व्यापारी वर्ग ने मांग शुरू कर दी है कि व्यापारियों पर अलग-अलग टैक्स लगाने की बजाय सभी के लिए एक टैक्स होना चाहिए. व्यापारी वर्ग का कहना है कि उनसे सालाना टैक्स एक बार ही लिया जाए और उन्हें पूरे साल व्यापार करने की आजादी दी जाए. महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा टैक्स वसूला जाता है. इसलिए व्यापारियों की मांग है कि राज्य सरकार सरलीकृत कराधान के मामले में व्यापारियों का पक्ष सकारात्मक और प्राथमिकता के साथ केंद्र सरकार के समक्ष रखे. व्यापारियों की शिकायत है कि अलग-अलग टैक्स, उनके लिए रिटर्न दाखिल करना, अनुपालन करना, उनके लिए अलग से स्टाफ नियुक्त करना, उन्हें अलग से वेतन देना, इन सबका खर्च टैक्स से ज्यादा है. इसके अलावा कई लोग व्यापार करने से ज्यादा अनुपालन करने में समय लगाते हैं. इससे अंतत: ग्राहकों और देश को भी नुकसान हो रहा है. इसलिए व्यापारियों की इच्छा है कि ये सारी परेशानियां खत्म हो जाएं और पूरे साल का एक ही टैक्स वसूला जाए और वह भी एक ही समय पर. व्यापारियों का कहना है कि वर्तमान में आयकर, वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी), मूल्य वर्धित कर (वैट), उत्पाद शुल्क, सीमा शुल्क, संपत्ति कर, व्यापार कर, स्टांप शुल्क आदि कर चुकाने पड़ते हैं. इसमें काफी समय लगता है. व्यापारियों की मांग है कि इसके स्थान पर कोई एक कर लगाया जाए. कुछ व्यापारियों का कहना है कि व्यावसायिक संपत्तियों पर 700 रुपये प्रति वर्ग फुट का संयुक्त वार्षिक कर पहले ही वसूला जाना चाहिए. देशभर में अनुमानित 10,000 करोड़ वर्ग फुट व्यावसायिक स्थान है. इससे आसानी से 70 लाख करोड़ रुपये का कर संग्रह हो जाएगा. इससे सरकार को आय होगी और व्यापारियों को बाकी परेशानियों से मुक्ति मिलेगी. व्यापारियों का कहना है कि वर्तमान में जीएसटी के माध्यम से केंद्र सरकार को अपेक्षा से कहीं अधिक कर राजस्व प्राप्त हो रहा है. हालांकि वर्तमान में कर बहुत अधिक हैं. कई प्रकार के कर हैं. कर प्रणाली भी बेहद जटिल है. इससे भ्रष्टाचार और परेशानी बढ़ती है. इन सब से बचने के लिए कुछ क्रांतिकारी निर्णय लेने का समय आ गया है.
जीएसटी बहुत ज्यादा, इसलिए दूसरे करों की जशरत नहीं
वर्तमान में जीएसटी राजस्व में बहुत वृद्धि हुई है. इसलिए दूसरे करों की जशरत नहीं है, यह व्यापारियों की मांग है. अगर हम आयकर स्लैब पर विचार करें तो यह बहुत अयादा है. कॉर्पोरेट के लिए 30 प्रतिशत और व्यापारियों के लिए 35 प्रतिशत का कर है. यह बहुत अयादा है. कुल मिलाकर सरकार के पास आय के कई स्रोत हैं. व्यापारियों को सरकार के पास कर के रूप में बहुत सारा पैसा जमा करना पड़ता है. इसके लिए वकीलों की फीस, दूसरी चीजें, इसके लिए लगने वाला समय बहुत अयादा है. इसलिए कोई एक कर एक अच्छा विकल्प है. जीएसटी सभी को चुकानी पड़ती है. जीएसटी से आय बहुत बढ़ रही है. इसलिए आयकर को धीरे-धीरे कम किया जाना चाहिए. स्टाम्प ड्यूटी, रोड टैक्स, कीमतें इसके कारण बहुत बढ़ रही हैं. सरकार को इस बारे में सोचना चाहिए. दूसरी बात यह है कि बड़ी कंपनियों या बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पास इन सभी अनुपालनों के लिए एक अलग विभाग होता है. लेकिन, छोटे व्यापारियों को इस अनुपालन के लिए बहुत अधिक खर्च करना पड़ता है. वे सिर्फ अनुपालन के लिए अलग से स्टाफ रखने, उन्हें वेतन देने, वकीलों की फीस देने का खर्च वहन नहीं कर सकते. इसलिए, जिनका टर्नओवर कम है, या छोटे व्यापारियों के लिए छूट होनी चाहिए. पांच सौ करोड़, एक हजार करोड़ रुपये के टर्नओवर वाले के लिए भी वही नियम और पांच करोड़ के टर्नओवर वाले व्यापारियों के लिए वही नियम होना, सही नहीं है. छोटे व्यापारी इस अनुपालन के लिए उतना खर्च नहीं कर सकते जितना बड़ी कंपनियां कर सकती हैं. इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए, व्यापारी मांग कर रहे हैं कि टैक्स कम किया जाना चाहिए और एक समान होना चाहिए. राज्य सरकार इस सब के बारे में सकारात्मक दिखती है. उन्हें केंद्र सरकार से अनुरोध करना चाहिए. उम्मीद है कि इसके प्रत्यक्ष परिणाम भी जल्द ही दिखेंगे.
