आदमी भय के बाहर हाे गया है. 20वीं सदी का आदमी िफयरलैस हाे गया है, भय के बाहर हाे गया है- उचित है! जब भी काेई आदमी जवान हाेगा ताे भय के बाहर हाे जायेाग.बच्चाें काे डराना आसान है कि चाैके में मत जाना, वहां भूत-प्रेत है. लेकिन वह बच्चा जब जवान हाे जायेगा, अडल्ट हाे जायेगा और उससे आप कहेंगे, भूत-प्रेत है ताे वह कहेगा निपट लेंगे. उसकाे भूत-प्रेत से काेई परिणाम नहीं हाे सकता.मनुष्यता अडल्ट हाे गई है- इस सदी में आकर पहली दफा मनुष्यता प्राैढ़ हाे गई है, बचपन नहीं रहा आदमी का. अब उस पर पुराने भय काम नहीं करते.लेकिन हम पुराने भय दाेहराए जा रहे हैं और जब वह भय काम नहीं करते और आदमी अनैतिक हाेता जाता है ताे हम चिल्लाते हैं, आदमी अनैतिक हाे गया है.असली बात यह कि हमारी नीति असंगत हाे गई है.हमारी जाे माॅरल सिस्टम था, वह जाे नीति की व्यवस्था थी वह इररिलेवेंट हाे गई है. उसका काेई संबंध नहीं रह गया है. अब इस नये आदमी काे, इस 20वीं सदी के आदमी काे नई नीति चाहिए.
इस नीति के नये आधार चाहिए. यह नई नीति ज्ञान पर खड़ी हाेगी, भय पर नहीं. यह नई नीति इस बात पर खड़ी हाेगी कि आज के आदमी काे समझ में आना चाहिए कि नैतिक हाेना उसके लिए आनंदपूर्ण है. नैतिक हाेना उसके लिए स्वास्थ्यपूर्ण है.नैतिक हाेना उसके निजी हित में है. यह किसी भविष्य के लिए नहीं है, यह कल मृत्यु के बाद किसी स्वर्ग के लिए नहीं, आज, इसी पृथ्वी पर नैतिक हाेने का रस- और जाे अनैतिक है वह अपने हाथ से अपने पैर काट रहा है. जाे अनैतिक है वह भविष्य में नर्क जायेगा, ऐसा नहीं, जाे अनैतिक है वह आज अपने लिए नर्क पैदा कर रहा है.असल में अनीति, कर्म और फल, नरक... इतना ासला अब नहीं चल सकता. अनीति ही अगर नर्क है, यह आदमी के ज्ञान का हिस्सा बन जाये और नीति ही स्वर्ग है, अगर यह आदमी के ज्ञान का हिस्सा बन जाये ताे हम भविष्य के लिए नीति के आधार रख पायेंगे, अन्यथा हम न रख पायेंगे. लेकिन मुझे लगता है, ये आधार रखे जा सकते हैं.