ऐसे आदमी हजार तरह के कारागृह में बंद है. अगर वह अजायबघर का जानवर न हाे जाये, ताे और क्या हाे सकता है? अगर मनुष्य का समाज बनाना हाे, अजायबघर नहीं, विक्षिप्त, पागल, रूग्ण बीमार लाेगाें का समूह नहीं, बल्कि जीवित, प्रेम से भरे हुए, करूणा से पूर्ण लाेगाें का समाज बनाना हाे, ताे हमें सब तरह के कारागृह ताेड़ देने की तैयारी दिखानी जरूरी है.इससे काेई फर्क नहीं पड़ता कि कारागृह का नाम क्या है. बड़े कारागृहवाले लाेग छाेटे कारागृह ताेड़ने की काेशिश करते हैं.राष्ट्र का कारागृह मजबूत हाे सके. जिसे राष्ट्र बड़ा कीमती मालूम पड़ता है, वह कहता है प्रदेशाें के कारागृह ताेड़ाे ताकि राष्ट्र का कारागृह मजबूत हाे सके.लेकिन अब तक दुनिया में बहुत कम लाेग हैं, जाे कारागृह मात्र काे ताेड़ देने के लिए आतुर हैं; जाे यह नहीं कहते कि छाेटे कारागृह काे बड़े कारागृह के लिये ताेड़ाे.
जब तक हम इस भाषा में साेचेंगे, तब तक कारागूह कभी भी नहीं टूटने वाले हैं. तब तक आदमी कैद के बाहर नहीं हाे सकता, सीखचाें के बाहर नहीं हाे सकता.एक बारगी मनुष्य काे समझना हाेगा कि हम सीखचाें में नहीं रहना चाहते-चाहे सीखचाें का नाम हिंदू हाे, चाहे सीखचाें का नाम जैन हाे, और चाहे सीखचाें का नाम ब्राम्हण हाे, शुद्र हाे और चाहे सीखचाें का नाम हिंदुस्तान हाे, चीन हाे, पाकिस्तान हाे, हम सीखचाें के भीतर नहीं रहना चाहते. सब तरह के सीखचे खतरनाक हैं, वे आदमी काे पागल किये दे रहे हैं. क्याें? आखिर सीखचे आदगी काे पागल क्याें किये देते हैं? एक लिविंग स्पेस की जरूरत है हर आदमी काे जिंदा रहने के लिये, एक विस्तार की जरूरत है. विस्तार जितना ज्यादा हाेगा, जीवन उतना मुक्त हाेगा. विस्तार जितना कम हाेगा, जीवन उतना सिकुड़ जायेगा. विस्तार जितना बड़ा हाेगा, उतनी ही आत्मा ैलेगी.
विस्तार जितना छाेटा हाेगा, आत्मा उतनसिकुड़ जायेगी. एक बड़े मकान में रहने का मजा, और एक छाेटी काेठरी में रहने काे फर्क यही है कि एक छाेटी काेठारी में हम सिकुड़ जाते हैं, एक बड़े मकान में हम ैल जाते हैं. जितना विस्तार हाेगा, मनुष्य के जीवन की विस्तृत आधार शिला हाेगी, उतना आदमी की आत्मा विकसित हाेती है.लेकिन हम खंड-खंड में ताेड़ते हैं. छाेटेछाेटे खंड ताेड़कर भी मन भरता नहीं, ताे बहुत छाेटे खंडाे में ताेड़ते हैं. और खंडाें में ताेड़तेत्ताेड़ते आखिर में एक-एक आदमी खंड ही रह जाता है. एक-एक आदमी छाेटा टुकड़ा रह जाता है. चाराे तरफ सीमाएं आ जाती हैं और सब तरफ से बंद आदमी भीतर बेचैन और परेशान हाे जाता है.इसके दाेहरे परिणाम हाेते हैं. पहला परिणाम ताे यह हाेता है उसकी आत्मा कभी ैल नहीं पाती.
और जब आत्मा न ैल पाये, ताे पागल हाेना शुरू हाे जाता है; विक्षिप्तता आनी शुरू हाे जाती है. और दूसरा परिणाम यह हाेता है कि आत्मा काे ैलाने के झूठे रास्ते खाेजने पड़ते हैं. जब जिंदगी सब तरफ से बंधी हाे, ताे आत्मा काे ैलाने के ऐसे रास्ते खाेजने पड़ते हैं, जाे अपने आप में गलत हैं. जैसे आजआज सारी दुनिया में कांशसनेस, चेतना काे विस्तीर्ण करने के लिये ड्रग्स का उपयाेग हाे रहा है--एल.एसड़ी. का, मैस्कलीन का.क्या आपकाे पता है, आदमी इतना ज्यादा सिकुड़ गया है कि अब वह बेहाेश हाेकर ही अनुभव कर पाता है कि मैं फला हुआ हूं! एल.एसड़ी. काे वे कांशसनेस एक्सपैंडिंग ड्रग्स कहते हैं. वे कहते हैं कि एल. एस. डी. काे लेने से आदमी की चेतना विस्तीर्ण हाे जाती है थाेड़ी देर काे. छह घंटे काे, दस घंटे काे उसकी सब सीमाएं टूट जाती हैं, वह सारे जगत के साथ एक हाे जाता है. चांद उसे अपने से एक मालूम पड़ता है. ूल उसे अपने भीतर खिलते हुए मालूम पड़ते हैं. सूरज दूर नहीं मालूम पड़ता है, निकट आ जाता है.