अंतःकरण आत्मा नहीं है, इस भेद काे खूब खयाल रखना. हालांकि समाज की सारी शिक्षा इस भेद काे मिटाने की चेष्टा करती है. अंतःकरण यानी आत्मा, ऐसा शब्दकाेश कहेंगे, भाषाकार कहेंगे, व्याख्याता कहेंगे, पंडित-पुराेहित कहेंगे. लेकिन यह बात बुनियादी रूप से झूठ है. अंतःकरण सच पूछाे ताे अंतःकरण भी नहीं हाेता, आत्मा हाेनी ताे बहुत दूर. क्याेंकि अंतःकरण बाहर से पैदा किया जाता है, भीतर ताे हाेता ही नहीं. अंतःकरण ताे समाज पैदा करता है. यह ताे समाज की व्यवस्था है, व्यक्ति काे गुलाम बनाए रखने के लिए.जैसे समाज बाहर इंतजाम करता है पुलिस वाले का, और मजिस्ट्रेट का, अदालत का, कानून का, विधान का, ताकि तुम्हें बाहर से बांध ले, तुम बाहर के डर से कुछ भूल-चूक न कर सकाे. लेकिन आदमी हाेशियार है.तुम लाख कानून बनाओ, तुम लाख व्यवस्था बनाओ, हर व्यवस्था में से छिद्र निकाल लेगा.
आखिर आदमी ही ताे बनाएगा न कानून! ताे आदमी कानून से तरकीबें भी निकाल लेगा.आखिर सारे वकील करते ही क्या हैं! उनका काम ही क्या है! उनका काम ही यही है कि कानून से कानून के विपरीत जाने की व्यवस्था खाेजना. इसलिए तुम काेई भी मुकदमा लेकर वकील के पास जाओ, वह कहेगा, बेिफक्र रहाे; जीत निश्चित है. खर्च ताे बहुत हाेगा, मगर जीत निश्चित है.मुल्ला नसरुद्दीन वकील के पास गया था. सारा मामला अपना सुनाया. वकील ने कहा, बिलकुल मत घबड़ाओ. मामला ताे कठिन है, पैसा ताे खर्च हाेगा, मगर जीत निश्चित है.मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा कि आपकाे पक्का भराेसा है जीत निश्चित है? उस वकील ने कहा, छाती पर हाथ रख कर कहता हूं, परमात्मा काे गवाह रख कर कहता हूं कि जीत निश्चित है. जीवन भर हाे गया वकालत करते, इतना अनुभव नहीं मुझे? ऐसे कई मुकदमे जिता चुका हूं!
मुल्ला ताे उठ खड़ा हुआ, चलने लगा. ताे वकील ने कहा, कहां जा रहे हाे? मुल्ला ने कहा, ताे िफर बात खतम हाे गई. उसने कहा, ताे मुकदमा नहीं लड़ना है?मुल्ला ने कहा, मैंने तुम्हें अपने विराेधी के तरफ का मामला बताया था. तुम कह रहे हाे कि जीत बिलकुल निश्चित है, ताे अब मामला क्या करना है? िफर झगड़े में सार ही क्या है? ताे हम आपस में ही समझाैता किए लेते हैं. जब जीत निश्चित ही है उसकी...!तब वकील काे पता चला कि यह पहला माैका है, जिसमें वह धाेखा खा गया. यह आदमी अपने विराेधी का मामला बता रहा था उसकाे! वकील की सारी व्यवस्था यही है कि कानून से तरकीबें खाेजे. जिन लाेगाें ने कानून बनाया है, वे वे ही लाेग हैं जिनके हाथ में लाठी है. जिसके हाथ में लाठी उसकी भैंस! जिनके न्यस्त स्वार्थ हैं, वे कानून बनाते हैं.लेकिन उन्हें यह बात जाहिर है कि बाहर के कानून आदमी की पूरी आत्मा पर जंजीरें नहीं डाल सकते.
हाे सकता है उसके हाथाें में जंजीरें पड़ जाएं और पैराें में बेड़ियां पड़ जाएं, मगर आदमी भीतर ताे स्वतंत्र रहेगा.भीतर भी जंजीरें पहनानी जरूरी हैं, तभी आदमी पूरा गुलाम हाेगा. और समाज के न्यस्त स्वार्थ चाहते हैं कि आदमी पूरा गुलाम हाे, शत प्रतिशत गुलाम हाे, ताकि बगावत की काेई संभावना ही न रह जाए, ताकि वह इनकार न करे, ताकि वह कभी आज्ञा का उल्लंघन न करे. इस व्यवस्था काे जुटाने के लिए उन्हाेंने अंतःकरण पैदा किया है.अंतःकरण सामाजिक आविष्कार है. बच्चे के पास काेई अंतःकरण नहीं हाेता. अंतःकरण हम धीरे-धीरे उसमें पैदा करते हैं. और हरेक धर्म का, हरेक जाति का, हरेक देश का अलग-अलग अंतःकरण हाेता है.