पुणे, 5 अप्रैल (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क)
शहर के दीनानाथ मंगेशकर अस्पताल प्रशासन ने एक गर्भवती महिला की मृत्यु की घटना के बाद बड़ा फैसला लिया है. आरोप है कि अस्पताल ने धन की लालच में इलाज में देरी की, जिससे महिला की जान गई्. इस घटना को लेकर राज्यभर से अस्पताल के खिलाफ रोष व्यक्त किया जा रहा है. इसी के संदर्भ में अस्पताल के चिकित्सा निदेशक डॉ. धनंजय केलकर ने एक परिपत्रक जारी किया है जिसमें कहा गया है कि अब से दीनानाथ मंगेशकर अस्पताल की आपातकालीन सेवा में किसी भी मरीज से डिपॉजिट (अनामत राशि) नहीं ली जाएगी. डॉ. केलकर ने कहा कि वर्ष 2001 में भारतरत्न लता मंगेशकर की प्रेरणा से यह अस्पताल शुरू हुआ, जो ईमानदारी, पारदर्शिता और सेवा की भावना से संचालित होता आया है. अस्पताल में कोई कमीशन प्रैक्टिस नहीं होती,फार्मा कंपनियों से पैसा या प्रायोजन नहीं लिया जाता है. मरीजों से नियंत्रित दर पर ही चार्ज लिया जाता है, जेनेरिक दवाइयाँ उपलब्ध कराई जाती हैं, गरीबों को 10 रुपये में ओपीडी, 50% छूट पर जांचें और आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों के लिए मुफ्त सर्जरी की जाती है. प्रत्येक महीने यह जानकारी चैरिटी कमिश्नर को दी जाती है. डॉ. केळकर ने कहा कि शुक्रवार का दिन दीनानाथ अस्पताल के इतिहास में सबसे काला और पीड़ादायक रहा. अब तक किए गए सेवाभाव को नजरअंदाज करते हुए, गुस्साए समूह ने अस्पताल के पब्लिक रिलेशन ऑफिसर्स पर सिक्के फेंके, कुछ महिलाएं डॉक्टर घैसास के माता-पिता के निजी अस्पताल में जाकर तोड़फोड़ की, किसी संगठन के कार्यकर्ताओं ने लता मंगेशकर और दीनानाथ मंगेशकर के नाम पर कालिख पोती यह सब टीवी कैमरों के सामने हुआ. उन्होंने कहा कि इस घटना से पूरे अस्पताल परिवार को गहरा आघात लगा है. क्या यही हमारे तपस्या का फल है?, इस प्रकार के प्रश्न मन में उठे. लेकिन हमने इस घटना को आत्ममंथन का अवसर मानते हुए गहराई से विचार किया. इस आत्मचिंतन के दौरान असंवेदनशीलता शब्द बिजली की तरह हमारे मन में कौंध गया. भले ही महिला की मृत्यु का सीधा संबंध अस्पताल से जोड़ना गलत हो, लेकिन हमने यह सोचने का प्रयास किया कि क्या हमारी ओर से किसी संवेदनशीलता की कमी रही. डॉ. केलकर ने स्पष्ट किया कि जब दीनानाथ अस्पताल शुरू हुआ था, तब मरीजों से कोई डिपॉजिट नहीं लिया जाता था. लेकिन समय के साथ जटिल और महंगे इलाज की आवश्यकता बढ़ी, जिससे डिपॉजिट लेने की प्रक्रिया शुरू हुई्. दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बाद वेिशस्त मंडल और प्रबंधन ने तय किया है कि इमरजेंसी, डिलीवरी विभाग या बच्चों के विभाग में आने वाले किसी भी मरीज से अब डिपॉजिट नहीं लिया जाएगा. और आज से यह निर्णय लागू किया गया है. घटना की सच्चाई सरकारी जांच से सामने आ ही जाएगी, लेकिन इस बहाने से हम अस्पताल की कार्यप्रणाली में मौजूद असंवेदनशीलता को समाप्त करने की शुरुआत कर रहे हैं. डॉ. केलकर ने राज्य के सभी नागरिकों और मुख्यमंत्री से अपील की कि इस फैसले को एक सकारात्मक पहल के रूप में देखा जाए.