माहेश्वरी समाज में परंपराओं और संस्कृति की महत्वपूर्ण भूमिका है

18 Mar 2025 14:49:47
 
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श्री. घनश्याम झंवर
मो. 9422307190
 
जो लोग सुखी-संपन्न हैं, उन्हें दूसरों के लिए जरूर कुछ करना चाहिए. भूखों को भोजन दो, प्यासों को पानी दो, बेसहारों को सहारा दो, गरीब बच्चों को शिक्षा दो, बेरोजगारों को रोजगार दो, अंधे, अपंग और बीमारों को दवा दो, गरीब युवक-युवतियों की शादी कराओ और उन लोगों को जीने का साहस दो, जो जिंदगी से निराश हो चुके हैं. अगर समाज के सभी संवेदनशील लोग सच्चे दिल से यथाशक्ति इन बातों पर काम करें, तो समाज की तस्वीर बदल सकती है.
 
 माहेश्वरी समाज के लोग मुख्य तौर पर राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र राज्यों में किसी न किसी व्यापार या प्रोफेशन से जुड़े हैं. माहेश्वरी समाज वैश्य समाज का ही एक हिस्सा है. माहेश्वरी समाज को व्यापार में ज्यादा कुशल माना जाता है. माहेश्वरी समाज की अपनी एक खास पहचान है. माहेश्वरी समाज के लोग व्यावसायिक और सामाजिक क्षेत्रों में बहुत काम करते हैं. माहेश्वरी समाज व्यापार व इण्डस्ट्री तथा विभिन्न प्रोफेशन के लिए भी जाना जाता है. माहेश्वरी समाज के लोग धार्मिक आयोजन भी खूब करते हैं. माहेश्वरी समाज अपनी संस्कृतिक धरोहर और परंपराओं को महत्व देता है. यह विचार पुणे में माहेश्वरी समाज के एक सामाजिक और धार्मिक कार्यकर्ता श्री घनश्याम झंवर के हैं. पुणे में घनश्यामजी झंवर एक प्रतिष्ठित उद्योजक हैं. जो धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक कामों में हमेशा व्यस्त रहते हैं. पुणे में सुधांशु महाराज के कार्यक्रमों का आयोजन हमेशा घनश्यामजी झंवर के नेतृत्व में ही होता है. अभी हाल ही में वो एक दिन सुधांशु महाराज के कार्यक्रम के आयोजन को लेकर दै. आज का आनंद कार्यालय में आये थे. उस वक्त घनश्याम झंवर की संपादक श्याम अग्रवाल से हुई बातचीत के कुछ अंश यहां पेश हैं- जिस पर भगवान शिव की कृपा है, वो माहेश्वरी है. धर्मग्रंथों में लिखा है कि माहेश्वरी समाज के पूर्वज क्षत्रिय वंश के थे. भगवान शिव की कृपा से ही माहेश्वरी समाज ने एक खास पहचान पाई. इसीलिये ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी को महेश जयंती मनाई जाती है. माहेश्वरी समाज मूल रूप में राजस्थान से है. इनका पारंपारिक व्यवसाय व्यापार करना है. इसमें ओसवाल, खंडेलवाल, अग्रवाल जैसी जातियां भी शामिल हैं. बिर्ला ग्रुप के फाऊंडर घनश्यामदास बिर्ला, वीडियोकॉन के धूत, फ्यूचर ग्रुप के बियानी आदि फेमस उद्योगपति माहेश्वरी समाज के ही हैं माहेश्वरी समाज के लोगों की जनसंख्या भी पारशी लोगों की तरह कम है. माहेश्वरी संगठन के रमेश माहेश्वरी ने बताया कि देश में पहले उनकी जनसंख्या 15 लाख थी, जो कम होते-होते अब 8 लाख हो गई है.
? राजस्थान में आपके गांव का नाम क्या है? सबसे पहले महाराष्ट्र में आपके परिवार से कौन आये थे?
