिलती है.भारत में टेक कंपनियां आईडी कार्ड ब्लॅक करके गिरा कामगाराें काे मिनटाें में बर्खास्त कर देती हैं. गिग वर्कर्स की सुरक्षा के लिए सुप्रीम काेर्ट में 2020 में दायर याचिका पर चार साल तक जवाब नहीं मिलने पर जजाें ने केंद्र सरकार काे फटकार लगाई थी. जजाें के अनुसार, भारत अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का संस्थापक देश है, इसलिए गिग वर्कर्स काे एग्रीगेटर कंपनी से न्यूनतम वेतन, दुर्घटना, बीमा, ईएमआई, स्वास्थ्य और पीएफ जैसी कानूनी सुरक्षा मिलनी चाहिए.
जी-20 के सम्मेलन में गिग वर्कर्स काे सुरक्षा के लिए बयान जारी हुआ था. इन कानूनाें में गिग कामगाराें काे परिभाषित करने के साथ ही इन्हें सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाया गया है. टेक कंपनियाें काे भारत के सालाना कमाई का पांच फीसदी तक गिग वर्कर्स के कल्याण के लिए सुरक्षित करना पड़ेगा. आधार ल्निंड यूएएन से लाभ मिलने से फर्जीवाड़ा भी कम हाेगा.बजट भाषण के वित्त मंत्री ने कहा था कि ई-श्रम पाेर्टल काे मनरेगा, नॅशनल कॅरिअर सर्विस, स्किल इंडिया, प्रधानमंत्री आवास याेजना, श्रमयाेगी मानधन जैसे दूसरे पाेर्टल्स से जाेड़कर वन स्टाॅप सेंटर बनाया जाएगा. नए कानूनाें के साथ इसे लगाू किया जाए, ताे गिग वर्कर्स काे राहत मिलेगी. राजस्थान, कनाृटक और तेलंगाना में कांग्रेस की सरकाराें ने गिग वर्कर्स काे राहत देने के लिए कानून बनाने की प्रक्रिया शुरू की थी. गिग वर्कसे के कल्याण से जुड़े इन प्रगतिशील और समावेशी कानूनाें सुधाराें का सियासी विराेध ठीक नहीं हाेगा. देश के 18 राज्याें ने पांच साल पहले पारित श्रम कानूनाें के अनुसार नियम बना दिए हैं. अन्य राज्याें में नियम बनाने के साथ पूरे देश में इन्हें लागू करने के लिए विशेष फंड भी चाहिए. -विराग गुप्ता