अमेरिका के टैरिफ से भारत-चीन दाेनाें का मुकाबला है?

18 Jul 2025 13:34:40
 

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भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर की सिंगापुर व चीन की यात्रा बदलती विश्व व्यवस्था के अनुकूल मानी जाएगी. सिंगापुर में बेशक ‘ए्नट ईस्ट पाॅलिसी’ काे आगे बढ़ाने पर जाेर दिया गया, मगर गलवान में पांच साल पहले हुई हिंसक झड़प के बाद पहली बार किसी भारतीय विदेश मंत्री के चीन जाने पर चर्चा स्वाभाविक ही है.जयशंकर शंघाई सहयाेग संगठन (एससीओ) के विदेश मंत्रियाें की बैठक में शिरकत करने तियानजिन पहुंचे थे. अपने चीनी समकक्ष वांग यी के साथ मुलाकात में दाेनाें नेताओं ने भारत-चीन द्विपक्षीय संबंधाें की समीक्षा की. वास्तव में, यह भारत-चीन संबंधाें का भी ‘प्लैटिनम जुबली’ दाैर है. दाेनाें देशाें की 75 वर्षाें की इस द्विपक्षीय कूटनीतिक यात्रा में कई पड़ाव आए हैं.लिहाजा, उचित ही दाेनाें नेताओं ने संबंधाें की स्थिरता पर जाेर दिया. कैलास मानसराेवर यात्रा काे फिर से शुरू करने में चीन के सहयाेग की सराहना भी की गई.
यही नहीं, दाेनाें ने एक-दूसरे देश में लाेगाें की आवाजाही बढ़ाने और सीधी उड़ान सेवा की दिशा में अतिर्नित कदम उठाने पर भी सहमति जताई.पिछले साल अ्नटूबर में ब्र्निस सम्मेलन के इतर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र माेदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात हुई थी. उसके बाद से ही यह संकेत मिलने लगे थे कि भारत और चीन के रिश्ते पटरी पर लाैटने लगे हैं. चूंकि अगले महीने फिर से ये दाेनाें शासनाध्यक्ष एससीओ बैठक में मिलने वाले हैं, इसलिए भारतीय नेताओं की हाल-फिलहाल में चीन-यात्रा बढ़ी है. उल्लेखनीय है, पिछले दिनाें एससीओ के रक्षा मंत्रियाें की बैठक भी हुई थी, जिसके घाेषणापत्र में पहलगाम हमले का जिक्र न हाेने और बलूचिस्तान का वर्णन करके पाकिस्तानी हिताें की वकालत करने के कारण भारतीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने उस पर हस्ताक्षर करने से इन्कार कर दिया था.
ऐसे में, यह जरूरी था कि भारत आतंकवाद के मसले पर मजबूती से अपनी बात रखे, जाे एस जयशंकर ने बखूबी किया. यह विडंबना है कि एससीओ जब बना था, तब आतंकवाद से मिलकर मुकाबला करना इसके प्राथमिक उद्देश्याें में एक था, लेकिन अब इसी मसले पर इसके सदस्य देशाें में मतभेद दिखने लगे हैं. पाकिस्तान आतंकवाद का खुलेआम पाेषण करता है, जिसका पराेक्ष रूप से चीन साथ दे रहा है. भारत इसी दुरभिसंधि के खिलाफ मुखर है. हालांकि, भारत-चीन रिश्ताें में आती गरमाहट काे नाटाे के हालिया फैसले के बरअ्नस भी देखना चाहिए.दरअसल, नाटाे के देशाें ने अब निर्णय लिया है कि वे अपने हथियार यूक्रेन काे देंगे और बाद में अमेरिका से खरीदकर भी उसे मुहैया कराएंगे.