- हम राजस्थान में जोधपुर जिले में ‌‘बुड़ख्या' गांव के हैं. हमारी कुलदेवी ‌‘गायलमाता' है. यह असोप तहसील में आती है. ‌‘करीब 200 साल पहले मेरे दादा-पड़दादा महाराष्ट्र के अमळनेर में आये थे. उस वक्त यह दो भाईयों का परिवार था. बाद में एक भाई का परिवार अहमदनगर जिले के कोपरगांव में सेटल्ड हो गया था. मेरे पड़दादा गोविंदरामजी सबसे पहले महाराष्ट्र के अमळनेर में आये थे. फिर वहां से वो जिला अहमदनगर, ता. राहूरी के वांबोरी गांव में आकर बस गये थे. मेरे दादाजी चार भाई थे. दौलतराम, किसनदास, गुलाबचंद और फत्तेचंद. इन सबकी अगली पीढ़ी के लोग आज भी पुणे में ही काम कर रहे हैं. मेरे दादाजी फत्तेचंद थे. इनको पांच बेटे और दो बेटियां थी. बेटों में रामचंद्र, लालचंद, मोतीलाल, रामनाथ और पोपटलाल थे. दो बहनों में जडाबाई और चुनाबाई थी.
? आपके खुद के परिवार के बारे में कुछ बताएं?
- रामचंद्र मेरे पिता थे, वो अब इस दुनिया में नहीं हैं. हम चार भाई हैं- मुरलीधर, चंपालाल, मैं घनश्याम और राधेश्याम. हमारी चार बहनें भी थी. जिनमें से तीन का निधन हो चुका है और एक बहन वत्सला (उम्र 85) ये आज पुणे में ही रहती हैं. वत्सला बहन का बेटा रामेश्वर लाहोटी निगडी में रहता है. इसके दो बेटे हैं. एक अमेरिका में सेटल्ड है और दूसरा पुणे में ही सीए की प्रॉक्टिस करता है. घनश्याम झंवर ने अपने खुद की फॅमिली के बारे में बताया, मेरी पत्नी लीला है. जो पुणे में ही फोपालिया परिवार से है. 1964 में पुणे में हमारी अरेंज मॅरेज हुई थी. मनोज का बेटा चिराग जो अभी 24 बरस का है, वो अमेरिका लास ऐंजेलस में कॅलिफोनिया युनिवर्सिटी में MS कर रहा है. उसका विषय रोबोट है. वो पढ़ाई के बाद भारत वापस आयेगा, इसी शर्त पर हमने उसको अमेरिका भेजा है. चिंचवड़ में मोहन पन्नालाल गोयल की रबर इण्डस्ट्री है, उसके लड़के अमित के स्टार्टअप के साथ वो जुड़ा हुआ है. हमारे देश में आजकल रोबोट को लेकर सभी इण्डस्ट्री में काफी काम हो रहा है. मेरी पोती राधिका भट्टड है, जो नाशिक में ब्याही है. वो नासिक की एक आर्किटेक्ट कॉलेज में प्रोफेसर है. वह कॉलेज में अपना सरनेम झंवर भट्टड लिखती है. मेरा छोटा बेटा संदीप है और उसकी पत्नी संगीता है. इनकी दो बेटियां हैं- एक ऐश्वर्या और दूसरी समृद्धि. ऐश्वर्या ने अक्षय निवेटिया, जो एक राजस्थानी अग्रवाल है उससे लव मॅरेज किया है. अक्षय निवेटिया बाणेर में रहते हैं और निगड़ी में इनका बिल्डिंग मटेरियल का बड़ा काम है.
? आपकी बेटी के परिवार के बारे में कुछ बताएं?
- मेरी बेटी का नाम विद्या है. ये मुंबई के चांडक परिवार में ब्याही है. मेरे दामाद गोपाल चांडक हैं. इनका होलसेल साडी का काम है. एक्स्पोर्ट भी बहुत करते हैं. इनके दो बेटे हैं. बडा सुयोग चांडक, जो अमेरिका मेें एमएस की पढ़ाई करके वापस आ गया है. सुयोग की पत्नी प्राची चांडक है और वो मुंबई में ही एक आयटी कंपनी में बड़ी पोस्ट पर काम कर रही है. छोटा बेटा राज चांडक है. ये अमेरिका में MS करके अब वहीं बड़ी पोस्ट पर काम कर रहा है. अभी महिनेभर पहले इसने ‌‘शोम्या शर्मा' नाम की लड़की से शादी की है. सोम्या सॉफ्टवेयर इंजिनियर का जॉब कर रही है. इनका शादी समारोह ‌‘देहरादून' में हुआ था.
