शास्त्र शब्द-ज्ञान दे सकता है, समझ नहीं !

30 Jun 2025 11:07:20
 
 

Osho 
मैंने सुना है, ऐसा हुआ: एक सम्राट के घर एक बेटा पैदा हुआ. इकलाैता बेटा. सम्राट की बड़ी आशायें उस पर थीं.और जहां बहुत आशायें हाेती हैं, वहां निराशा हाथ लगती है. बेटा ताे सर्वांग-सुंदर था, स्वस्थ था, लेकिन बिलकुल बुद्धू था. और सारे साम्राज्य काे उसके हाथ में साैंपने का सवाल था. सम्राट बहुत चिंतित हुआ. उसने मित्राें काे पूछा, सलाह मांगी, बुद्धिमानाें से पूछा. उन्हाेंने कहा, इसे ऐसा कराे, भारत भेज दाे-कहानी चीन की है-इसे काशी भेज दाे. क्याेंकि काशी उन दिनाें केंद्र था ज्ञान का. वहां से यह ज्ञानी हाेकर वापिस लाैट आयेगा. सम्राट ने बेटे काे काशी भेज दिया और कहा कि जब तक ज्ञानी न हाे जाये, तब तक आने का नाम ही मत लेना. मर जाना चाहे वहां, लेकिन ज्ञान बिना लिए मत लाैटना. यह द्वार तेरे लिए तभी खुलेगा जब तू ज्ञानी हाे कर लाैट आये. उस बुद्धू ने बड़ी मेहनत की.
 
मेहनत से दुनिया में काेई ज्ञानी नहीं हाे जाता. उसने बड़ा श्रम किया. सफलता भी पाई. वह पंडित हाे गया. उसे सब शास्त्र कंठस्थ हाे गये. कहीं से भी पूछाे और जवाब तैयार! उसके पास सब जवाब रेडीमेड हाे गये.ज्ञानी के पास ताे चेतना हाेती है, पंडित के पास जवाब हाेते हैं. ज्ञानी की ताे प्रज्ञा जगती है, पंडित की स्मृति भरती है. उसने सब परीक्षायें उत्तीर्ण कर लीं. क्याेंकि परीक्षायें ज्ञान की ताे हाेती नहीं, स्मृति की हाेती हैं. अब तक ज्ञान की काेई परीक्षा हम ईजाद नहीं कर पाये. कितनी याददाश्त है. याददाश्त बुद्धुओं के पास ज्यादा हाे सकती है. अक्सरऐसा हाेता है कि बहुत बुद्धिमान आदमी बहुत सी बातें याद नहीं रख पाता. बुद्धू बहुत सी बातें याद रख लेता है.
 
क्याेंकि उसके लिए बुद्धि का काेई उपयाेग नहीं है. बुद्धि ताे एक खाली काेष्ठ की तरह है जिसमें चीजें भरते जाओ.बुद्धि का जीवन में ताे काेई प्रयाेग है नहीं. र्सिफ चीजें उसमें भरते जाने का एकमात्र उपयाेग है. बुद्धि एक संग्रह है. वह भरता जाता है. पंद्रह-बीस वर्ष के बाद बेटे ने खबर दी कि अब मैं निष्णात हाे गया, और जाे भी जानने याेग्य था यहां, सब मैंने जान लिया. सब परीक्षायें उत्तीर्ण कर लीं.
अब मुझे घर बुला लिया जाये. बड़े सम्मान से सम्राट ने उसे घर वापिस बुलाया. उसके स्वागत में बड़ा स्वागत-समाराेह भाेज दिया. राज्य के सभी बुद्धिमान लाेगाें काे बुलाया, ताकि वे भी देख लें कि बेटा अब बुद्धिमान हाे गया. सम्राट का जाे बड़ा वजीर था, वह भाेज में राजकुमार के पास ही बैठा था.
 
उसने पूछा र्सिफ परीक्षा की दृष्टि से कि क्या-क्या सीखा? ताे उस लड़के ने कहा, जाे भी सीखा जा सकता था, सब सीख लिया. ज्याेतिष मैं जानता हूं, अंकशास्त्र मैं जानता हूं, हस्तरेखा-विज्ञान मैं जानता हूं, व्याकरण, गणित, तर्क, भूगाेल, इतिहास सब मैं जानता हूं. यही नहीं, मैंने परामनाेविज्ञान की भी विधियां सीखी हैं. अगर तुम काेई चीज छिपा दाे, ताे मैं बता सकता हूं कि वह चीज कहां छिपी है और कैसी? वजीर हैरान हुआ. उसने टेबल के नीचे अपने हाथ की अंगूठी निकाल कर मुट्ठी में ले ली और कहा, ताे िफर बताओ कि मेरी मुट्ठी में क्या छिपा है? उस लड़के ने आंख बंद की और कहा कि मेरे शास्त्र के अनुसार, जाे भी मैंने जाना उसके अनुसार, एक गाेल वर्तुलाकार वस्तु तुम्हारे हाथ में है, जिसके बीच में एक छेद है.
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