हर साल बनने वाला 3 लाख टन बायाेमेडिकल कचरा पर्यावरण के लिए नासूर व लाेगाें के लिए जानलेवा बन गया है. आलम यह है कि अकेले महाराष्ट्र में हर दिन 78 हजार किलाे बायाेमेडिकल वेस्ट तैयार हाे रहा है. आलम यह है कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बाेर्ड (सीपीसीबी) की रिपाेर्ट में कई चाैंकाने वाले दावे किये गये हैं. इलाज इस्तेमाल सुई, सीरिंज, पट्टियां, ग्लव्ज (दस्ताने), पाॅलिथीन, ट्यूब आदि का पूरी तरह निपटारा नहीं हाेता. अधिकतर डाॅ्नटर्स, ्नलीन्निस व हाॅस्पिटल्स नियमाें का सख्ती से पालन नहीं करते, जिसके कारण लाेगाें के स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है.दुनिया में हर साल 16 कराेड़ से ज्यादा इंजे्नशन लगाये जाते हैं और इनके वेस्टेज का अच्छे से निपटारा न हाेने से भी स्थिति खतरनाक बन रही है