 ? आपका जन्म कहां हुआ?
- मेरे जन्म के वक्त मेरे माता-पिता वांबोरी गांव में रहते थे, लेकिन मेरा जन्म अहमदनगर के एक हॉस्पीटल में हुआ था, मेरी बीकॉम तक की पढ़ाई अहमदनगर में ही हुई थी, फिर दोस्तों के कहने पर मैं 1962 में पुणे आकर पढ़ने लगा था. यहां बीएमसीसी कॉलेज से मैंने एम कॉम किया. फिर लॉ कॉलेज से एलएलबी की डिग्री ली. उसके बाद मैंने एमबीए भी किया. मेरी पांच डिग्रियों में से चार डिग्री मैंने सर्विस करते हुए ली थी. मुझे पढ़ाई से बहुत लगाव था. मेरी इच्छा थी कि मैं मुंबई में कुछ करूं. मैं मुंबई गया और वहां नवनीत डायजेस्ट में मैंने अकाउंटेंट का काम किया. लेकिन मुंबई का हवामान मुझे सूट नहीं हुआ. इसलिये मैं वापस पुणे में आ गया. यहां राजा बहादुर मोतीलाल मिल्स में मैंने अकाउंटेंट का जॉब किया. उस वक्त मेरी सैलरी 80 रुपये महीना थी. वहां मैंने एक साल काम किया. उसके बाद मैंने पुणे कॅम्प में कन्ट्रोलर ऑफ डिफेंस अकाउंट में दो साल काम किया. वहां मुझे 166 रु. सैलरी मिलती थी. इसके बाद मैंने होर्समेन इण्डिया प्रा. लि. इस कंपनी में काम किया. यहां मैंने चीफ अकाउंटेंट के तौर पर दस साल काम किया. आज उस कंपनी का नाम ‌‘बेकर गेजेस' है. वहां मेरे मालिक बोहरी थे, जो बहुत ही अच्छे इन्सान थे. वहां मुझे शुरू में 200 रु. सैलरी थी. जो बाद में बढ़ते-बढ़ते 2500 रुपए हो गई थी. साथ ही जो भत्ते वगैरा मिलते थे. वो मिलाकर मुझे 4500 रुपये महीना तक मिलने लगा था. फिर मैने खुद की कंपनी शुरू कर दी. इस कंपनी में मेरे चार पार्टनर थे और उस वक्त कंपनी MIDC अहमदनगर में थी. हमारी पार्टनरशिप 14 साल चली.
? इसके बाद क्या हुआ?
-इसके बाद मैंने वो पार्टनरशिप छोड़कर ‌‘कलागार' नाम से हॉस्पीटल के लिये स्टील फर्निचर का काम शुरू कर दिया. आज मेरा छोटा बेटा संदीप यह बिजनेस देखता है. उसके पास करीब 10 कर्मचारी काम करते हैं. मेरा बड़ा बेटा मनोज झंवर गेझेस्‌‍ एण्ड टूल्स नाम की मॅन्युफेक्चरिंग कंपनी चला रहा है. सातारा रोड पर पर्वती इण्डस्ट्रीयल इस्टेट में हमारी फॅक्टरी है. हम एक्स्पोर्ट भी काफी करते हैं. हम जो टूल्स बनाते हैं वो ऑटोमोबाईल, एरोनेटिकल डिफेंस और स्पेश में भी इस्तेमाल होते हैं. जनरल इलेक्ट्रिक और इलेक्ट्रॉनिक्स इण्डस्ट्री में गेझेस्‌‍ का रेंज 1 एमएम से लेकर 300 एमएम तक होता है. कईं बार गॅजेस्‌‍ मॅन्युफेक्चरिंग हम आऊट सोर्सिंग भी करते हैं. मेरे दोनों बेटों के मॉडेल कॉलनी में ही अलगअलग फ्लैट हैं.
