पाकिस्तानी आतंकी ढांचे काे बेनकाब करने के अपने अभियान में भारत ने एक महत्वपूर्ण और दुर्लभ कूटनीतिक जीत हासिल की है. पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय निगरानी से बचने के लिए बार-बार खुद काे नया नाम दिया है. पहलगाम आतंकी हमले (जिसे पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-ताइबा की एक छद्म शाखा, द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) ने अंजाम दिया) ने दुनिया काे झकझाेर दिया है. नतीजतन अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र, दाेनाें ने टीआरएफ का नाम लेकर पाकिस्तान काे शर्मिंदा किया, तथा इसे सीधे ताैर पर इस्लामाबाद की जम्मू और कश्मीर में प्राॅक्सी के जरिये जेहाद छेड़ने की नीति से जाेड़ा है. यह संयुक्त रुख न केवल भारत की खुफिया जानकारी की स्वीकृति है, बल्कि पाकिस्तान की दशकाें पुरानी इस नीति पर सार्वजनिक अभियाेग भी है, जिसमें वह अपनी संलिप्तता से इन्कार करते हुए नए नामाें के तहत आतंकवादी समूहाें काे बढ़ावा देता है.
नई दिल्ली के लिए यह एक दुर्लभ क्षण था, जब अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र ने पाकिस्तान के कपट के खिलाफ कदम उठाया.महत्वपूर्ण बात यह है कि यह कदम वाशिंगटन में भारत की गहन कूटनीतिक पहल के बाद उठाया गया. भारत ने तकनीकी प्रमाणाें के साथ विस्तृत डाेजियर प्रस्तुत किया है, जाे टीआरएफ के डिजिटल पदचिह्नाें, वित्तपाेषण और नेतृत्व काे पाकिस्तान के डीप स्टेट और लश्कर-ए-तायबा से जाेड़ते हैं. यह भारत की खुफिया जानकारी में बढ़ते वैश्विक विश्वास काे दर्शाता है. भारत ने पश्चिमी सहयाेगियाें काे दी गई जानकारी में पहलगाम आतंकी घटना काे प्रमुखता से उठाया और इसे स्थानीय कानून-व्यवस्था का मुद्दा न मानकर, बल्कि जम्मू-कश्मीर काे अस्थिर करने की आईएसआई की साेची-समझी रणनीति का हिस्सा बताया.फिर भी राष्ट्रपति डाेनाल्ड ट्रंप ने अप्रत्याशित यू-टर्न लेते हुए अपनी नवीनतम टिप्पणियाें और नीतिगत संकेताें में पाकिस्तान काे असाधारण प्राथमिकता दी है, जिससे अमेरिकी मंशा पर गंभीर संदेह पैदा हाे गया है.
दबाव बनाए रखने के बजाय, ट्रंप का झुकाव एक ऐसे मुल्क काे पुरस्कृतकरने का जाेखिम उठाता है, जाेआतंकवादियाें की फैक्टरी के रूप में काम करता है. भारत के लिए स्थिति स्पष्ट है : वाशिंगटन द्वारा टीआरएफ की सार्वजनिक निंदा के बाद अब व्हाइट हाउस ने इस्लामाबाद काे खुश करने की इच्छा दिखाई है, चाहे वह अल्पकालिक सामरिक लाभ पाने के लिए हाे या अन्य भू-राजनीतिक साैदाें की तलाश के लिए. यह दाेहरा मापदंड न केवल अमेरिका के आतंकवाद-राेधी रुख की विश्वसनीयता काे कमजाेर करता है, बल्कि पाकिस्तान काे अपने छद्म युद्ध काे जारी रखने के लिए प्राेत्साहित भी करता है. इससे पता चलता है कि वैश्विक कूटनीति के उच्च मंच पर रणनीतिक सुविधा अक्सर नैतिक स्पष्टता पर भारी पड़ती है. भारत काे दृढ़ता और प्रमाण, दाेनाें के साथ इसका मुकाबला करने के लिए तैयार रहना चाहिए.
हालांकि अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र की कार्रवाई से पाकिस्तान की कूटनीतिक चुनाैती बढ़ गई है. हाल ही में एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट से बाहर आने के बाद, इस्लामाबाद अब नए सिरे से निगरानी का जाेखिम उठा रहा है. यह कदम वैश्विक निगरानी संस्थाओं काे आतंकवाद के वित्तपाेषण पर पाकिस्तान के रिकाॅर्ड की फिर से जांच करने के लिए प्राेत्साहित करेंगे, लेकिन ट्रंप एक बार फिर पाकिस्तान केरक्षक साबित हाे सकते हैं. पिछले दाे वर्षाें में, भारत ने चुपचाप और लगातार टीआरएफ और उसके सहयाेगी संगठनाें जैसे पीएएफएफ, यूएलएफजेके और गजनवी फाेर्स के खिलाफ मामला बनाया है. विदेश मंत्रालय ने इन नए आतंकी संगठनाें पर लगातार ध्यान केंद्रित किया है और अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, यूएई और संयुक्त राष्ट्र निकायाें काे विश्वसनीय सबूत साैंपे हैं. विदेश मंत्री एस.
जयशंकर के वैश्विक मंचाें पर तीखे हस्तक्षेपाें ने कश्मीर के बारे में धारणाओं काे नया रूप दिया है. पाकिस्तान के दाेहरे खेल आतंकवादियाें काे पनाह देते हुए अंतरराष्ट्रीय मदद लेनापर उनके लगातार बयान ने लाेगाें काे प्रभावित किया है.टीआरएफ काे बचाने की पाकिस्तान की शुरुआती काेशिशें (पहले संयुक्त राष्ट्र के दस्तावेजाें से उसका नाम हटाकर और फिर आधे-अधूरे मन से खंडन जारी करके) उलटी पड़ गई हैं. एबटाबाद में ओसामा बिन लादेन काे पनाह देने से लेकर हाफिज सईद और मसूद अजहर का खुलकर समर्थन करने तक, इस्लामाबाद की आतंकी चालबाजियाें काे अब अंतरराष्ट्रीय समुदाय बर्दाश्त नहीं कर रहा है.
यहां तक कि पाकिस्तान के रणनीतिक हलकाें में भी घरेलू आलाेचक प्राॅक्सी पर निर्भरता की व्यवहारिकता पर सवाल उठाने लगे हैं, खासकर तब, जब इसकी लागत (आर्थिक, प्रतिष्ठा संबंधी और कूटनीतिक) बहुत अधिक है. अतीत में, चीन ने मसूद अजहर जैसे आतंकवादियाें काे संयुक्त राष्ट्र में सूचीबद्ध करने के भारत के प्रयासाें काे बाधित किया था. लेकिन टीआरएफ के खिलाफ अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की कार्रवाई पर बीजिंग की चुप्पी कुछ और ही संकेत देती है. यह भारत के साथ व्यापारिक हिताें, पाकिस्तान की बिगड़ती वैश्विक छवि और हर तरफ से आलाेचनाओं का सामना कर रहे पाकिस्तान काे बचाने की थकान के कारण एक नए संतुलन का संकेत हाे सकता है. यह बदलाव बहुपक्षीय मंचाें पर संरक्षण के लिए चीन पर पाकिस्तान की पूर्ण निर्भरता काे भी कमजाेर करता है.
- के. एस. ताेमर, राजनीतिक विश्लेषक