काशी का पंडित साेचता है कि जब तक काेई पांडित्य काे उपलब्ध न हाे, बडीबड़ी उपाधियां न हाें, तब तक काेई ज्ञान काे कैसे उपलब्ध हाेगा? स्वामी रामतीर्थ अमेरिका से भारत वापस लाैटे. अमेरिका में ताे उन्हें बड़ी ख्याति मिली. अमेरिका शायद अकेला मुल्क है मनुष्य जाति के इतिहास में जहां पंडित का काेई बहुत मूल्य नहीं है.व्यावहारिक आदमी का मूल्य है. अमेरिका में तुम्हें ऐसे प्राेफेसर मिल जाएंगे जिनके पास काेई डिग्री नहीं है और यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं. यह बडा कठिन मामला है.भारत में तुमकाे काेई ऐसा प्राेफेसर नहीं मिल सकता जिसके पास डिग्री न हाे और यूनिवर्सिटी में पढ़ाता हाे. डिग्री ताे हाेनी चाहिये, चाहे गधा डिग्रीधारी हाे वह यूनिवर्सिटी में प्राेफेसर हाे जाएगा.तुम चकित हाेओगे, कबीरदासजी काे पढ़ानेवाले प्राेफेसर हैं, कबीरदासजी अगर आ जाएं ताे उनकाे प्राेफेसरी नहीं मिल सकती.
यूनिवर्सिटी में कबीरदास पर थीसिस लिखी जाती है, कबीरदास पर थीसिस लिखनेवाले डाॅक्टर हाे जाते, प्राेफेसर हाे जाते, कबीरदासजी अगर आ जाएं ताे यूनिवर्सिटी कमीशन उनसे पूछेगा क डिग्री कहां है ? गुम सिर्फ अमेरिका में कबीरदास काे भी प्राेफेसरी मिल सकती है. अमेरिका की पकड़ व्यावहारिक है.अमेरिका में ऐसे बहुत से कवि-प्राेफेसर हैं, जिनके पास काेई डिग्री नहीं है. लेकिन डिग्री क्या कराेगे? जाे आदमी कविता काे जन्म दे सका है, जिसकी कविता पढ़ाने काे सैकडाें वर्ष प्राेफेसर संलग्न रहेंगे, तुम उसकाे प्राेफेसरी नहीं दे सकते? उसकाे अपनी कविता समझाने का माैका नहीं दे सकते? अमेरिका में ऐसे लाेग इंजीनियर हैं, जिनके पास काेई डिग्री नहीं. लेकिन अनुभव है, अमरीका अनूठा है इस लिहाज से. अमरीका की पकड़ बहुत व्यावहारिक है. क्याेंकि अमेरिका व्यवसायी देश है.
व्यवसायी की पकड़ व्यावहारिक हाेती है, प्रैक्टिकल. व्यवसायी हमेशा व्यावहारिक हाेता है. उसकी नजर इस पर हाेती है कि परिणाम किससे आते हैं? रामतीर्थ अमेरिका में रहे ताे लाेगाें ने खूब उन्हें आदर दिया. क्याेंकि बात इतनी प्रत्यक्ष थी! अब यह पूछने की जरूरत थाेड़े ही थी रामतीर्थ से कि तुमने कितने शास्त्र पढ़े हैं? तुम वेद जानते कि नहीं? यह रामतीर्थ की माैजूदगी वेद की माैजूदगी थी.यह वाणी वेद की वाणी थी. इन आंखाें में सागर लहरा रहा था. यह रामतीर्थ की मस्ती काफी थी प्रमाण. लेकिन यह बात काशी में नहीं चलेगी. जब रामतीर्थ वापस लाैटे ताे वे काशी गये. और काशी में बड़ी उन्हें हैरानी हुई. क्याेंकि जब वे काशी में बाेले ताे एकआदमी बीच में खड़ा हाे गया एक पंडित और उसने कहा, रुकिये! संस्कृत आती है ? रामतीर्थ काे संस्कृत आती नहीं थी, वे ताे फारसी के विद्वान थे.
लाहाैर में पढ़े, लाहाैर के पास ही पैदा हुए, उर्दू जानते थे, फारसी जानते थे. और गणित के प्राेफेसर थे. संस्कृत से ताे कुछ लेना ही देना नहीं था. चाैंककर रामतीर्थ रह गये. और उस आदमी ने कहा, महाराज, पहले संस्कृत ताे पढाे! वेद का कुछ पता नहीं है और ब्रह्मज्ञान बखान रहे हाे! यह ब्रह्मज्ञान किसी काम का नहीं है. यह सब बातचीत है, जब तक शास्त्र का समर्थन नहीं है.उसे रामतीर्थ दिखायी नहीं पड़ते! रामतीर्थ सामने बैठे हैं. इससे ज्यादा मस्त आदमी इन साै वर्षाें में भारत में दूसरा नहीं हुआ. इससे ज्यादा सूफियाना, माैलिक, इससे ज्यादा परमात्मा के निकट मुश्किल से काेई आदमी हाेता है. मगर नहीं, पंडिताें काे यह बात न दिखी. सभा उखड़ गयी, लाेगाें ने कहा कि छाेड़ाे, जाने दाे, क्या रखा है! संस्कृत तक ताे आती नहीं! काेई प्रयाेजन नहीं है संस्कृत के जानने से. मुसलमान हाेने के लिए अरबी जानना आवश्यक नहीं है. न हिंदुत्व के सार काे समझने के लिए संस्कृत जानना जरूरी है.