? सुधांशु महाराज से आपका संपर्क कैसे हुआ?
- यह बड़ा दिलचस्प किस्सा है. 1998 में मेरी पत्नी लीलादेवी उस वक्त रोज सुबह टीवी पर सुधांशु महाराज के प्रवचन सुनती थी. एक दिन उसने मुझे भी टीवी पर सुधांशु महाराज के प्रवचन सुनने को कहा. तो मैं भी रोज सुबह सुधांशुजी के प्रवचन सुनने लगा. उससे प्रभावित हुआ. पुणे में उनका सत्संग कार्यक्रम आयोजित हुआ तो उसमें मेरा भी सहयोग था. इस तरह मैं 1998 से सुधांशु महाराज से जुड़ गया था.
? क्या आप पुण्यधाम आश्रम से भी जुड़े हैं?
- पुण्यधाम ट्रस्ट का नाम पहले विश्व जागृति मिशन ट्रस्ट था. यह सुधांशु महाराज और मां कृष्णा कश्यप दोनों ने मिलकर शुरू किया था. आज पुणे में सबसे बड़े स्तर के सामाजिक काम पुण्यधाम आश्रम में ही मां कृष्णा कश्यप के मार्गदर्शन में हो रहे हैं. पुण्यधाम आश्रम में बेहतरीन वृद्धाश्रम है, बेहतरीन गोशाला है, देखने लायक शिवजी का मंदिर है, जहां महाशिवरात्री के दिन करीब एक लाख श्रद्धालु आते हैं. पुण्यधाम आश्रम में हरसाल गरीब लड़के-लड़कियों के सामुहिक विवाह का बड़ा कार्यक्रम होता है. इतने बड़े स्तर पर सामुहिक विवाह पुणे में अन्य कहीं नहीं होता. अभी हाल ही में मोफत डायलिसिस सेंटर शुरू किया है. साथ ही सोनोग्राफी सेंटर भी शुरू किया है. मां कृष्णा कश्यप के कारण ही आज विजय भटकर और CA सदानंद शेट्टी जैसे अनेक बड़े प्रतिष्ठित व्यक्ति पुण्यधाम आश्रम से जुडे हैं.
? शुरूआती दिनों में आपकी आर्थिक स्थिती कैसी थी?
 - शुरूआती दिनों में मेरा स्कूल कॉलेज का जीवन बहुत गरीबी में गया. बी.कॉम. होने पर मैंने अपनी पढ़ाई के लिये पिताजी से और कुछ दोस्तों से पैसे लिये थे. उसके बाद मैंने अपनी सारी पढ़ाई नौकरी करते-करते ही की. मेरी शादी 1964 में हुई थी, तब मेरा पगार 170 रुपए था. घर का पूरा खर्चा निकालकर हम उसमें से भी 20 रुपए सेविंग कर लेते थे. उस वक्त मैं कसबा पेठ में रहता था. वहां दो खोली का भाड़ा 20 रुपये महीना था. मैं जब 1962 में पुणे आया तो हम खोली भाडे पर लेकर रहते थे. उस जमाने में नारायण पेठ में ‌‘गोपाल तिवारी' के पिताजी का मुरलीधर भोजनालय था. वे खुद खाना बनाते और खुद ही परोसते भी थे. हमें दो वक्त का खाना 30 रुपये महिने में मिलता था.
? आपने सबसे पहले कौनसी गाडी ली थी?
- मैंने 1968 में बजाज कंपनी की वेस्पा स्कूटर 2000 रुपये में खरीदी थी. तब पेट्रोल का भाव 57 पैसा लीटर था. मेरी शादी के वक्त सोना भी 110 रुपये तोला था. तब 12 ग्रॅम का तोला होता था. जबकि आज वही 10 ग्रॅम का तोला है और वो भी करीब 86,000 रु. तोला हो गया है. इसीसे पता चलता है कि हमारे देश में पिछले 70 सालों में महंगाई कहां से कहां तक पहुंच गई है? ? आज माहेश्वरी समाज में बड़ी समस्या क्या है? - युवा लड़के-लड़कियों के शादी बड़ी समस्या है. करीब सभी लड़कियाँ अब ग्रेज्युएशन या पीजी की डिग्री लेकर पुणे या मुंबई में ही शादी करना चाहती हैं. लड़कियों की चॉईस भी बहुत बढ़ गई है. 26 साल तक तो शादी करना ही नहीं चाहते. कईं बार लड़कियों की पढ़ाई ज्यादा होती है और लड़कों की कम होती है. इससे भी लड़की ‌‘ना' बोल देती है.
