पुणे, 16 अगस्त (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क)
भारत में शादी को हमेशा से एक पवित्र बंधन और वेिशास का प्रतीक माना गया है. लेकिन बदलते समय और रिश्तों में आती चुनौतियों ने इस सोच को नया आयाम दिया है. आज यह सवाल सामने है कि क्या शादी से पहले एक नोटराइज एग्रीमेंट किया जाना चाहिए? इस बारे में दै. आज का आनंद के लिए प्रो. रेणु अग्रवाल ने समाज के लोगों से बातचीत की तो कुछ लोग इसे हक, जिम्मेदारियों और भविष्य की सुरक्षा के लिहाज से जरूरी मानते हैं, जबकि कुछ का कहना है कि इससे रिश्ते की पवित्रता और वेिशास कमजोर पड़ता है. इस विषय पर लोगों की अलगअलग राय सामने आई है. प्रस्तुत हैं उनसे बातचीत के प्रमुख अंश-
एग्रीमेंट से रिश्तों में स्पष्टता
शादी से पहले एक नोटराइज एग्रीमेंट करना एक दिलचस्प विषय है. कुछ लोगों का मानना है कि यह दोनों पार्टनर्स को अपने हक और जिम्मेदारियों की स्पष्ट तस्वीर देता है और भविष्य के झगड़ों को सुलझाने में मदद करता है. वहीं कुछ लोग इसे पसंद नहीं करते क्योंकि वे मानते हैं कि शादी एक पवित्र रिश्ता है, जिसे वेिशास और समर्पण से निभाया जाना चाहिए, न कि कानूनी बंधन से. अंततः यह निर्णय दोनों पार्टनर्स पर निर्भर करता है कि वे अपने रिश्ते को किस तरह से परिभाषित करना चाहते हैं. -अरविंद कुमार सिंह, फरीदाबाद (दिल्ली)
बदलते समय की जरूरत
हमारे समाज में शादी को शोशत माना गया है, लेकिन अब समय बदल गया है. आज हर व्यक्ति की अपनी सोच है और शादी के बाद एडजस्टमेंट की गारंटी नहीं है. इसलिए यह नई सोच सामने आई है कि शादी से पहले ही एक एग्रीमेंट होना चाहिए ताकि भविष्य की समस्याओं का सामना करना आसान हो. मुझे लगता है कि कानून में भी ऐसे प्रावधान होने चाहिए. पतिपत्नी का रिश्ता सबसे नाजुक रिश्ता है और जब समझदारी की कमी दिख रही है, तब ऐसे एग्रीमेंट की जरूरत और भी अधिक महसूस होती है.
-कुसुम अग्रवाल, मगरपट्टा (हड़पसर)
समानता और बच्चों के भविष्य की जिम्मेदारी
शादी से पहले एग्रीमेंट करना एक अच्छा विचार है क्योंकि यह गलतफहमियों और विवादों से बचाता है. शादी में खर्च बराबर बांटने से किसी एक पक्ष पर आर्थिक बोझ नहीं पड़ता. अगर तलाक होता है तो जिम्मेदारियां स्पष्ट रहती हैं. बच्चों के मामले में भी दोनों माता-पिता का समान अधिकार एग्रीमेंट में होना चाहिए. कुल मिलाकर यह पारदर्शिता, समानता और आपसी सम्मान को बढ़ावा देता है, लेकिन इसके लिए कानूनी मान्यता और सामाजिक स्वीकृति आवश्यक है.
-नितिन मोरे, पुणे
पवित्र रिश्ते में शक की गुंजाइश नहीं
शादी हमारे समाज में एक पवित्र और निजी बंधन है. इसमें कानूनी दस्तावेज बनाना जरूरी नहीं है. शादी से पहले ही तलाक की संभावना मानकर चलना एक नकारात्मक सोच है. शादी में आने वाली हर स्थिति को पहले से एग्रीमेंट में शामिल करना संभव नहीं है. वैसे भी आजकल शादी होना ही मुश्किल है और उसके लंबे समय तक टिकने की कोई गारंटी नहीं. इसलिए ऐसे एग्रीमेंट बनाने से बचना ही बेहतर है.
-एडवोकेट नवीन अग्रवाल, औरंगाबाद
जिम्मेदारियों की स्पष्ट तस्वीर
आज के समय में शादी के समय तय हुई बातों का एक कानूनी एग्रीमेंट बनाना जरूरी है. इसमें खर्चों का बंटवारा और भविष्य में तलाक की स्थिति में जिम्मेदारियां स्पष्ट होनी चाहिए. यह एक समझदारी भरा फैसला होगा, बशर्ते दोनों पार्टनर सहमत हों. अंत में यह पूरी तरह उन पर निर्भर करता है कि वे रिश्ते को बढ़ाने के लिए ऐसा कदम उठाना चाहते हैं या नहीं.
-सुमन जैन, दिल्ली
विवाह-पूर्व एग्रीमेंट खुली सोच का प्रतीक
शादी के समय कोई तलाक के बारे में नहीं सोचता, लेकिन आजकल समय बदल गया है. हर संभावना पर विचार करना चाहिए. अगर भविष्य में तलाक होता है तो संपत्ति का बंटवारा और गुजारा भत्ता जैसे मुद्दे पहले से तय हो सकते हैं. यह एक व्यावहारिक और खुली सोच को दर्शाता है. पहले शादियां लंबी चलती थीं, लेकिन अब रिश्ते अधिक व्यावहारिक हो गए हैं. ऐसे में विवाह-पूर्व एग्रीमेंट करना गलत नहीं है.
-पायल अग्रवाल, ससाने नगर (हड़पसर)