लवले, 7 दिसंबर (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क) आज, ओटीटी और यू-ट्यूब ऐसे मौके देते हैं जो हमें पहले कभी नहीं मिले. आपकी आवाज दुनिया तक पहुंच सकती है. लेकिन आप जो भी बनाएं, अपने पक्के इरादे पर टिके रहें. जाने-माने फिल्म निर्माता-निर्देशक मधुर भंडारकर ने कहा सलाह दी कि फिल्म बनाना पैसे से चलता है, लेकिन कहानी कहना भरोसे से चलता है. वे शुक्रवार (5 दिसंबर) को SIU कैंपस (लवले) में सिम्बायोसिस फिल्म फेस्टिवल का उद्घाटन करते हुए बोल रहे थे. प्रो. (डॉ.) एस. बी. मुजुमदार (चांसलर, सिम्बायोसिस इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी) ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की. सिम्बायोसिस इंटरनेशनल (डीम्ड यूनिवर्सिटी), मीडिया और कम्युनिकेशन फैकल्टी द्वारा सिम्बायोसिस इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी कैंपस (लवले) और सिम्बायोसिस ईशान्य भवन (विमान नगर) में सिम्बायोसिस फिल्म फेस्टिवल का दूसरा एडिशन होस्ट किया. सवाल-जवाबों के दौरान, भंडारकर ने कमजोर समुदायों को दिखाने के अपने जीवन भर के कमिटमेंट के बारे में बात करते हुए कहा, उन लोगों के संघर्षों को दिखाना जशरी है जिनकी आवाजें अनसुनी रह जाती हैं, जैसे माइग्रेंट वर्कर्स से लेकर सेक्स वर्कर्स और बार डांसर्स तक. पांच बार के नेशनल अवॉर्ड जीतने वाले फिल्ममेकर और जूरी चेयरपर्सन एस. नल्लामुथु और डॉ. आर. रमन (वाइस चांसलर, SIU) समेत इस उद्घाटन समारोह में दूसरे जाने-माने लोग मौजूद थे. सिम्बायोसिस इंस्टीट्यूट ऑफ मीडिया एंड कम्युनिकेशन की डीन और डायरेक्टर डॉ. रुचि जग्गी ने वेलकम स्पीच दी. सिम्बायोसिस सेंटर फॉर मीडिया एंड कम्युनिकेशन के डायरेक्टर डॉ. श्रीराम गोपालकृष्णन ने धन्यवाद दिया. रिसर्च मेरी हर फिल्म की रीढ़ है मधुर भंडारकर ने अपने सिनेमा में रिसर्च की अहमियत के बारे में भी बात की, और बताया कि वह जिस दुनिया को दिखाते हैं, उसमें कितनी गहराई से डूब जाते हैं. उन्होंने बताया, चाहे चांदनी बार के लिए बार डांसर हों, जेल के लिए अंडरट्रायल हों, या फैशन के लिए बैकस्टेज फैशन शो हों, मैं असली लोगों से मिला. रिसर्च मेरी हर फिल्म की रीढ़ है. किरदार असली लगने चाहिए क्योंकि वे असली जिंदगी से आते हैं. असल अनुभवों से निकले विषयों से प्रेरणा मैं हमेशा ऐसे विषयों से प्रेरित होता हूं जो असल अनुभवों से निकलते हैं. अगर कोई फिल्म दर्शकों को महसूस करा सकती है, सवाल करने पर मजबूर कर सकती है, या बदल सकती है, तो वही सच्चा सिनेमा है. दुनिया वैसी ही है, लेकिन आज सब कुछ स्टेरॉयड पर है, जो सोशल मीडिया, एल्गोरिदम, लाइक्स और कमेंट्स से चलता है.