दुख भी ताे जीवन का ही अविभाज्य हिस्सा है !

22 Aug 2025 15:09:51
 
दुख.
 
आज-कल दुख की एक नई टकसाल खुल गई है और वह है-जीवन संग्राम! इस संग्राम में आप किसी से सहानुभूति की, क्षमा की, प्राेत्साहन की, आशा नहीं कर सकते. मनुष्य सुख की खाेज में आदिकाल से रहा है और इसी की प्राप्ति उसके जीवन का सदैव मुख्य उद्देश्य रही है. दुख से वह इतना घबराता है कि इस जीवन में ही नहीं, आने वाले जीवन के लिए भी ऐसी व्यवस्था करना चाहता है कि वहां भी सुख का उपभाेग कर सके. अ्नसर ऐसे लाेग बहुत दुखी देखे जाते हैं, जाे असंयम के कारण अपना स्वास्थ्य खाे बैठे हैं या जिन पर लक्ष्मी की अकृपा है.
 
सुखी जीवन के लिए मन का स्वस्थ हाेना अत्यंत आवश्यक है. लेकिन फिर भी सुखी जीवन के लिए निराेग शरीर लाजिमी चीज है. देह ताे एक मशीन है. इसे जिस तरह काेयले-पानी की जरूरत है, उसी तरह इससे काम लेने की जरूरत है. अगर हम इस मशीन से काम न लें, ताे बहुत-थाेड़े दिनाें में इसके पुर्जाें में माेरचा लग जाएगा. मजदूराें के लिए यह प्रश्न ही नहीं उठता है. यह प्रश्न ताे केवल उन लेगाें के लिए है, जाे गद्दी या कुर्सी पर बैठकर काम करते हैं. उन्हें काेई न काेई कसरत जरूर ही करनी चाहिए. अगर हम स्वास्थ्य के लिए एक घंटा भी समय नहीं दे सकते, ताे इसका स्पष्ट अर्थ यही है कि हम सुख काे ठाेकराें से मारकर अपने द्वार से भगाते हैं. दुख का एक बड़ा कारण है, हमेशा अपने ही विषय में साेचते रहना. हम याें करते, ताे याें हाेते, वकालत पास करके अपनी मिट्टी खराब की, इससे कहीं अच्छा हाेता कि नाैकरी कर ली हाेती. अगर नाैकर हैं ताे यह पछतावा है कि वकालत क्यों न कर ली. लड़के नहीं हैं, ताे यह फिक्र मार डालती है कि लड़के कब हाेंगे. लड़के हैं, ताे राे रहे हैं कि ये क्यों हुए, ये कच्चे-बच्चे न हाेते ताे कितने आराम से जिंदगी कटती. कितने ही ऐसे हैं जाे अपने वैवाहिक जीवन से असंतुष्ट हैं. कर्माे मां-बाप काे काेसता है, जिन्हाेंने उसके गले में जबरदस्ती जुआ डाल दिया-काेई मामा या फूफा काे, जिन्हाेंने विवाह प्नका किया. अब उनकी सूरत भी उसे पसंद नहीं. बीवी से आए दिन ठनी रहती है. वह सलीका नहीं रखती. जब देखाे, मुंह लटकाए बैठी रहती है. यह नहीं कि पति महाेदय दिनभर के बाद घर में आए हैं, ताे लपक कर उनके गले से लिपट जाए! इस श्रेणी में अधिकतर लेखक-समाज और नवशिक्षित युवक ह
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