लाइफ और व्यवसाय में विस्तार के साथ बदलाव भी आवश्यक !

बहुत कम उम्र में सफलतापूर्वक व्यवसाय स्थापित करनेवाले ‌‘अमन ग्रुप‌’ के संजय अग्रवाल से बातचीत

    11-May-2025
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sanjay
    
संपर्क :
संजय अग्रवाल (संचालक - अमन ग्रुप)
पता : 403, गेरा स्टर्लिंग, नॉर्थ मेन रोड,
स्टारबक्स के पास, कोरेगांव पार्क,
पुणे- 411001.
मोबाइल नं - 9890002632
ईमेल - [email protected]
 
लाइफ और व्यवसाय में विस्तार और बदलाव करना अत्यंत आवश्यक है. जब आप किसी क्षेत्र में विस्तार की सोचते हैं, जिसमें आप पहले से सक्रिय हैं, तो सफलता की संभावना अधिक होती है. बिना अनुभव या ज्ञान के किसी नए क्षेत्र में प्रवेश करना जोखिम भरा हो सकता है. बीते वर्षों में हमने अन्य व्यवसायों में विस्तार करने की कोशिश की, लेकिन भारी निवेश के बावजूद सफल नहीं हो पाए. उन कठिन वर्षों में हमारी किस्मत भी हमें धोखा देती दिखाई दी. जब समय अच्छा नहीं चल रहा होता है तो आपकी परछाई भी साथ नहीं देती, इस अनुभव को मैंने बहुत करीब से महसूस किया है. कंपनी ने अब तक कई महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट सफलतापूर्वक पूरे किए हैं. पुणे में रेलवे से जुड़े अधिकांश कार्य हमने किए हैं. पिंपरी-चिंचवड़ क्षेत्र में हमने अनेक सड़कों का निर्माण किया है, यह जानकारी शहर की प्रतिष्ठित इंफ्रास्ट्रक्टर कंपनी ‌‘अमन ग्रुप‌’ के संचालक संजय अग्रवाल ने दै. ‌‘आज का आनंद‌’ की पत्रकार रिद्धि शाह द्वारा लिए गए साक्षात्कार में साझा की. पेश हैं पाठकों के लिए उनसे की गई बातचीत के कुछ विशेष अंश :
 
   सवाल : आप कहां से हैं और आपकी पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या है?
 
जवाब : मैं मूल रूप से राजस्थान के जालोर जिले में स्थित भीनमाल शहर से हूं. मेरे अभिभावकों का स्वर्गवास हो चुका है मेरी मां का नाम मुन्नीदेवी और पिता का नाम कैलाश नारायण अग्रवाल था. हम कुल पांच भाई-बहन हैं. सबसे बड़ी बहन किरण है, उसके बाद मेरे बड़े भाई मनीष, फिर बहन काजल, उसके बाद मैं स्वयं और सबसे छोटी बहन पायल है. मेरी पत्नी का नाम मधु है और मेरी बेटी का नाम टीशा है और मेरे बेटे का नाम लक्ष्य है. हमारा गोत्र ‌‘एरण‌’ है. मेरे पिताजी का भीनमाल में ही इलेक्ट्रिकल्स का व्यवसाय था. मेरी मां एक गृहिणी थीं, जिनका 1995 में ही निधन हो गया था. मैं 1993 में पुणे आ गया था और मेरे आने के कुछ सालों बाद 1999 में पिताजी भी पुणे आ गए. यहां आने के बाद हमने टू-व्हीलर ऑटो स्पेयर पार्ट्स का व्यवसाय शुरू किया, जिसकी दुकान विश्रांतवाड़ी में खोली गई थी. इस व्यवसाय को मेरे बड़े भाई मनीष और पिताजी मिलकर संभालते थे.
 
सवाल : आपकी शिक्षा संबंधी जानकारी दीजिये?
 
जवाब : मैंने 12वीं तक भीनमाल में ही पढ़ाई की. इसके बाद मैं पुणे आ गया था और मैंने यहां रहते हुए काम के साथ-साथ उदयपुर की जयनारायण व्यास यूनिवर्सिटी से बी.ई. (सिविल इंजीनियरिंग) की.
 
