दलाई लामा का मुद्दा और भारत-चीन की परंपरा?

15 Jul 2025 13:43:46
 
 

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विगत 2 जुलाई काे, अपने 90वें जन्मदिन से कुछ दिन पहले दलाई लामा ने कहा, ‘मैं यह पुष्टि करता हूं कि दलाई लामा संस्था जारी रहेगी और भविष्य में मेरे पुनर्जन्म काे मान्यता देने का अधिकार केवल गदेन फाेडरंग ट्रस्ट काे हाेगा, किसी और काे इसमें दखल देने का काेई अधिकार नहीं है.’ छह जुलाई काे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र माेदी ने दलाई लामा काे उनके 90वें जन्मदिन पर दीर्घायु और उत्तम स्वास्थ्य की शुभकामनाएं दीं, जिससे चीन भड़क उठा. चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने एक मीडिया ब्रीफिंग में कहा कि ‘नई दिल्ली काे शित्सांग (तिब्बत) से जुड़े मामलाें की अत्यधिक संवेदनशीलता काे पूरी तरह समझना चाहिए और 14वें दलाई लामा के स्वभाव काे पहचानना चाहिए’. उन्हाेंने आगे यह कहा कि 14वें दलाई लामा राजनीतिक निर्वासित हैं, जाे लंबे समय से अलगाववादी गतिविधियाें में संलग्न हैं. भारत में चीन के राजदूत श्वी फेईहूंग ने भी कुछ इसी तरह की टिप्पणी की.
 
उत्तराधिकारी से संबंधित दलाई लामा की यह घाेषणा सीधे बीजिंग के उस दावे काे चुनाैती देती है कि तिब्बती धार्मिक मामलाें पर सिर्फ चीन का एकाधिकार है. यह दावा 1793 की साम्राज्यकालीन परंपराओं और 2007 के आधुनिक कानूनी प्रावधानाें पर आधारित है. रीतियाें की बात करें, ताे अक्सर उद्धृत ‘तिब्बत के अधिक प्रभावी शासन के लिए 1793 के 29-धारा अध्यादेश’ का हवाला दिया जाता है, जिसके तहत अंबान (तिब्बत में चीन के सम्राटीय आयु्नत) काे दलाई लामा और पंचेन लामा के समान दर्जा दिया गया था. दलाई लामा, पंचेन और अन्य उच्च लामा का पुनर्जन्म गाेल्डन अर्न की प्रक्रिया से अंबानाें की देख-रेख में निर्धारित किया गया और इसे सम्राट के दरबार में स्वीकृति के लिए भेजा गया.
 
जुलाई, 2007 में चीन के राज्य धार्मिक मामलाें के प्रशासन ने ऐसे नियम जारी किये, जिससे तिब्बती बाैद्ध पुनर्जन्म पर बीजिंग काे विशेष अधिकार मिल गया. इसक अनुच्छेद दाे में कहा गया कि काेई भी पुनर्जन्म राज्य की एकता, जातीय एकजुटता और धार्मिक सामंजस्य बनाये रखेगा, पारंपरिक अनुष्ठानाें और ऐतिहासिक परंपराओं का सम्मान करेगा, लेकिन सामंती विशेषाधिकाराें काे पुनर्जीवित नहीं करेगा. सबसे अहम यह है कि किसी भी विदेशी व्य्नित या संगठन काे इस प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं है. इस कानूनी ढांचे से चीन काे अधिकार मिलता है कि वह विदेश में घाेषित किसी भी दलाई लामा के पुनर्जन्म काे अमान्य घाेषित कर सके.हालांकि चीन ने दलाई लामा की घाेषणा काे अवैध करार दिया है, फिर भी अब ऐसा परिदृश्य बनने जा रहा है जिसमें तिब्बत का प्रश्न और गहरा सकता है.
 
एक दलाई लामा, जिन्हें निर्वासित तिब्बती समुदाय दलाई लामा केआशीर्वाद से चुनेंगे, और दूसरे काे बीजिंग द्वारा तिब्बत में सख्त नियंत्रण में स्थापित किया जायेगा, जैसा पंचेन लामा के मामले में हुआ था. यह केवल धार्मिक विभाजन नहीं, बल्कि खुला भू-राजनीतिक संकट हाेगा. भारत की दुविधा इसमें साफ है- अगर दलाई लामा भारत में पुनर्जन्म लेते हैं, ताे नयी दिल्ली के लिए उसे मान्यता देना या न देना, दाेनाें ही स्थिति में चीन के साथ उसके संबंधाें पर गंभीर असर पड़ेगा.अगर भारत दलाई लामा की इच्छा का समर्थन करता है, ताे बीजिंग इसे अपने आंतरिक मामलाें में हस्तक्षेप और अलगाववाद काे प्राेत्साहन मानकर देखेगा. यह संदेह नया नहीं है. चीन हमेशा ही दलाई लामा काे ‘विभाजनकारी’ मानता आया है, भले ही उन्हाेंने बार-बार चीनी संविधान के अंतर्गत ‘वास्तविक स्वायत्तता’ की मांग की है, न कि पूर्ण स्वतंत्रता की.
 
ऐसी स्थिति में चीन पाकिस्तान के साथ रणनीतिक तालमेल बढ़ाकर भारत पर दबाव बढ़ा सकता है. हाल ही में पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ त्रिपक्षीय बैठक बुलाकर चीन ने संकेत दे दिया कि वह भारत काे घेरने के लिए नये गठजाेड़ बनाने काे तैयार है.
पाकिस्तान के जरिये ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में चीन के हथियाराें के परीक्षण की यादें अभी ताजा हैं. पूर्व और पश्चिम, दाेनाें माेर्चाें पर दबाव बनाकर भारत काे घेरने की दीर्घकालिक याेजना पर चीन काम कर सकता है. वह अपनी आर्थिक ताकत काे अपना हथियार बना सकता है और दुर्लभ खनिजाें व दवाओं के लिए जरूरी एपीआई के निर्यात काे राेक सकता है. इससे भारत की इलेक्ट्रिक वाहन नीति और दवा उद्याेग पर सीधा असर पड़ेगा. इसके साथ ही, चीन तिब्बत से निकलने वाली ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध निर्माण का काम तेज कर सकता है या जल प्रवाह काे माेड़ सकता है, जिससे पूर्वाेत्तर भारत में कृषि और जन-जीवन के प्रभावित हाेने की आशंका रहेगी.
-बीआर दीपक
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