परिसीमन के बाद हमारी लाेकसभा में कुल 800 सीटें हाेंगी

27 Jun 2025 16:26:18
 
 
 

thoughts 
बात ताे चुभेगी
 
केंद्र सरकार ने जनगणना की अधिसूचना जारी कर दी है, जाे 2027 में हाेनी है. जनगणना यानी आबादी की गिनती का काम ताे 2021 में ही हाे जाना चाहिए था, लेकिन काेराेना के कारण जनगणना का काम रुका, ताे फिर वह टलता ही चला गया, जबकि सरकार के कल्याणकारी कामकाज और सामाजिक न्याय के लिए समय पर जनगणना जरूरी है, जिससे कि देश की आबादी में विभिन्न तबकाें की हिस्सेदारी का सही आंकड़ा सामने हाे. जनगणना सिर्फ देर से ही नहीं हाे रही है, इस बार हाेने वाली जनगणना कई कारणाें से अलग भी है. पहला कारण यह है कि इस बार की जनगणना में जाति जनगणना का काम भी हाेना है. देश में जाति जनगणना आखिरी बार 1931 में हुई थी. हालांकि 2011 की जनगणना में सामाजिक, आर्थिक और जाति आधारित आंकड़े एकत्र किये गये थे, लेकिन उन आंकड़ाें में त्रुटियां हाेने के कारण उन्हें सार्वजनिक नहीं किया गया था.
 
केंद्र सरकार ने इस बार जाति जनगणना का फैसला क्याें लिया? सच ताे यह है कि भाजपा पहले जाति जनगणना के पक्ष में नहीं थी, जबकि विपक्ष जाति जनगणना की बात कर रहा था. कर्नाटक में जाति सर्वेक्षण काे मंजूरी कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार ने 2015 में दी थी.हालांकि दबावाें के चलते उसकी रिपाेर्ट ही सार्वजनिक नहीं की गयी. अब कर्नाटक सरकार ने दाेबारा जाति सर्वेक्षण कराने का निर्णय लिया है. बिहार में जब जातिगत सर्वेक्षण कराया गया था, तब नीतीश कुमार इंडिया गठबंधन का हिस्सा थे. बिहार के जाति सर्वेक्षण के निष्कर्ष बताते हैं कि राज्य की आबादी में ओबीसी और इबीसी (अति पिछड़ा वर्ग) की हिस्सेदारी 63.13प्रतिशत है. ऐसे ही, तेलंगाना के जाति सर्वे क्षण की रिपाेर्ट के मुताबिक, पिछड़े वर्ग की आबादी कुल जनसंख्या का 56.33 प्रतिशत है. हालांकि बीआरएस (भारत राष्ट्र समिति) और भाजपा का आराेप है कि राज्य के जाति सर्वेक्षण में पिछड़ाें की आबादी जानबूझकर कम बतायी गयी है.
 
यानी तीन में से दाे राज्याें में जाति सर्वेक्षण विवाद का भी कारण बना है. भाजपा अगर जाति जनगणना के पक्ष में राजी हुई है, ताे उसका एक उद्देश्य चुनावी लाभ भी है. सामान्य धारणा है कि देश में ओबीसी की आबादी बढ़ी है. जनगणना के जरिये ओबीसी की आबादी में वृद्धि के आंकड़े सामने आयेंगे, ताे माेदी सरकार ओबीसी के हिताें में कदम उठायेगी. भाजपा ब्राह्मण और बनियाें की पार्टी वाली अपनी छवि काे बहुत पहले ही पीछे छाेड़ आयी है और प्रधानमंत्री खुद काे ओबीसी पहचान से जाेड़ते हैं. जाति जनगणना के लिए राजी हाेने का यह भी एक कारण है.इस बार की जनगणना में परिसीमन का मुद्दा भी जुड़ा हुआ है. इसके 2026 में हाेने की बात है. परिसीमन निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं काे फिर से निर्धारितकरने की प्रक्रिया है. संविधान के अनुसार, प्रत्येक जनगणना के बाद संसद और विधानसभाओं की सीटाें की संख्या काे पुन: समायाेजित किया जाना चाहिए.
 