 सवाल : जब 1993 में आप पुणे आए, उस समय क्या उद्देश्य लेकर आये थे? पुणे में पहला काम क्या किया? किसने काम दिया?
 
 जवाब : मैं काम सीखने और व्यवसाय शुरू करने के उद्देश्य से पुणे आया था. हालांकि शुरुआत में मेरा इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में आने का कोई पूर्व नियोजित विचार नहीं था. बचपन में मेरा सपना डॉक्टर बनने का था और मैंने पीएमटी की तैयारी भी की थी. लेकिन पारिवारिक परिस्थितियों को देखते हुए मैंने पुणे आकर काम करने का निर्णय लिया. इस सफर में मेरी बड़ी बहन किरण के पति, मेरे जीजाजी नंदू अग्रवाल ने मुझे भरपूर सहयोग दिया. उनके कांट्रेक्टिंग व्यवसाय में मैंने 6 साल तक काम सीखा और अनुभव हासिल किया. इसके बाद वर्ष 1999 में जब मेरे पिताजी पुणे आ गए, तब मैं 22 साल का था. मुझे एग्रीकल्चर कॉलेज की ओर से पहला रोड निर्माण कार्य मिला. उस कार्य की लागत लगभग साढ़े चार लाख रुपये थी. इस काम ने मेरे कैरियर की नींव रखी और इसके बाद मैंने पुणे के कई प्रतिष्ठित बिल्डरों के साथ कार्य किया.
 
 
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सवाल : आपके पिता का निधन कब हुआ और इसके बाद आपने किस तरह अपनी जिम्मेदारियों को निभाया?
  
जवाब : मेरी छोटी बहन पायल की शादी 8 मई 2002 को हुई थी, जिसके लिए हम राजस्थान गए थे. शादी के लगभग दस दिन बाद 19 मई 2002 को मेरे पिताजी का हार्ट अटैक से निधन हो गया. उस समय हम पुणे में थे क्योंकि शादी के तुरंत बाद हम पुणे लौट आए थे. पिताजी के निधन की खबर सुनते ही हम पुनः क्रियाकर्म के लिए राजस्थान गए. उस कठिन समय में मुझे गहराई से यह समझ में आया कि परिवार ही सबसे बड़ा सहारा होता है. मेरे भाई-बहनों और जीजा ने मुझे जिस तरह सहयोग दिया, वह अविस्मरणीय है. हम पिताजी के जीवनकाल में ही पुणे में व्यवसाय शुरू कर चुके थे, इसलिए व्यावसायिक रूप से स्थापित होना चुनौती नहीं था, पर मानसिक रूप से उस स्थिति को स्वीकार करना कठिन था. मेरी बड़ी बहन किरण ने उस दौर में हमें बड़ा सहारा दिया. जब आप एक छोटे गांव से आते हैं और बड़े शहर में खुद को स्थापित करना चाहते हैं, तो एक गॉडफादर की आवश्यकता होती है. देखा जाये तो उस समय एक हाथ की जरूरत होती है जिसके द्वारा हम स्थापित हो सकते हैं और आगे जा सकते हैं. इसमें हमें चुनौती आई, हम लोग पुणे में नये-नये आए थे और पुणे में हमारा कोई फैमिली बैकग्राउंड भी नहीं था. लेकिन मेरे बड़े जीजाजी ने हमें पूरी तरह से सपोर्ट किया. यह रिश्ता नाजुक होता है, लेकिन उन्होंने इसे बहुत मजबूत बनाया.
 
सवाल : आपकी बहनों और जीजा के बारे में जानकारी दें?
 
