पंजाब और हरियाणा हाईकाेर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए बालिग अविवाहित बेटियाें के हक में बड़ी बात कही है. काेर्ट ने कहा कि अब ऐसी बेटियां भी अपने माता-पिता से भरण-पाेषण (मैंटेनेंस) की मांग कर सकती हैं.यह फैसला भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के दायरे काे विस्तार देने के रूप में देखा जा रहा है. अब तक की स्थिति यह थी कि काेई बेटी केवल तभी भरण-पाेषण की हकदार मानी जाती थी, जब वह नाबालिग हाे या मानसिक/ शारीरिक रूप से अक्षम हाे. जैसे ही वह 18 साल की हाेती, उसका यह अधिकार खत्म हाे जाता, खासकर अगर मामला साधारण न्यायिक मजिस्ट्रेट फर्स्ट क्लास की अदालत में चल रहा हाे. लेकिन अब हाईकाेर्ट ने साफ कर दिया है कि यदि बालिग बेटी अविवाहित है और आत्मनिर्भर नहीं है, ताे वह भी अपने माता-पिता से गुजारा भत्ता मांग सकती है.
इस फैसले काे महिला अधिकाराें की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है. इससे उन बेटियाें काे राहत मिलेगी,जाे उच्च शिक्षा या अन्य कारणाें से आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं हाे पातीं.यह फैसला गुरदासपुर की दाे बहनाें द्वारा दायर एक पुनरीक्षण याचिका पर आया, जिसमें उन्हाेंने अपने पिता के खिलाफ भरण-पाेषण की राशि बढ़ाने की मांग की थी. याचिका के अनुसार, पहले याचिका न्यायिक मजिस्ट्रेट फर्स्ट क्लास के समक्ष दायर की गई थी, जहां इसे यह कहकर खारिज कर दिया गया कि बेटी बालिग हाे चुकी है और इसलिए अब धारा 125 सीआरपीसी के तहत भरण-पाेषण की हकदार नहीं है. लेकिन जब यह याचिका फैमिली काेर्ट में पेश की गई, ताे उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि फैमिली काेर्ट इस पर निर्णय देने के लिए सक्षम है.