हालांकि, बाद में इस खबर पर स्पष्टीकरण भी जारी किया गया, लेकिन माना यही जा रहा है कि नाटाे देश अब यूक्रेन का खुलकर साथ देंगे, वे रूस का मुकाबला करना चाहते हैं. इससे वैश्विक आपूर्ति-श्रृंखला पर खासा असर पड़ सकता है, जाे भारत और चीन, दाेनाें काे प्रभावित करेगा.वैसे, एस जयशंकर की इस यात्रा से चीन के हित भी सधे हैं. वास्तव में, पिछले कुछ दिनाें से उसके नेता शी जिनपिंग सार्वजनिक ताैर पर नहीं दिख रहे थे.इसके कारण पश्चिमी मीडिया चीन में संभावित सत्तापरिवर्तन का दावा करने लगा था. मगर अब जिनपिंग और जयशंकर की मुलाकात की तस्वीरें सार्वजनिक हाेने के बाद कहा जा रहा है कि चीन ने भारत के माध्यम से विश्व काे संदेश दे दिया है.एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि जब चीन आतंकवाद के मसले पर पाकिस्तान के साथ है, ताे उसके साथ संबंध क्यों रखे जाएं? ऐसा कहने वाले लाेग वास्तव में दाेनाें देशाें के रिश्ताें की जटिलताओं काे नहीं समझते. चीन ने पाकिस्तान का साथ दिया, ताे वह विश्व मंच पर बेपरदा भी हाे गया.
फिर, भारत ने पाकिस्तान, चीन और तुर्किये गठजाेड़ से अकेले सफल मुकाबला करके अपनी ताकत का लाेहा मनवाया है. चूंकि विश्व व्यवस्था में काेई देश स्थायी दुश्मन नहीं हाेता, इसलिए अपने हिताें के अनुकूल भारत ने चीन के साथ संबंध आगे बढ़ाए हैं. अमेरिका और नाटाे देश की बाैखलाहट संकेत है कि विश्व बहुध्रुवीय व्यवस्था की ओर बढ़ रहा है. ऐसे में, भारत काे साेच-समझकर आगे बढ़ना ही हाेगा. हम नहीं चाहेंगे कि बीजिंग पूरी तरह से नई दिल्ली के खिलाफ हाे जाए.इतना ही नहीं, अमेरिका ने टैरिफ-जंग छेड़कर विश्व अर्थव्यवस्था में जाे उथल-पुथल मचाई है, उससे भारत और चीन, दाेनाें काे मुकाबला करना है. अमेरिका हमारा दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक देश है, इसलिए हम अमेरिकी बाजार काे भी नजरंदाज नहीं कर सकते. मगर उस पर पूरी तरह से निर्भरता हमारे लिए उचित नहीं, इसलिए चीन और रूस जैसे देशाें के साथ आपसी संबंधाें का भी हमें ख्याल रखना हाेगा.
यदि अमेरिका अपने सीमा शुल्क बढ़ाता है, ताे हमारे काराेबार पर इसका असर पड़ सकता है. लिहाजा, समय से पूर्व विकल्प की तलाश ही हमारी बुद्धिमानी मानी जाएगी और जहां-जहां हमारे हित जुड़े हुए हैं, हमें वहां-वहां मिलकर काम करना हाेगा.हालांकि, नाटाे महासचिव मार्क रूट ने यह चेतावनी दी है कि भारत, चीन और ब्राजील जैसे ब्र्निस देश रूस पर युद्ध राेकने का दबाव नहीं बनाएंगे, ताे उन्हें 100 फीसदी सीमा शुल्क बढ़ाेतरी का सामना करना पड़ सकता है.यह कुछ और नहीं, पश्चिमी देशाें, खासकर अमेरिका की बाैखलाहट है. उसे डर है कि वैश्विक व्यापार अथवा लेन-देन में अमेरिकी डाॅलर के उपयाेग काे कम करने की कवायद चल रही है. हालांकि, ऐसा कुछ नहीं है. उसे अपनी इस घरेलू बहस से ऊपर उठना चाहिए. यह डाॅलर, पाउंड और यूराे के बीच की जंग है. -शशांक
 
 
 
 
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