फैशन और संस्कार : कपड़े सिर्फ परिधान नहीं, हमारी पहचान हैं

24 Aug 2025 15:17:17

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पुणे, 24 अगस्त (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क)
कपड़े सिर्फ शरीर ढकने का साधन नहीं हैं, बल्कि वे हमारी सोच, व्यक्तित्व और संस्कारों को भी दर्शाते हैं. समय और परिवेश के अनुसार वस्त्र बदलना स्वाभाविक है, लेकिन अपनी संस्कृति और मर्यादा को साथ लेकर चलना ही सबसे बड़ी खूबसूरती है. आज की पीढ़ी जहाँ आधुनिक फैशन से प्रभावित है, वहीं कई लोग भारतीय परिधानों की गरिमा को भी संजोकर रखते हैं. इसी संतुलन से हमारी संस्कृति जीवंत और अनोखी बनती है. इस बारे में दै.आज का आनंद के लिए प्रो.रेणु अग्रवाल ने समाज की अलग-अलग महिलाओं से बातचीत की. प्रस्तुत हैं उनकी बातचीत के प्रमुख अंश- 
 
संस्कृति और आधुनिकता का संतुलन
कपड़ों से न सिर्फ इंसान का स्टेटस पता चलता है, बल्कि उनसे उसकी पर्सनैलिटी और संस्कार भी झलकते हैं. हमें हमेशा ऐसे कपड़े पहनने चाहिए, जो हमारी उम्र और अवसर के लिए उपयुक्त हों.आजकल हम मूवीज, सोशल मीडिया और आधुनिक परिवेश के प्रभाव में आकर अक्सर देखा-देखी में कपड़े पहन लेते हैं और कभी-कभी सही और गलत के बीच का फर्क भूल जाते हैं. हर किसी की अपनी चॉइस होती है, लेकिन जब हम घर के बाहर निकलते हैं तो दुनिया के सामने अपने देश और संस्कृति का भी प्रतिनिधित्व करते हैं.मंदिर जा रहे हों तो सादगीपूर्ण और डीसेंट कपड़े पहनना उचित है, वहीं मॉल या पार्टी के लिए मॉडर्न आउटफिट्स भी ठीक हैं बस हमेशा मर्यादा और सीमाओं का ध्यान रखना जशरी है. समय के साथ बदलना भी आवश्यक है, लेकिन अपने संस्कार और जड़ों का सम्मान करते हुए. यही संतुलन हमारे देश को अलग और विशिष्ट बनाता है.
- दीक्षा मनोज अग्रवाल, टिंगरेनगर
 
 
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भारतीयता का प्रतीक है साड़ी
वैसे तो मुझे हर प्रकार की ड्रेस पहनना पसंद है, लेकिन साड़ी पहनना मुझे अधिक प्रिय है. इसलिए जब भी अवसर मिलता है, हर त्यौहार और धार्मिक प्रसंग पर मैं साड़ी ही पहनना पसंद करती हूँ. बदलते समय के साथ हमारे काम करने का तरीका भी बदला है, इसलिए आवश्यकता अनुसार वेस्टर्न कपड़े भी आरामदायक लगते हैं.लेकिन वेस्टर्न कपड़े पहनने का मतलब छोटे या टाइट कपड़े पहनना नहीं है. जब भी घर से बाहर निकलें तो कपड़े हमेशा उसी तरह पहनें, जैसे हमारे आसपास का माहौल हो. लड़कियों के कपड़े पहनने पर अक्सर सवाल उठाए जाते हैं, लेकिन मुझे लगता है कि लड़कियों को खुद सोचना चाहिए कि उनकी पोशाक उनकी पहचान है और समाज में वह कैसी पहचान बनाना चाहती हैं. मेरे अनुसार, पोशाक हमेशा समय और स्थान के अनुसार सादगीपूर्ण होनी चाहिए.
- जयश्री परदेसी, बोपोड़ी
 

