इस मानसून में भी भारतीय शहर लगभग पानी में डूबे हुए हैं. सड़कें नदियां बन गई हैं, ताे घर दलदल और कहीं बाहर जाना, ताे बड़े साहस का काम जैसा लगता है. शहरी बाढ़ अब वार्षिक कहानी बन गई है और जलवायु परिवर्तन ने इसकी तीव्रता काे बढ़ा दिया है.भारतीय उष्णकटिबंधीय माैसम विज्ञान संस्थान,पुणे के अग्रणी जलवायु वैज्ञानिक डाॅ.राॅ्नसी काेल सीधे शब्दाें में कहते हैं,‘जलवायु पूर्वानुमान भविष्य में हाेने वाले औसत परिवर्तन की एक सीमा के साथ आते हैं. यह इसकी भविष्यवाणी नहीं करता कि यह कब हाेगा,बल्कि यह बताता है कि भविष्य में चरम माैसमी घटनाओं की विशेषताएं ्नया हाेंगी’ मतलब साफ है कि शहर भयानक बाढ़ाें के लिए हमेशा तैयार रहें, न कि सिर्फ यह अनुमान लगाएं कि वे आएंगी.इस महीने की शुरुआत में अमेरिका के न्यूयाॅर्क में आई बाढ़ की तस्वीराें काे साेशल मीडिया पर साझा करते हुए कुछ भारतीयाें ने तंज किया कि वैश्विक महाश्नितयां भी पानी में डूब जाती हैैं, लेकिन न्यूयाॅर्क की इस बदहाली का मजाक उड़ाने के बजाय हमें इससे गहरे सबक लेने की जरुरत है.
अगर न्यूयाॅर्क के हालात बदतर हुए, ताे इसका कारण यह है कि वहां की पुरानी जल निकासी व्यवस्था काे आधुनिक बारिश के हिसाब से तैयार नहीं किया गया था.यही बात भारत के शहरी बुनियादी ढांचे पर भी लागू हाेती है. ज्यादातर आबादी अनियाेजित ढंग से बने आवासाें में निवास करती है.इसलिए वे ज्यादा असुरक्षित हैं.भारतीय शहर विकास के इंजन हैं. वे देश की जीडीपी में 63 फीसदी का याेगदान देते हैं, जिसके वर्ष 2050 तक 75 फीसदी तक पहुंचने का अनुमान है. उस समय तक माैजूदा शहरी आबादी का दाेगुना यानी 95.1 कराेड़ लाेग शहराें में रहने लगेंगे वे 70 फीसदी नई नाैकरियां पैदा करेंगे व दुनिया के तीसरे सबसे बड़े स्टार्टअप इकाेसिस्टम की मेजवानी करने वाले नवाचार का केंद्र हाेंगे,लेकिन वे तीव्र जलवायु तनाव का भी सामना करेंगे.बरसाती बाढ़ में जब जल निकासी की व्यवस्था चरमरा जाती है. घटती हरियाली और शहराें के अनियंत्रित फैलाव के चलते भारी बारिश से जलभराव की समस्या पैदा हाेती है.
विश्व बैंक की नई रिपाेर्ट ‘टुबार्ड्स रिजिल्यंट एंड प्राॅस्परस सिटीज इन इंडिया’, जिसे केंद्रीय आवासन और शहर कार्य मंत्रालय ने तैयार किया है, स्पष्ट रूप से बताती है कि अभी शहरी बाढ़ की वजह से प्रतिवर्ष करीब चार अरब डाॅलर का नुकसान हाेता है. 2070 तक यह नुकसान बढ़कर 14 से 30 अरब डाॅलर पहुंच सकता है और करीब 4.6 कराेड़ लाेग मुसीबत में पड़ सकते हैं, और यह सिर्फ आंकड़े नहीं है. मुंबई में बाढ़ संभावित क्षेत्राें का किराया बीस से पच्चीस फीसदी कम है, जाे गरीब परिवाराें के जीवन काे संकट में डालता है. काेलकाता में आधे से ज्यादा नागरिक सर्वाधिक बाढ़ प्रभावित क्षेत्राें में रहते हैं. एक तूफान सब कुछ तबाह कर सकता है.विश्व बैंक की रिपाेर्ट में बताया गया है कि ‘शहरी बाढ़ शहर के सड़क नेटवर्क पर गहरा असर डालती है. वहां तक कि सिर्फ दस या बीस फीसदी सड़कें जलमग्न हाेने पर कुछ शहराें की आधी से ज्यादा यातायात व्यवस्था गड़बड़ा जाती है.
