विज्ञान के अतिरिक्त मनुष्य कभी भी स्वस्थ नहीं हाे पाएगा

19 Aug 2025 16:47:56
 

Osho 
 
पंडित-पुराेहिताें के हाथ में सब दे दिया है तुमने. भारत की गाै-माताएं, जिनकाे तुम माता कहते हाे और पूजा करते हाे और तुम्हारे संत-महात्मा जिनका गुणगान करते अघाते नहीं- दूध कितना देती हैं? भारत की गाैओं काे ताे इतना दूध देना चाहिए कि दुनिया की काेई गाै न दे; क्याेंकि ऐसा सम्मान, ऐसी पूजा गाै-माता काे और कहां मिलेगी! शंकराचार्य से लेकर विनाेबा भावे तक सब एक ही काम में संलग्न हैं- गाै-माता काे बचाओ! और गाै-माता दूध कितना देती है! काेई पाव भर, काेई दाे पाव, काेई सेर भर, काेई दाे सेर. स्विटजरलैंड में एक-एक गाय साठ-साठ किलाे दूध देती है. विज्ञान के हाथ में बात है, पंडित-पुराेहिताें के हाथ में नहीं. माता कहने का सवाल नहीं है; वैज्ञानिक सूझ-बूझ, वैज्ञानिक प्रक्रियाओं का सवाल है.
 
इस देश का दुर्भाग्य यह है कि यहां नींव के पत्थर नहीं हैं. नींव के पत्थर केवल विज्ञान रख सकता है. हमारे पास स्वर्ण- कलश की ताे बड़ी याेजनाएं हैं, मगर नींव के पत्थर न हाेने से सब याेजनाएं कचरा हैं, उनका काेई मूल्य नहीं है. पश्चिम ने नींव के पत्थर ताे भर लिए हैं, मगर उसके पास स्वर्ण-कलश की काेई याेजनाएं नहीं हैं.अगर इन दाेनाें में चुनना हाे ताे मैं पश्चिम काे चुनूंगा, क्याेंकि कम से कम नींव ताे तैयार है. जब नींव तैयार है ताे आज नहीं कल स्वर्ण-कलश की याेजना भी बन जाएगी. और अगर नींव ही तैयार नहीं है ताे स्वर्ण-कलश की याेजना बनाते रहाे, तुम पागल हाे, विक्षिप्त हाे, तुम्हारी याेजना का काेई मूल्य नहीं है.पश्चिम ने माैलिक जरूरत पूरी कर ली है, इसलिए अब सूक्ष्म जरूरतें पूरी की जा सकती हैं. जैसे काेई आदमी भूखा हाे, उसकाे तुम क्या संगीत सिखाओगे?
 
उसके हाथ कंप-कंप जाएंगे.तुम उसे बांसुरी पकड़ाओगे, वह राेएगा. उसकी आंखाें से आंसू गिरेंगे. तुम उससे कहाेगे कि नाचाे, वह क्या नाचेगा! वह नर-कंकाल हाे रहा है.इसलिए मैं विज्ञान का अस्वीकार नहीं करता. विज्ञान के अतिरिक्त मनुष्य कभी भी स्वस्थ नहीं हाे पाएगा. यह जाे तुम्हारा देश रुग्ण है, अस्वस्थ है और ये जाे जरूरतमंदाें की कतारें लगी हुई हैं, ये लगी ही रहेंगी, ये बढ़ती ही जाएंगी. तुम पृथ्वी के कलंक हाे गए हाे. हाेना चाहिए था पृथ्वी का साैभाग्य तुम्हें, क्याेंकि तुम सबसे पुरानी जाति हाे, पृथ्वी पर सबसे लंबे समय तक तुम अस्तित्व में रहे हाे. और तुम्हें काी साैभाग्य के अवसर मिले हैं, लेकिन एक चूक हाेती चली गई. विज्ञान न हाेने से धर्म की ऊंची से ऊंची बात भी हवा में खाे गई.उसके लिए जमीन पर आधार न मिल सका.ूलाें की ताे हमने बातें की हैं, बीज हम बाे न सके. आकाश ताे हमने छूना चाहा, पंख हम उगा न सके.
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