शिवाजीनगर, 15 जून (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क) यूपीआई ट्रांजेक्शन पर टैक्स लगने की खबर व्यापारियों और ग्राहकों के लिए सिरदर्द बन गई है. बताया जा रहा है कि यह टैक्स अगले दो महीने में लग सकता है. व्यापारियों के साथ-साथ उपभोक्ता भी इस तरह से टैक्स लगाने के विरोध में हैं. उपभोक्ताओं के मन में सवाल है कि आखिर सरकार लगातार अलग-अलग टैक्स लगाकर क्या करना चाहती है. कोई भी व्यापारी कभी घाटे को सहकर व्यापार नहीं करता. इसलिए साफ है कि अंतत: घाटा ग्राहकों को ही होगा. हालांकि पॉइंट तीन प्रतिशत टैक्स की रकम पहली नजर में छोटी लग सकती है, लेकिन इससे बड़ा घाटा शुरू हो सकता है, ऐसा व्यापारियों को लगता है. केंद्र सरकार द्वारा दुकानदारों से 3,000 रुपए से ज्यादा के यूपीआई ट्रांजैक्शन पर चार्ज लगाने की खबर फिलहाल बाजार में चर्चा का विषय बनी है. खबर के मुताबिक ग्राहक अगर 3,000 रुपए से ज्यादा का यूपीआई पेमेंट करते हैं, तो दुकानदार को बैंक को 9 रुपए तक टैक्स भरना होगा. बताया जा रहा है कि अगले 2 महीने में नए नियम लागू किए जा सकते हैं. पेमेंट काउंसिल ऑफ इंडिया ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खत लिखकर जीरो मर्चें ट डिस्काउंट रेट नीति पर पुनर्विचार करने की मांग की है. काउंसिल, यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस और रुपे डेबिट कार्ड ट्रांजैक्शन पर 0.3% मर्चेंट डिस्काउंट रेट लगाने के पक्ष में हैं बाजारों में ऐसी चर्चा है उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो, जब ग्राहक कभी भी यूपीआई से 3,000 रुपए से ज्यादा का पेमेंट करेंगे, तो बैंक या पेमेंट कंपनी उस व्यापारी से फीस वसूलेंगे. आम ग्राहक को सीधे कोई चार्ज नहीं देना है. लेकिन, नुकसान सहन कर कोई भी व्यापारी कभी व्यापार नहीं करता. इसका मतलब साफ है कि कुछ दुकानदार यह चार्ज ग्राहक से भी वसूल सकते हैं. छोटे ट्रांजैक्शन (3,000 रुपए तक) और छोटे दुकानदारों पर कोई असर नहीं पड़ेगा, वह पहले की तरह फ्री रहेंगे. लेकिन बड़े व्यवहारों में ग्राहकों को नुकसान होने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता है. मई 2025 में यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस के जरिए 18,67 करोड़ ट्रांजैक्शन हुए. इस दौरान इस दौरान कुल 25.14 लाख करोड़ रुपयों की राशि ट्रांसफर की गई. ट्रांजैक्शन की संख्या में एक महीने में 33% की बढ़ोतरी हुई है.
लोग इसमें भी खामियां निकालेंगे...
ग्राहक बोल रहे हैं कि टैक्स नहीं भरने की सूरत में लोग इसमें भी खामियां निकालेंगे. मतलब, अगर चार हजार रुपये का बिल बनता है तो वे दो-दो हजार रुपये के दो बिल बनाने के लिए बोल सकते हैं. तो इसपर कैसे काबू पाया जाए, यह बड़ा सवाल होगा. क्योंकि, ग्राहकों को लग सकता है कि उन्हें बिना वजह ये टैक्स के पैसे देने पड़ रहे हैं.
नैतिक दृष्टिकोण में यह सही नहीं है अगर व्यापारी खुद यह टैक्स चुकाएं तो मुझे नहीं लगता कि ग्राहकों को ज्यादा परेशानी होगी. लेकिन, लोगों को पहले ऑनलाइन ट्रांजैक्शन की आदत लगाना डालना और फिर उन पर टैक्स लगाना नैतिक रूप से सही नहीं है. आज भले ही पॉइंट तीन प्रतिशत टैक्स लगाने की बात हो रही है. शायद भविष्य में यह दर पॉइंट पांच प्रतिशत, या पॉइंट दस प्रतिशत तक बढ़ सकती है. मुझे डर है कि अगर व्यापारी ग्राहकों से यह पैसा लेना शुरू कर देंगे तो ग्राहक फिर से नकदी का इस्तेमाल करने लगेंगे. वर्तमान में सभी ट्रांजैक्शन बैंकिंग के अंतर्गत आ गए हैं. ट्रांजेक्शन टैक्सेबल हो रहे हैं. एक ओर जीएसटी बढ़ रहा है, साथ ही सरकार का राजस्व बढ़ रहा है. इसके बावजूद यूपीआई लेनदेन पर टैक्स लगाना विपरीत दिशा में पहिया घुमाने जैसा है. इससे नकद लेन-देन में फिर से वृद्धि की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है.