? हर आदमी के जीवन में अच्छे-बुरे दिन आते-जाते रहते हैं. क्या आपको भी ऐसा कोई अनुभव हुआ?
 - हां ! 2012 में हमारी झंवर गेजेस्‌‍ ॲण्ड टूल्सं प्रा. लि. कंपनी थी. उसमें 30 कामगार काम करते थे. उन्होंने हड़ताल कर दी और गो स्लो की प्राब्लम शुरू हो गई. उस वक्त जब कामगार गलत पार्टस्‌‍ बनाने लगे तो हम बहुत तंग आ गये थे. उस वक्त हमारा समय खराब चल रहा था. हमने कामगारों को बहुत समझाया, पर वे समझने के मूड में ही नहीं थे. आखिर हमने कानूनी सलाह ली और 31 मार्च 2012 को कंपनी बंद कर दी. कामगारों ने लेबर कमिशनर ऑफिस में अपनी बात रखी. वहां हमने सभी कामगारों का जो भी पैसा निकलता था, उसका हमने भुगतान किया. इसके बाद हमने आऊट सोर्सिंग करके कंपनी को चालु रखा. ये हमारे लिये बहुत बड़ा संकट था, भगवान की कृपा से हम पूरी तरह इस संकट से बाहर आ गये. पर ये संकट भी हमें जिंदगी का एक बड़ा सबक देकर गया.
? आजकल डेस्टीनेशन शादियों के बारे में आप क्या कहेंगे?
- मेरे विचार से यह बेकार का दिखावा है. हमें फिजूल खर्चा नहीं करना चाहिये. दूसरे मिडिल क्लास के लोगों पर बर्डन (बोझ) आता है. आजकल शादी में पहले की तरह लेन-देन की चर्चा, तो नहीं होती, पर अमीरी का दिखावा बहुत बढ़ गया है.

? पुणे में माहेश्वरी समाज के कितने लोग होंगे? 
पहले पुणे में माहेश्वरी समाज सिर्फ रविवार पेठ में था. लेकिन अब पुणे के सभी इलाकों में माहेश्वरी समाज के लोग बिखर गये हैं. अब तो खानदेश, मराठवाडा, विदर्भ से भी काफी माहेश्वरी लोग पुणे में शिफ्ट हो गये हैं. आज पुणे में 2000 से ज्यादा माहेश्वरी परिवार हैं. इनमें से कोई जळगांव, सातारा, कोल्हापूर, अमरावती से हैं. कुल मिलाकर आज पुणे में 40 से 50 हजार माहेश्वरी समाज के लोग जरूर हैं. पुणे में माहेश्वरी के बड़े लोगों में विठ्ठल मणियार, नितिन न्याती, विश्वजीत झंवर, बिल्डर में महेश लठ्ठा, कपड़ा व्यापार में श्रीराम कासट का परिवार, हिरालाल माल, पुरुषोत्तम लोहिया, सुदर्शन केमिकल वाले वसंत भाऊ, हरी भाऊ, अतुल लाहोटी ये माहेश्वरी विद्या प्रसारक मंडल के 10 साल से अध्यक्ष हैं. हमारी समाज में व्यापार के मामलों में द्वारकादास बूब साडी और बिल्डर लाईन में बहुत आगे हैं.
? माहेश्वरी समाज में कुल कितने गोत्र हैं?