देश में परिसीमन चार बार-1952, 1963, 1973 और 2002 में हुआ. वर्ष 1971 की जनगणना के बाद 1976 में परिसीमन हाेना था, पर इंदिरा गांधी की सरकार ने संविधान में संशाेधन कर उसे पच्चीस साल के लिए इसलिए टाल दिया कि परिवार नियाेजन की नीतियाें काे प्रभावी तरीके से लागू करने वाले राज्याें काे प्रतिनिधित्व के माेर्चे पर नुकसान न हाे. वर्ष 2001 में जनगणना के साथ निर्वाचन क्षेत्राें की सीमाएं नये सिरे से तय की गयीं, लेकिन दक्षिण भारत के राज्याें के विराेध की वजह से सीटाें की संख्या में बदलाव नहीं किया गया. तब परिसीमन काे फिर 25 साल के लिए टाल दिया गया था. इस हिसाब से परिसीमन 2026 में हाेने वाला है और केंद्र की माेदी सरकार इसे लागू करने के पक्ष में है.
 
चूंकि परिसीमन के तहत अधिक आबादी वाले राज्याें में लाेकसभा की सीटें बढ़ाये जाने का प्रावधान है, ऐसे में, अधिक जनसंख्या वाले राज्याें, जैसे-उत्तर प्रदेश, बिहारआदि काे इसका लाभ मिलेगा. इससे उत्तर प्रदेश में लाेकसभा सीटाें की संख्या 80 से बढ़ कर 128 और बिहार में 40 से बढ़ कर 70 हाे सकती है. लाेकसभा की कुल सीटें बढ़ कर 800 के आसपास जा सकती हैं, लेकिन दक्षिण के जिन राज्याें ने दशकाें से आबादी नियंत्रण पर काम किया है, उन्हें परिसीमन से बहुत लाभ हाेने वाला नहीं है.चूंकि दक्षिण भारत में भाजपा राजनीतिक रूप से उतनी मजबूत नहीं है, ऐसे में, परिसीमन के बाद भाजपा काे चुनावी जीत के लिए शायद दक्षिण भारत पर निर्भर भी न रहना पड़े. परिसीमन के प्रति माेदी सरकार की अनुकूलता का यह एक कारण माना जा रहा है.
 
हालांकि दक्षिण के राज्याें में इसे लेकर भारी असंताेष है और वे इसे टालने का अनुराेध कर चुके हैं. यही नहीं, जनसंख्या नियंत्रण के नुकसान काे देखते हुए दक्षिण के कई राजनेता अब आबादी बढ़ाने की भी अपील कर रहे हैं. जाहिर है कि परिसीमन पहले से ही व्याप्त उत्तर और दक्षिण भारत के द्वंद्व काे और गहरा करेगा. संविधान निर्माताओं ने शायद ही इस बात की कल्पना की हाेगी कि भविष्य में परिसीमन काे लेकर भी विवाद हाेगा और यह देश में विभाजन का कारण बन सकता है.परिसीमन के साथ महिला आरक्षण बिल का लागू हाेना भी जुड़ा हुआ है. वर्ष 2023 में यह विधेयक (नारी शक्ति वंदन अधिनियम) संसद के दाेनाें सदनाें से पारित ताे हाे गया, लेकिन सरकार के मुताबिक, परिसीमन के बाद ही इसे लागू किया जायेगा. यानी महिला आरक्षण भविष्य में बढ़ायी जाने वाली सीटाें पर तय हाेगा, जबकि विपक्ष महिला आरक्षण का लाभ भविष्य में देने की आलाेचना कर रहा है.
- नीरजा चाैधरी
Powered By Sangraha 9.0