- सूर्यकांत पाठक, कार्यकारी निदेशक, ग्राहक पेठ
इसका खामियाजा उपभोक्ताओं को ही भुगतना पड़ेगा ऐसे किसी भी टैक्स का खामियाजा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उपभोक्ताओं को ही भुगतना पड़ता है. टैक्स की बातों से रिटेल विक्रेताओं को निश्चित रूप से नुकसान होगा. ऑनलाइन ट्रांजैक्शन पर अधिकतम टैक्स लगाने से दुकानदारों को भारी नुकसान होगा. जहां कैश का इस्तेमाल कम करने और यूपीआई का इस्तेमाल बढ़ाने की बात कही जा रही है, वहीं अगर उन्हीं ट्रांजैक्शन पर टैक्स लगाया जाएगा तो इसका कारोबार पर विपरीत असर पड़ेगा. हालांकि 9 रुपये की रकम भले ही छोटी लगती हो, लेकिन बड़े ट्रांजैक्शन पर यह रकम बहुत बड़ी होगी. अंतत: इसका खामियाजा उपभोक्ताओं को ही भुगतना पड़ेगा. एक तरफ बैंक से निकासी पर टैक्स लगाया गया है. बैंक जमा पर टैक्स लगाया गया है. अगर इसमें कोई और टैक्स जोड़ दिया जाए तो यह अनुचित होगा. डर है कि अगर ऐसा टैक्स लगाया गया तो उपभोक्ता फिर से कैश ट्रांजैक्शन की ओर रुख कर लेंगे.
- राज मुछाल, सेक्रेटरी, पूना क्लॉथ असोसिएशन
छोटे व्यापारियों को नुकसार, व्यापार भी कम होगा ऐसा टैक्स लगाना गलत है. यानी 3,000 रुपये के लेन-देन पर अगर 9 रुपये का टैक्स लगाया जाता है, तो व्यापारियों को ही नुकसान होगा. अगर एक दिन में पांच ऐसे लेन-देन भी किए जाएं, तो व्यापारियों को 45 रुपये का नुकसान होगा. चूंकि क्रेडिट कार्ड पर टैक्स लगता है, इसलिए ग्राहक उस पैसे का भुगतान करने से कतराते हैं. रुपे कार्ड या डेबिट कार्ड पर अभी भुगतान निशुल्क है. या फिर यूपीआई के जरिए भुगतान किया जाता है. अगर टैक्स लगाया जाता है, तो यह भुगतान कम हो जाएगा. बड़े मॉल मालिकों को भले ही इससे कोई परेशानी न हो, लेकिन इस तरह के टैक्स से छोटे व्यापारियों को नुकसान होगा और व्यापार भी कम होगा. मध्यम वर्ग और आम उपभोक्ता भी इस पॉइंट तीन प्रतिशत टैक्स को बड़ा मानते हैं. उनके लिए यह रकम बड़ी है. अगर यह टैक्स ग्राहक चुकाते हैं, तो ग्राहकों को नुकसान होगा और अगर वे नहीं चुकाते हैं, तो व्यापारियों को नुकसान होगा. एक तरफ सरकार डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा दे रही है, दूसरी ओर, ऐसे लेनदेन पर कर लगाना हानिकारक हो सकता है.
- मीठालाल जैन, अध्यक्ष, पुणे हायर पर्चेज एसोसिएशन
एक और टैक्स जुड़ने से ग्राहकों में नाराजगी संभव
यूपीआई पर सोने-चांदी के लेन-देन में 99,000 रुपये तक का भुगतान किया जा सकता है. लेकिन अगर इस पर टैक्स लगेगा तो ऐसे में ग्राहक इस लेन-देन को बंद करने का डर है. क्योंकि, पॉइंट तीन प्रतिशत टैक्स की वजह से ग्राहकों को अयादा पैसे देने पड़ सकते हैं. भले ही वह रकम कम दिखती हो, लेकिन बड़े व्यवहारों में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. उदाहरण के तौर पर कहें तो, कुछ लोग जो अपनी गाड़ी में पेट्रोल की टंकी पूरी भरवाते हैं, उनका बिल 3 हजार रुपये से अधिक होगा. अगर वे यूपीआई से भुगतान करेंगे तो उस पर टैक्स देना होगा. टैक्स नहीं देने की सूरत में वह ग्राहक नकद लेन-देन शुरू कर देंगे. फिलहाल जीएसटी है. अन्य टैक्स भी चल रहे हैं. अगर इसमें एक और टैक्स जुड़ जाता है, तो ग्राहकों में काफी नाराजगी हो सकती है.
- दत्तात्रेय देवकर, सचिव, महाराष्ट्र राज्य सर्राफ सुवर्णकार महासंघ