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त्यैाहारों पर पारंपरिक परिधान जरूरी
कपड़े पहनने के मामले में हर किसी की अपनी पसंद और जशरतें होती हैं. मुझे लगता है कि कोई भी परिधान हो, वह शालीन और आकर्षक लगना चाहिए. मुझे साड़ी पहनना विशेष रूप से पसंद है. मेरे अनुसार, हर महिला के पास कम-से-कम कुछ साड़ियां अवश्य होनी चाहिए. चाहे वह कॉटन की हों या सॉफ्ट फैब्रिक की, यह हर महिला की व्यक्तिगत पसंद पर निर्भर करता है. मैं आमतौर पर वही कपड़े पहनती हूँ जो मुझे आरामदायक और अवसरानुकूल लगें. और धारावाहिकों में हमें अलग-अलग तरह के आउटफिट देखने को मिलते हैं, लेकिन यह जशरी नहीं कि हर प्रकार के कपड़े हर किसी पर अच्छे ही लगें. हमारी संस्कृति के अनुसार त्योहारों पर हमें पारंपरिक कपड़े पहनने चाहिए. दिवाली या रक्षाबंधन जैसे अवसरों पर मैं साड़ी पहनना अधिक पसंद करती हूँ और अपनी बेटी को भी सलवार-कुर्ता या भारतीय कपड़े पहनने की सलाह देती हूँ. धार्मिक स्थलों पर तो भारतीय परिधान पहनना अनिवार्य ही समझना चाहिए.
- पूनम अग्रवाल, औंध रोड
 

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कपड़े आरामदायक हों
फैशन की परिभाषा हर किसी के लिए अलग-अलग हो सकती है. मेरे अनुसार, फैशनेबल कपड़े पहनने का मतलब है, ऐसे कपड़े पहनना जिनमें हमें सहजता और आत्मवेिशास महसूस हो. मैं हमेशा कपड़ों का चयन अवसर और स्थान के अनुसार ही करती हूं. औपचारिक अवसरों पर, बाहर घूमने- फिरने या घर पर मैं वेस्टर्न कपड़े पहनना अधिक पसंद करती हूँ क्योंकि वे आरामदायक होते हैं. लेकिन हमारे सांस्कृतिक या धार्मिक समारोहों में, मैं हमेशा पारंपरिक साड़ी या घाघरा ही पहनना पसंद करती हूं. मेरा मानना है कि किसी भी कपड़े को पहनने से पहले यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि वह आरामदायक हो और हम उसे सहजता से संभाल सकें, तभी वह कपड़ा वास्तव में फैशनेबल कहा जा सकता है.
- पिंकी राणावत, पिंपरी

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 प्राधिकरण खूबसूरती और मर्यादा का संगम
हर महिला की इच्छा होती है कि वह खूबसूरत दिखे. इस खूबसूरत दिखने की चाहत को पूरा करने के लिए महिलाएं श्रृंगार करती हैं, आभूषण धारण करती हैं और सबसे महत्वपूर्ण अलग-अलग प्रकार के वस्त्र पहनती हैं. लेकिन जब मर्यादा में रहकर भी खूबसूरत दिखना संभव है तो इसके लिए छोटे कपड़े पहनने की कोई आवश्यकता नहीं है. बच्चों को भी बचपन से ही माता-पिता को यह सिखाना चाहिए कि किस प्रकार के कपड़े पहनने चाहिए. वस्त्र हमारी पहचान का हिस्सा होते हैं. हमारी भारतीय संस्कृति में महिलाओं के लिए जो परिधान हैं, वे अपने आप में ही सुंदर और आकर्षक हैं. हाँ, समय के साथ महिलाओं की जशरतें बदली हैं, इसलिए विदेशी कपड़े पहनना गलत नहीं है. परंतु हर चीज की एक मर्यादा होती है और कपड़ों के मामले में भी उसी का पालन होना चाहिए.
- राखी अग्रवाल, औंध रोड
 

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आत्मनिर्णय और आराम आधुनिक सोच
कपड़ों के बारे में हर किसी की अपनी सोच होती है. किसी को वेस्टर्न शॉर्ट ड्रेस पसंद है, तो किसी को भारतीय परिधान. लेकिन मुझे लगता है कि लड़कियों को खुद यह निर्णय लेना चाहिए कि उन्हें क्या पहनना है. मैं अपनी बेटी को उसकी पसंद के अनुसार कपड़े पहनने की आजादी देती हूँ, परंतु समय-समय पर मार्गदर्शन भी करती हूँ. मुझे साधारण और हल्के रंगों के कपड़े पहनना अधिक अच्छा लगता है. अब समय बदल गया है. हम शहर में रहते हैं, इसलिए रोज गांव की महिलाओं की तरह साड़ी पहनना संभव नहीं है. आराम और सुविधा के अनुसार अब मैं घर पर सलवार-कुर्ता पहनना ही अधिक पसंद करती हूँ.मेरे विचार से हमें यह देखने के बजाय कि दूसरे क्या पहन रहे हैं, यह सोचना चाहिए कि हम पर क्या अच्छा लग रहा है और किन कपड़ों में हम अधिक सहज और आत्मवेिशास महसूस करते हैं. वस्त्रों का चयन भी उसी के अनुसार करना चाहिए.
- सुनीता सुरेश गोयल, प्राधिकरण

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