जवाब : मेरे परिवार में सबसे बड़ी बहन किरण हैं, जिनकी शादी नंदू अग्रवाल से हुई है. मेरे जीजाजी मूल रूप से राजस्थान के आबू रोड के रहनेवाले हैं, लेकिन वे पिछले 40 वर्षों से पुणे में बसे हुए हैं. उन्होंने महावीर इंटरप्राइजेज नाम से कंस्ट्रक्शन का व्यवसाय शुरू किया था और अब रिटायरमेंट के बाद केवल प्रॉपर्टी ट्रेडिंग का कार्य करते हैं. किरण दीदी के बाद मेरे बड़े भाई मनीष अग्रवाल हैं, जिनकी पत्नी डिंपल गुजरात के अंबाजी की रहनेवाली हैं. भैया को तीन बच्चे हैं, दो बेटे और एक बेटी. उनके बड़े बेटे की हाल ही में चार महीने पहले शादी हुई है. हमारे पारिवारिक व्यवसाय में भैया की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है. वे पूरे फाइनेंस का प्रबंधन संभालते हैं और हमारे व्यवसाय की रीढ़ की हड्डी माने जाते हैं. उनके बाद मेरी बहन काजल आती हैं, जिनकी शादी दिलीप अग्रवाल से हुई है. मेरे जीजाजी दिलीप राजस्थान के सिरोही जिले के जावाल से हैं. वहां उनकी ऑयल मिल है और हार्डवेयर का कारोबार है. परिवार में सबसे छोटी बहन पायल हैं, जिनकी शादी हरीश अग्रवाल से हुई है. मेरे जीजाजी हरीश 2004 से पुणे के चर्होली क्षेत्र में रह रहे हैं और वहां हार्डवेयर और बिल्डिंग मटेरियल का व्यवसाय संचालित करते हैं.
 
सवाल : आप इंफ्रास्ट्रक्चर के बिजनेस में कैसे आए?
 
जवाब : मेरे बड़े जीजाजी नंदू अग्रवाल का रोड कंस्ट्रक्शन का बिजनेस था और कंस्ट्रक्शन इंफ्रास्ट्रक्चर के ही अंतर्गत आता है. उनकी बदौलत ही मैं इस क्षेत्र में कदम रख सका. उनके साथ जब मैं काम करता था तो हम केवल टार रोड बनाते थे. इसके बाद जब मैंने अपना खुद का व्यवसाय शुरू किया, तो मैंने इस क्षेत्र में और भी विस्तार किया, जिसमें एक्सकेवेशन बिजनेस, रोड निर्माण, पाइपलाइन डालना और कांट्रैक्टिंग शामिल है. हमने मुख्य रूप से पुणे रेलवे डिवीजन के साथ कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं पर काम किया.
 
सवाल : वर्तमान में आप किन-किन व्यवसायों में सक्रिय हैं? और आपका बिजनेस कहां-कहां फैला हुआ है?
 
 
जवाब : हमारा बिजनेस पुणे में स्थित है और पुणे तक ही सीमित है. जैसा कि मराठी में एक कहावत है, ‌‘सातच्या आत घरात‌’, उसी तरह मुझे शाम 7:00 के बाद केवल अपना घर ही नजर आता है. इस समय के बाद मैं व्यवसाय से जुड़े फोन भी नहीं उठाता और कहीं बाहर नहीं जाता. वर्तमान में हमारा ‌‘ट्रू लाइट‌’ व्यवसाय भी शुरू हुआ है और इस समय पुणे में हमारी 20 साइट्स पर काम चल रहा है, जिनमें से 16 कांट्रैक्टिंग साइट्स हैं, दो खुद की कंस्ट्रक्शन साइट्स हैं और दो प्लाटिंग साइट्स हैं. ‌‘अमन ग्रुप‌’ की शुरुआत 1999 में हुई थी. मेरी बड़ी बहन के बेटे का नाम अमन है और उसका नामकरण मैंने ही किया था. अमन हमारे दिलों के करीब है और शुरुआती दौर में हमें अपनी दीदी से भरपूर समर्थन मिला, इसलिए हमने तय किया कि हम अपना व्यवसाय ‌‘अमन‌’ नाम से ही शुरू करेंगे. वर्तमान में अमन ग्रुप में कांट्रैक्टिंग, री- डेवलपमेंट, छोटी स्कीम्स पर काम करने के साथ-साथ हम प्लाटिंग और अपनी छोटी-छोटी स्कीम्स भी बनाते हैं. हमारी प्राथमिकता एक समय में एक ही प्रोजेक्ट पर फोकस करना है, ताकि हम उसे शानदार तरीके से पूरा कर सकें. हम केवल पुणे में ही काम करते हैं, क्योंकि हमारी ऑर्डर बुक पुणे तक ही सीमित है और पुणे एक तेजी से विकसित हो रही सिटी है, जहां अनेक प्रोजेक्ट चल रहे हैं. इस कारण हमें बाहर से प्रोजेक्ट लेने की आवश्यकता नहीं पड़ती. रियल इस्टेट के क्षेत्र में भी हमने कदम रखा है और इस समय टिंगरेनगर में एक साइट और मोशी में दो कंस्ट्रक्शन साइट्स पर काम कर रहे हैं.
 
