शशादी में दिखावा नहीं, परंपरा और सादगी हो मूल मंत्र आज शादी समारोह दिखावे की प्रतियोगिता बनते जा रहे हैं. लोग जितना खर्च नहीं कर सकते, उतना भी करते हैं, ताकि समाज में नाम हो. लेकिन मेरा मानना है कि शादी केवल रीति-रिवाजों और परंपराओं के अनुसार सादगी से संपन्न होनी चाहिए्. मैंने स्वयं कभी दहेज न दिया और न ही लिया, और हमेशा दूसरों को भी यही सलाह देता हूं कि दहेज प्रथा को समाप्त कर्ें. कम लोगों को बुलाकर, कम और गुणवत्तापूर्ण भोजन रखकर शादी को सार्थक और संयमित बनाया जा सकता है.
- प्रसन्ना पाटिल, पिंपले गुरव
फिजूल खर्च की बजाय जरूरतमंदों की मदद में लगाएं पैसा शादी में अनावश्यक खर्च करने से अच्छा है कि उस पैसे का उपयोग गरीबों, आश्रमों या जरुरतमंदों की सहायता के लिए किया जाए. इससे न केवल समाज में सकारात्मक बदलाव आएगा, बल्कि हमें आत्मिक संतोष और सच्ची खुशी भी मिलेगी. जब हम दान करते हैं, तो हमारा जीवन ज्यादा अर्थपूर्ण बनता है. शादी जैसे पवित्र अवसर को सेवा के रूप में उपयोग किया जा सकता है.
- सविता राजेंद्र कुंभार, वारजे
समाज को बदलनी होगी फिजूलखर्ची की मानसिकता शादी में फिजूलखर्ची से लोगों पर अनावश्यक आर्थिक और मानसिक दबाव पड़ता है. जरूरत है कि समाज के लोग इस मुद्दे पर आपस में संवाद करें और सीमित बजट में शादी को स्वीकार कर्ें. यदि समाज के प्रभावशाली लोग, नेता और बुद्धिजीवी इस दिशा में पहल करें, तो निश्चित रूप से बड़ा बदलाव संभव है. मैं खुद यह प्रयास करता हूं कि अपने आसपास के लोगों को समझाऊं कि कम खर्च में भी शादी सुंदर और यादगार हो सकती है.
-नरेंद्र अग्रवाल, निगड़ी
सामाजिक नियम बनें, तो खर्च में आएगा अनुशासन यदि समाज इस बात पर सहमत हो कि शादियों में कुछ निश्चित सीमाओं के भीतर ही खर्च किया जाए, तो यह न केवल आर्थिक अनुशासन को बढ़ावा देगा, बल्कि समाज में सादगी और समानता की भावना भी बढ़ेगी. बचे हुए पैसों का उपयोग बच्चों की शिक्षा और गरीबों की मदद के लिए किया जा सकता है. मेरा मानना है कि शादी जैसे जीवन के महत्वपूर्ण अवसर को संयम और सेवा के साथ मनाया जाए तो उसका मूल्य और भी बढ़ जाता है.
- अनुराधा कॉन्ट्रैक्टर, तलेगांव
स्वास्थ्य, समय और पैसे तीनों की बचत करना जरूरी आजकल लोग डाइटिंग पर होते हैं और फिर भी शादियों में ढेरों स्टॉल लगाए जाते हैं, जिससे खाना बर्बाद होता है. यह न केवल संसाधनों की बर्बादी है, बल्कि शरीर के लिए भी हानिकारक हो सकता है. हमें यह समझना चाहिए कि शादी का उद्देश्य सादा और शुभ होना चाहिए, न कि भव्य और महंगा. डेस्टिनेशन वेडिंग जैसी चीजें सबके लिए संभव नहीं होतीं और इससे कई लोगों को असुविधा होती है. बेहतर होगा अगर उस खर्च को बच्चों के भविष्य के लिए सुरक्षित किया जाए.
- सरस्वती जयकिशन गोयल, एनआईबीएम रोड, पुणे
कम मेहमान, कम बर्बादी, अधिक खुशी जरूरी मैं हमेशा कोशिश करता हूं कि शादी जैसे आयोजनों में कम से कम लोगों को आमंत्रित किया जाए और भोजन की बर्बादी न हो. यह केवल आर्थिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और पर्यावरणीय दृष्टि से भी आवश्यक है. शादी पारंपरिक रीति-रिवाजों से होनी चाहिए, जिसमें भावनाओं और अपनत्व को महत्व दिया जाए, न कि दिखावे और प्रदर्शन को.
-मिलिंद गोविंद पंडित, निगड़ी
सीमित खर्च से मिलेगी अधिक संतुष्टि शादी में अगर सीमित खर्च किया जाए, तो न केवल आर्थिक रूप से हल्का रहेगा, बल्कि सभी को संतोष भी मिलेगा. सीमित और स्वादिष्ट भोजन, साफ-सुथरी व्यवस्था और आत्मीय माहौल, यही शादी की पहचान होनी चाहिए्. इससे न केवल पर्यावरण की रक्षा होगी, बल्कि हमारे अंदर भी संतुलन और समझदारी विकसित होगी. फिजूलखर्च केवल तनाव बढ़ाता है, सादगी सच्ची खुशी देती है.
- प्रवीण नंदकिशोर अग्रवाल, निगड़ी