 - हमारी समाज में कुल 72 गोत्र हैं. झंवर हमारा सरनेम है, लेकिन गोत्र हमारा ‌‘झुमरास' है. माहेश्वरीयों में राठी, गुप्ता, गांधी, मोहत्ता, बजाज, न्याती बिर्ला, मुंदडा, चांडक, काबरा, मंत्री, लोहिया, मालपाणी, इंदानी, तापड़िया, जाजू के अलावा भी
 
 माहेश्वरी समाज की एक अलग पहचान !
धर्मपरायणता, व्यापार, उद्योग और व्यवसाय में शीर्षस्थान हासिल करने, स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रहने तथा लोक कल्याण और शिक्षा क्षेत्र में निस्वार्थ सेवा प्रदान करने के साथ साथ अपनी स्वतंत्र पहचान बनाए रखना भी माहेेशरी समाज की विशेषता है. लोकोक्तियों के अनुसार जयपुर के पास स्थित खंड़ेला नामक स्थान पर राजा खड्गसेन राज्य किया करते थे. इस पुत्रहीन राजा को ऋषि याज्ञवल्क ने भगवान महादेव की आराधना करने की सलाह दी. महादेव के आशीर्वाद से राजा को सुजानसिंह नामक पुत्र हुआ. युवावस्था में सुजानसिंह अपने 72 उमरावों के साथ शिकार हेतु जंगल में गया. वहां कुछ ऋषि यज्ञ कर रहे थे. सुजानसिंह तथा साथियों के शोर शराबे से नाराज होकर उन्होंने सब युवकों को पत्थर हो जाने का शाप दे दिया. यह ख़बर पाकर रानी तथा सहयोगियों की पत्नियां विलाप करती हुई वहां पहुंचीं. उनके विलाप से पसीजकर जगत जननी पार्वती ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि उन पत्थर बने युवकों में जान डाल दें! भगवान ने वैसा ही किया, परंतु साथ ही उन्हें क्षत्रिय धर्म का त्याग करके वैश्य वर्ण अंगीकार करने का आदेश भी दिया! आशुतोष भगवान शिव या महेश अथवा महेेशर तथा जगदंबा भगवती पार्वती जिन्हें भगवान महेश की अर्द्धांगिनी होने के कारण महेेशरी कहा जाता है, के आशीर्वाद से पत्थर बने क्षत्रि युवाओं को नवजीवन तथा वैश्यत्व प्राप्त हुआ था और इसी कारण वे स्वत: को अमृतस्य पुत्र: कहते हैं! (महा ईेशर के अपत्य के रूप में :- महेेशरस्य अपत्यं पुत्रान्‌‍ इति माहेेशर,भी!) इस सम्बोधन ने उन्हें जैसे दायित्व सौंप दिया है धर्मरक्षा का! परिणाम स्वरूप माहेेशरी पूजा पाठ, भोजन शुचिता, कर्मकाण्ड, शाकाहार, धर्मकार्य और धर्मदाय बातों में पहली पंक्ति में दिखाई देते हैं. पुराने समय से माहेेशरियों में चौके की पवित्रता बनाए रखने की परंपरा दिखाई देती रही है. प्रवास में भी वे भोजन की शुचिता का नियम पूर्ण निष्ठा से निबाहा करते थे. सामान्य तौर पर घर से निकलते समय पुराने माहेेशरी कहा करते थे सदा भवाणी दाइनी, सन्मुख होय गणेश, पांच देव रक्षा करो, ब्रह्मा, विष्णु, महेश! प्रवासी माहेेशरियों को सामूहिक चौकों या बासों ने नई जगहों पर स्थापित होने में बहुत सहायता की. वे यहां भोजन की शुद्धता और पवित्रता के प्रति निश्चिंत रह सकते थे. माहेेशरी मूल रूप से पूर्णत: शाकाहारी होते हैं. प्याज और लहसुन भी पुराने घरों में वर्ज्य हुआ करते थे. माहेेशरियों में भोजन सम्बंधी विवेक उत्कर्ष पर माना जाता है. उनकी भाषा में भी हिंसावाचक शब्द नहीं हुआ करते! वे सरजी काटते नहीं बंदारते हैं! ठीक वैसे जैसे दुकान बंद नहीं की जाती बढ़ाई जाती है!
 
 
 
 
 
 
 
 
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