सवाल : ट्रू लाइट ब्रांड की शुरुआत कैसे हुई? इस कंपनी में क्या काम होता है?
 
 
जवाब : ट्रू लाइट की शुरुआत आधुनिक जरूरतों और ट्रेंड्स को ध्यान में रखते हुए की गई. जैसे आजकल घरों में अनप्लास्टिसाइज्ड पॉलीविनाइल क्लोराइड (यूपीवीसी) की खिड़कियां लगाई जाती हैं, जो पहले एल्यूमिनियम की हुआ करती थीं. इसके साथ-साथ वर्तमान में घरों में साउंड प्रूफ खिड़कियां और सिस्टम विंडोज भी लगाई जा रही हैं, जिनमें मेष जाली भी होती है. इस बदलाव को देखते हुए ट्रू लाइट ने इन लग्जरी और आधुनिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए यूपीवीसी खिड़कियां और विंडो सिस्टम बनाने का काम शुरू किया. हमारी कंपनी का एक और उद्देश्य है कि ऐसी खिड़कियां बनाएं, जिन्हें रिमोट से खोला और बंद किया जा सके ताकि और भी सुविधाजनक और स्मार्ट समाधान प्रदान किया जा सके. ट्रू लाइट की शुरुआत लगभग 1 साल पहले हुई है और हमारा लक्ष्य इसे एक्सपांड करना है. हम फसाड ग्लास जैसी नई बिल्डिंग तकनीकों में भी काम करने का सोच रहे हैं. ट्रू लाइट का हमारा मकसद गुणवत्ता (क्वालिटी) के लिए काम करना है, क्वांटिटी या मास के लिए नहीं.
 
 
सवाल : इंफ्रास्ट्रक्चर में आपके द्वारा क्या- क्या कार्य किये जाते हैं और अब तक कितने किए जा चुके हैं?
 
जवाब : हम इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में टर्नकी प्रोजेक्ट्स पर काम करते हैं, जिसका मतलब है कि हम ग्राहकों को एक पूरी तरह तैयार और इस्तेमाल के योग्य बिल्डिंग प्रदान करते हैं. इनमें बिल्डिंग के लिए जरूरी सड़कें, पार्किंग, पॉवर हाउस, पाइपलाइन फिटिंग्स, स्वीमिंग पूल, क्लब हाउस आदि शामिल होते हैं.
 
सवाल : इंफ्रास्ट्रक्चर से कंस्ट्रक्शन और रियल इस्टेट में आने का आपने कब और कैसे सोचा?
   