- राजेंद्र बाठिया, महाराष्ट्र राज्य कार्य समिति के समन्वयक
प्रोफेशनल टैक्स समाप्त कर आम आदमी को राहत मिलनी चाहिए प्रोफेशनल टैक्स समाप्त किया जाना चाहिए. भारत के कई राज्यों जैसे राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, गोवा, त्रिपुरा, पुडुचेरी, नागालैंड, जम्मू-कश्मीर, अंडमान और निकोबार, चंडीगढ़, दिल्ली, दादरा, नगर हवेली, लक्षद्वीप, दमन और दीव में ऐसा कोई टैक्स नहीं लगाया जाता है. हालांकि, महाराष्ट्र में कर्मचारियों के 7,500 रुपये मासिक वेतन से 175 रुपये की कटौती करनी पड़ती है. इस संबंध में सरकार को पत्र के माध्यम से अनुरोध करने के बाद, प्रोफेशनल टैक्स में महिला कर्मचारियों के लिए वेतन सीमा बढ़ाकर 25,000 रुपये कर दी गई है. हालांकि, पुरुष कर्मचारियों के लिए यह सीमा पिछले कई वर्षों से 7,500 रुपये है. साथ ही, यदि कोई साझेदारी फर्म है, तो उस साझेदारी फर्म और उसके प्रत्येक साझेदार को भी यह टैक्स देना पड़ता है. यह मामला उन व्यवसायियों के साथ अन्याय है जो स्वरोजगार के माध्यम से दूसरों के लिए रोजगार पैदा करते हैं. भले ही जीएसटी राजस्व हर महीने कर बढ़ा रहा हो, लेकिन व्यवसायियों को भी प्रोफेशनल टैक्स देना पड़ रहा है. उल्लेखनीय है कि ऐसे करों के लिए रिटर्न दाखिल करने की लागत वास्तविक टैक्स से अधिक है. समग्र स्थिति और मुद्दों पर विचार करते हुए, प्रोफेशनल टैक्स को समाप्त करने का निर्णय लेना चाहिए. पिछली अवधि में प्रोफेशनल टैक्स के लंबित मामलों में, एक एम्नेस्टी स्कीम की घोषणा की जानी चाहिए और व्यवसायियों को राहत दी जानी चाहिए. केंद्र सरकार ने आयकर छूट सीमा को बढ़ाकर 12 लाख रुपये करके जनता को राहत दी है. इसी तरह, प्रोफेशनल टैक्स को समाप्त किया जाना चाहिए और आम आदमी को राहत दी जानी चाहिए.
- रायकुमार नहार, अध्यक्ष, दि पूना मर्चेंट्स चेंबर
‘इज ऑफ डूइंग' बिजनेस का माहौल बनाना जशरी
स्थानीय, राज्य, केंद्र जैसे विभिन्न स्तरों पर अभी भी कर लगाए जाते हैं. सरचार्ज भी लगता है. टीसीएस नया है. जीएसटी के लिए साल में 39 रिटर्न दाखिल करने होते हैं. इसके लिए अलग से कर्मचारी नियुक्त करने होते हैं. उन्हें भुगतान करना होता है. यानी खर्चे बढ़ गए हैं. व्यापारियों को परेशानी हो रही है क्योंकि आय से अयादा खर्चे बढ़ गए हैं. इससे लोगों में व्यापार न करने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है. सभी तरह के कर रिटर्न दाखिल करना आसान बनाया जाना चाहिए. वास्तव में, 39 रिटर्न जशरी नहीं हैं. व्यापार करने में आसानी की अवधारणा को वास्तविकता बनाने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए. दूसरी समस्या यह है कि जिनका टर्नओवर कम है, उन्हें तीन महीने में सिर्फ एक बार टैक्स देना होता है. लेकिन, जिनका टर्नओवर अयादा है, उन्हें हर महीने टैक्स देना होता है. इस वजह से बड़े व्यापारियों को अगले दो महीने तक सेट-ऑफ नहीं मिलता. यानी सरकार को हर महीने टैक्स देना पड़ता है, लेकिन उसका सेट-ऑफ हर तीन महीने में मिलता है. इसमें व्यापार का पैसा और पूंजी फंस जाती है. दूसरी बड़ी समस्या यह है कि अगर कोई व्यापारी टैक्स नहीं देता है तो उस व्यापारी से टैक्स वसूला जाता है, जिसके साथ उसने व्यापार किया था. यानी व्यापारियों को पहले अपना टैक्स देना पड़ता है और फिर अगर दूसरा सामनेवाला व्यापारी टैक्स नहीं देता है तो उसका भी टैक्स देना पड़ता है. यह परेशानी नहीं होनी चाहिए. जिसने टैक्स नहीं दिया है, उससे टैक्स वसूला जाना चाहिए. इसके लिए सरकार को कार्रवाई करनी चाहिए. जब तक व्यापारियों को व्यापार करने के लिए स्वतंत्र माहौल नहीं मिलेगा, तब तक महंगाई कम नहीं होगी. ग्राहकों को इस समस्या से जूझना न पड़े तो उचित कर प्रणाली होनी चाहिए व्यापार करने में इज ऑफ डूइंग बिजनेस के लिए ऐसा सकारात्मक माहौल बनाना जरूरी है.
- फतेचंद रांका, अध्यक्ष, पुणे व्यापारी महासंघ