भारतीय शहर पहले से ही, जलापूर्ति, सार्वजनिक परिवहन, पार्क़, सीवरेज, आवासीय संकट तथा ठाेस कचरा संग्रहण और उसके निष्पादन की बढ़ती मांग काे पूरा करने की चुनाैतीयाें का सामना कर रहे हैं. खराबवायु गुणवत्ता और गहराता जल संकट शहराें काे प्रभावित करनेवाली अन्य महत्वपूर्ण चुनाैतियां हैं. कई शहराें में बड़े पैमाने पर नया शहरी विकास शहर के बाहरी इलाकाें में हाे रहा है, जिससे लचीली सेवाओं और बुनियादी ढांचे का समन्वय और वितरण चुनाैतीपूर्ण हाे रहा है.ऐसे में काम पर जाना या अस्पताल पहुंचना मुश्किल हाेता है. फिर भी, कुछ उम्मीदें बाकी हैं. कुछ शहर इन समस्याओं काे पीछे धकेल रहे हैं. अहमदाबाद का हीट ए्नशन प्लान पूर्व चेतावनी प्रणालियाें काे मजबूत करता है और बाहरी श्रम कार्यक़्रमाें काे समायाेजित करता है, काेलकाता ने शहर स्तर पर बाढ़ पूर्वानुमान प्रणाली शुरू की है. इंदाैर ने अपने कचरा प्रबंधन में सुधार कर पर्यावरण संरक्षण के साथ ही नए राेजगार पैदा किए हैं. चेन्नई की जलवायु कार्य याेजना विस्तृत जाेखिम आकलन के जरिये अनुकूलन और निम्न-कार्बन विकास काे लक्ष्य बनाती है.
ये प्रयास दर्शाते हैं कि जलवायु कार्रवाई शहरी स्तर पर संभव है और प्रभावी भी.हालांकि, भारत का अभी काफी शहरीकरण हाेना बाकी है. जिसका मतलब है कि हमारे पास अब भी बेहतर करने का अवसर है. बाढ़ प्रभावित और शहर के बाहरी इलाकाें में अनियाेजित विकास जाेखिम बढ़ा रहा है. वर्ष 1985 सें 2015 के बीच बरसाती बाढ़ में 131 फीसदी की वृद्धि देखी गई. कभी कम जाेखिम वाले शहर (हैदराबाद, बेंगलूरू,इंदाैर) अब नियमित रूप से बाढ़ का सामना कर रहे हैं. नदियाें के किनारे बसे दिल्ली और सूरत जैसे शहराें में बाढ़ का पानी निचले इलाके में जाने से छाेटे शहराें में जाेखिम बढ़ रहा है.जाहिर है इससे निपटने में ऊंची दीवारें और गहरी नालियां काम नहीं आएंगी. भविष्य की चरम स्थितियाें के बारे में डाॅ.काेल की चेतावनी जलवायु-स्मार्ट शहरी डिजाइन की मांग करती है. पानी निकासी याेग्य फुटपाथ, दलदली भूमि की वापसी और हरियाली का विस्तार जल निकासी प्रणालियाें काे उन्नत करने की जरुरत है और हमें बाढ़ क्षेत्राें में निर्माण कार्य राेकना हाेगा. -पत्रलेखा चटर्जी, वरिष्ठ पत्रकार