 जवाब : लाइफ और व्यवसाय में विस्तार और बदलाव करना अत्यंत आवश्यक है. जब आप किसी क्षेत्र में विस्तार की सोचते हैं, जिसमें आप पहले से सक्रिय हैं, तो सफलता की संभावना अधिक होती है. जब हमने अन्य क्षेत्रों में कदम रखा जैसे 5 रेस्टोरेंट चलाए और बालकृष्ण लॉन चलाया जो हमने 2015 में मुंढवा में शुरू किया था, लेकिन प्रॉपर्टी विवादों के कारण हम सफल नहीं हो पाए. हालांकि कई प्रयासों के बावजूद कुछ कार्यों में सफलता नहीं मिली और अंततः मैंने अपने मुख्य क्षेत्र यानी इंफ्रास्ट्रक्चर में विस्तार करना अधिक उचित समझा. मेरा मानना है कि बिना अनुभव या ज्ञान के किसी नए क्षेत्र में प्रवेश करना जोखिम भरा हो सकता है और इसका अनुभव मैंने 2015, 2016 और 2017 में किया. इन वर्षों में हमने अन्य व्यवसायों में विस्तार करने की कोशिश की, लेकिन भारी निवेश के बावजूद सफल नहीं हो पाए. उन कठिन वर्षों में हमारी किस्मत ने भी हमें धोखा दिया. मैं इंजीनियर हूं और इंफ्रास्ट्रक्चर का काम बहुत अच्छे से जानता हूं तो पुणे का एक प्रतिष्ठित ग्रुप है कोहिनूर ग्रुप जिसके संचालक कृष्णकुमार गोयल के बेटे विनीत गोयल जो मेरे मित्र हैं. मैं उनसे मिला फिर मैंने उनसे कहा काम चाहिए, तब उन्होंने मुझे तुरंत 1 करोड़ का काम दिलवाया. कोहिनूर ग्रुप के साथ आज भी मैं जुड़ा हुआ हूं और उनके अधिकतर इंफ्रास्ट्रक्चर का काम मैं करता हूं. कोविड के बाद मैंने टिंगरेनगर में कंस्ट्रक्शन के क्षेत्र में कदम रखा और वहां अब पजेशन प्रक्रिया चल रही है. साथ ही हमने कुछ प्लॉट्स भी खरीदे हैं, जिनपर हम भविष्य में निर्माण कार्य करेंगे. मेरे व्यवसाय का मुख्य फोकस इंफ्रास्ट्रक्चर पर है और मेरे कई प्रतिष्ठित क्लाइंट्स हैं जैसे रेलवे, टाटा हाउसिंग, हुंडई, वाडिया कॉलेज और गुजराती समाज के पीजी कैंपस स्कूल. कंस्ट्रक्शन में मैं बड़े पैमाने पर नहीं बल्कि छोटे और गुणवत्तापूर्ण प्रोजेक्ट्स पर ध्यान देता हू्‌ं‍. कोविड के बाद से मैंने कंस्ट्रक्शन और रियल इस्टेट क्षेत्र में सक्रिय होकर काम को नई दिशा में बढ़ाया है.
 
सवाल : अगले 5 सालों में आप अपने व्यवसाय को कहां देखना चाहते हैं?
 
जवाब : हमें व्यवसाय में 30 वर्षों से अधिक हो चुके हैं और अब हमारा उद्देश्य तेजी से विस्तार करने की बजाय स्थिरता और गुणवत्ता पर केंद्रित है. हम चाहते हैं कि आनेवाले 5 वर्षों में हमारा व्यवसाय ऑटोमेशन मोड पर चले यानी प्रक्रियाएं इतनी सुव्यवस्थित हों कि वे हमारी सीधी भागीदारी के बिना भी सहजता से संचालित हो सकें. हमारा मुख्य फोकस यह है कि ग्राहक को उच्च गुणवत्ता की सेवाएं मिलें, भले ही काम का वॉल्यूम सीमित हो. हमने वित्तीय रूप से स्थायित्व हासिल कर लिया है, इसलिए अब सुकून और संतुलित जीवनशैली हमारी प्राथमिकता है. इसके साथ ही हम नई पीढ़ी की सोच को भी समझते हैं जो कम वर्किंग डेज, कम झिकझिक वाले कार्य और सुकून भरे कैरियर की अपेक्षा रखती है. इसलिए हमने यह निर्णय लिया है कि हमारी कोर टीम, जो वर्षों से हमारे साथ जुड़ी है उन्हें केवल कर्मचारियों की तरह नहीं बल्कि वर्किंग पार्टनर के रूप में जोड़ा जाए. इससे दो लाभ होंगे पहला टीम को निर्णय लेने की स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता मिलेगी, जिससे वे अपने जीवन में भी आगे बढ़ सकें. दूसरा व्यवसाय हमारे ना होने पर भी सक्रिय और स्थिर बना रहेगा.
 
