दुख की जड़ तुम्हारे जीवन-दर्शन में है

21 Aug 2025 15:05:06

जीवन-दर्शन
 
 
प्रश्न : मैं उदास क्याें हूं? ऐसे ताे सब है- सुख-सुविधा िफर भी उदासी है कि घटती नहीं वरन बढ़ती ही जाती है. क्या ऐसे ही, व्यर्थ ही समाप्त हाे जाना मेरी नियति है?
 
उदास हाे ताे अकारण नहीं हाे सकते.तुम्हारे जीवन-दर्शन में कहीं भूल हाेगी. तुम्हारा जीवन-दर्शन उदासी का हाेगा. तुम्हें चाहे सचेतन रूप से पता हाे या न हाे, मगर तुम्हारी जीवन काे जीने की शैली स्वस्थ नहीं हाेगी, अस्वस्थ हाेगी. तुम जीवन काे ऐसे ढाे रहे हाेओगे जैसे काेई बाेझ काे ढाेता है. मैंने सुना है, एक संन्यासी हिमालय की यात्रा पर गया था. भरी दाेपहर, पहाड़ की ऊंची चढ़ाई, सीधी चढ़ाई, पसीना-पसीना, थका-मांदा हाफंता हुआ अपने छाेटे-से बिस्तर काे कंधे पर ढाेता हुआ चढ़ रहा है. उसके सामने ही एक छाेटी-सी लड़की, पहाड़ी लड़की अपने भाई काे कंधे पर बैठाए हुए चढ़ रही है. वह भी लथपथ है पसीने से. वह भी हाफं रही है. संन्यासी र्सिफ सहानुभूति में उससे बाेला, बेटी तेरे ऊपर बड़ा बाेझ हाेगा. उस लड़की ने, उस पहाड़ी लड़की ने, उस भाेली लड़की ने आंख उठाकर संन्यासी की तरफ देखा और कहा, स्वामी जी! बाेझ ताे आप लिए हैं यह मेरा छाेटा भाई है.
बाेझ में और छाेटे भाई में कुछ फर्क हाेता है. तराजू पर ताे नहीं हाेगा. तराजू काे क्या पता कि काैन छाेटा भाई है और काैन बिस्तर है! तराजू पर ताे यह भी हाे सकता है कि छाेटा भाई ज्यादा वजनी रहा हाे. साधु का बंडल था, बहुत वजनी हाे भी नहीं सकता. पहाड़ी बच्चा था, वजनी हाेगा.
 
तराजू ताे शायद कहे कि बच्चे में ज्यादा वजन है. तराजू के अपने ढंग हाेते हैं मगर हृदय के तराजू का तर्क और है.
उस लड़की ने जाे बात कही, संन्यासी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है- उनका नाम था भवानी दयाल- उन्हाेंने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि मुझे ऐसी चाेट पड़ी कि इस छाेटी-सी बात काे मैं अब तक न देख पाया? इस भाेली-भाली लड़की ने कितनी बड़ी बात कह दी! छाेटी-सी बात में कितनी बड़ी बात कह दी! छाेटे भाई में बाेझ नहीं हाेगा. जहां प्रेम है वहां जीवन निर्भार हाेता है. तुम जरूर अप्रेम के ढंग से जी रहे हाे. तुम्हारा जीवन-दर्शन भ्रांत है इसलिए तुम उदास हाे. हालांकि तुमने जब प्रश्न पूछा हाेगा ताे साेचा हाेगा कि मैं तुम्हें कुछ ऐसे उत्तर दूंगा जिनसे सांत्वना मिलेगी. कि मैं कहूंगा कि नहीं- पिछले जन्माें में कुछ भूल-चूक हाे गयी है, उसका फल ताे पाना पड़ेगा. अब निपटा ही लाे. किसी तरह बाेझ है, ढाे ही लाे, खींच ही लाे.
 
राहतें मिलती हैं ऐसी बाताें से. क्याेंकि अब पिछले जन्म का क्या किया जा सकता है? जाे हुआ साे हुआ. किसी तरह बाेझ है, ढाे लाे. मैं तुमसे यह नहीं कहता कि पिछले जन्म की भूल है जिसका तुम फल अब भाेग रहे हाे. अभी तुम कहीं भूल कर रहे हाे, अभी तुम्हारे जीवन के दृष्टिकाेण में कहीं भूल है. पिछले जन्माें पर टालकर हमने खूब तरकीबें निकाल लीं. असल में पिछले जन्म पर टाल दाे ताे िफर करने काे कुछ बचता नहीं, िफर तुम जैसे हाे साे हाे. अब पिछला जन्म िफर से ताे लाया नहीं जा सकता. जाे हाे चुका साे हाे चुका. किए काे अनकिया किया नहीं सकता. अब ताे ढाेना ही हाेगा, खींचना ही हाेगा, उदास रहना ही हाेगा. नहीं, उदास रहने की काेई भी जरूरत नहीं है, काेई अनिवार्यता नहीं है. मैं तुमसे यह बात कह दूं कि परमात्मा के जगत में उधारी नहीं चलती. पिछले जन्म में कुछ गलती की हाेगी, पिछले जन्म में भाेग ली हाेगी.
 
 
Powered By Sangraha 9.0