सवाल : आप बिजनेस के अलावा सामाजिक रूप से भी बेहद एक्टिव हैं. अभी तो आप एवाईसी या अग्रवाल यूथ क्लब के प्रेसिडेंट भी हो? तो आप सोशली एक्टिव कैसे हुए? बिजनेस को संभालते हुए सोशली समय कैसे दे पाते हैं?
 
जवाब : जब हम पुणे आए, तब हमें कोई जानता नहीं था. हम अपने परिवार से पुणे में बसनेवाली पहली पीढ़ी हैं. ऐसे में यहां अपनी पहचान बनाना आसान नहीं था. लेकिन अगर मेरी दो पीढ़ियां अब पुणे में रह रही हैं, तो यह मेरी जिम्मेदारी बनती है कि समाज में एक ऐसा स्थान बनाऊं, जहां मेरे नाम और मेरे कार्य से लोग मुझे और मेरे परिवारवालों को जानें. मेरा सरनेम अग्रवाल है और अगर मेरा अग्रवाल समाज ही मुझे नहीं पहचानेगा, तो फिर उस पहचान का क्या मूल्य? अगर मुझे इतने प्रतिष्ठित समाज में स्थान मिला है, तो यह केवल गर्व की बात नहीं, बल्कि एक कर्तव्य भी है कि मैं समाज को कुछ लौटाऊं, समाज के लिए कार्य करूं. 2015 में मैं अग्रवाल यूथ क्लब से जुड़ा और 2016 से लेकर 2024 तक सक्रिय सदस्य के रूप में कार्य करता रहा. मेरी निष्ठा और सेवाभाव के कारण हाल ही में मुझे क्लब के प्रेसिडेंट के रूप में कार्यभार सौंपा गया. मैं क्लब के कार्यों के लिए प्रतिदिन 2-3 घंटे देता हूं और कोई भी व्यक्ति यदि सहायता के लिए मेरे पास आता है, तो वह खाली हाथ नहीं लौटता. साथ ही मेरा अगला सपना है गायों की सेवा के लिए एक गौशाला का निर्माण. मेरे लिए पहचान पैसे और धन-दौलत से कई गुना ज्यादा मायने रखती है.
 
सवाल : आपकी पत्नी या बच्चों के बारे में बताएं? आपके भाई भी आपके साथ बिजनेस में है, उनके बारे में बताएं?
 
 
जवाब : मेरी पत्नी का नाम मधु अग्रवाल है. वह एम.कॉम. ग्रेजुएट हैं और गृहिणी है. वह मूल रूप से राजस्थान के कुचामन से है. हमारी शादी 2005 में हुई थी. हमारे दो बच्चे हैं. हमारी बेटी टीशा बी.टेक कर रही है और बेटा लक्ष्य 12वीं में है, साथ ही वह लॉ की तैयारी भी कर रहा है. मेरे बड़े भैया मनीष, 54 वर्ष के हैं एवं मुझसे 5 साल बड़े हैं, वे एमकॉम ग्रेजुएट हैं, मेरे बिजनेस में मेरे साथ हैं और कंपनी का पूरा फाइनेंस देखते हैं. वे 1999 में मेरे पिताजी के साथ पुणे आए थे और विश्रांतवाड़ी में शॉप संभालने की शुरुआत की थी. समय के साथ जब हमारा कांट्रैक्टिंग बिजनेस बढ़ा, तो 2004 से हम दोनों साथ मिलकर काम करने लगे. भाभी डिंपल अग्रवाल भी एक गृहिणी हैं. मनीष भैया की शादी को 31 वर्ष हो चुके हैं और उनके तीन बच्चे हैं. उनके सबसे बड़े बेटे हिमांशु की हाल ही में रुपाली से शादी हुई है, हिमांशु हमारी कंपनी का संपूर्ण परचेस विभाग देखता है. उनकी बेटी आस्था एक कंपनी में फाइनेंस एनालिस्ट के रूप में कार्यरत है और सबसे छोटा बेटा ऋषि अग्रवाल इस समय कनाडा में एमबीए की पढ़ाई कर रहा है.