देश की कृषि सभ्यता काे पतन हाेने से बचाना जरूरी

25 Aug 2025 14:38:42
 
 

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कुछ साल पहले, ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ नामक संगठन के स्थापना-वर्षाें के दाैरान, अरविंद केजरीवाल चाहते थे कि मैं उनके करीबी विश्वासपात्र मनीष सिसाेदिया द्वारा महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के एक गुमनाम से गांव हिवारे बाज़ार पर बनाई गई एक दस्तावेजी फिल्म देखूं, जाे अपने चमत्कारिक कायाकल्प के कारण अचानक से खबराें में छाई थी.सिसाेदिया की इस फिल्म में दिखाया गया था कि कैसे एक बारहाें माह सूखाग्रस्त एवं अभावग्रस्त गांव ने ग्राम सभा में सामूहिक निर्णय लेने की प्रक्रिया पर अमल करते हुए, स्वशासन के जरिए खुद काे एक जीवंत आदर्श गांव में बदल डाला. इस गांव में वयस्काें की औसत वार्षिक आय जहां वर्ष 1989 में महज 8,000 रुपये थी वह 2012-13 की शुरुआत में बढ़कर 28,000 रुपये हाे गई. मुख्य रूप से, जनभागीदारी आधारित सर्वांगीण विकास के इस उल्लेखनीय माॅडल ने अंततः गांव में 54 कराेड़पति पैदा कर दिए.
 
काेई हैरानी नहीं कि एक व्नत यह गांव सबसे अधिक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वाला रहा. जीडीपी से भी ज़्यादा यह जानना महत्वपूर्ण है कि इसने गरीबी और अभाव से जुड़े तमाम प्रतीकाें जैसे कि बढ़ती शराबखाेरी, बीमारियाें का प्रसार, शिक्षा की कमी काे सफलतापूर्वक राेक दिया.नतीजतन गांव में विपरीत-पलायन हाेने लगा. जब किसी गांव में आर्थिक बदलाव आता है, ताे जाे लाेग पेट की खातिर गांव छाेड़कर जाने काे मजबूर हुए, वे वापस लाैटना चाहते हैं.काेई नाै साल पहले, मुझे सुखद आश्चर्य हुआ जब केजरीवाल ने ‘हिवारे बाज़ार की कहानी, अरविंद केजरीवाल की जुबानी’, नामक शीर्षक वाली अन्य यूट्यूब वीडियाे की कहानी बड़ी वाक्पटुता से मुझे सुनाई थी. वह चाहते थे कि गांव के अद्भुत सरपंच पाेपट लाल के नेतृत्व में जिस सामाजिक-आर्थिक साेच ने रास्ता दिखाया, उसका अनुसरण देश भर के सभी 7 लाख गांवाें में किया जाए.
 
बस उन्हें सुनिए और आपकाे अहसास हाेगा कि कैसे केजरीवाल ने ग्रामीण समृद्धि लाने की एक ‘पारसमणि’ खाेज ली थी.दरअसल, वीडियाे में वे एक नया पंजाब बनाने की बात भी करते हैं और कहते हैं कि यदि आम आदमी पार्टी की सरकार आई ताे इस कृषि प्रधान सूबे में हिवारे बाज़ार की सफलता गाथा काे लागू किया जाएगा. लेकिन, हमेशा की तरह, सरकार बनने के बाद, यह भी एक भूली-बिसरी कहानी बनकर रह गई.पार्टी काे मिले भारी चुनावी जनादेश काे देखते हुए, यह अवसर निश्चित रूप से माैजूद था. कुल 117 सीटाें में आम आदमी पार्टी काे 92 पर मिली जीत के साथ, उसके पास हिवारे बाज़ार के अनूठे विकास माॅडल काे अपनाकर भविष्य की राह फिर से गढ़ने के लिए पर्याप्त अनुकूल परिस्थितियां थीं, जिससे आखिरकार एक नए पंजाब के उदय की रूपरेखा काे प्रदर्शित किया जा सकता था.
 
एक कृषि प्रधान राज्य हाेने के नाते, बिखरती कृषि-आर्थिकी से स्थायी रूप से पार पाने के लिए जरूरी तमाम अवयव पंजाब के पास माैजूद हैं, न केवल जलवायु-अनुकूल है बल्कि आर्थिक-पर्यावरणीय रूप से व्यवहार्य और समृद्ध एक अद्भुत ग्रामीण क्षेत्र के ताैर पर भी. अगर एक सूखाग्रस्त गांव 54 कराेड़पति पैदा करने पर गर्व कर सकता है, ताे कल्पना कीजिए कि पंजाब के 12,000 से ज़्यादा गांव, जहां पहले से ही 98 प्रतिशत खेत सिंचाई यु्नत है, वहां कितनी बड़ी संख्या में कराेड़पति आसानी से पैदा हाे सकते हैं. अगर पानी काे गांवाें के विकास की धुरी के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, ताे निश्चितरूप पंजाब से बहुत आगे है.
आवश्यक रूप से इसके लिए एक नई एवं कल्पनाशील साेच की आवश्यकता है, जिसका मास्टर प्लान पहले से ही माैजूद है. लेकिन अपनी सहूलियत के हिसाब से इसकाे ठंडे बस्ते में डालकर, आम आदमी पार्टी ने स्पष्ट रूप से इस महान अवसर काे गंवा दिया है.
 
और अब सिसाेदिया द्वारा अपनी पार्टी कार्यकर्ताओं काे दी गई यह नवीनतम सलाह : ‘2027 का चुनाव जितवाने के लिए, साम, दाम, दंड, भेद, सच, झूठ, सवाल, जवाब, लड़ाई, झगड़ा जाे करना पड़ेगा... तैयार हैं जाेश के साथ?’, सब कुछ उजागर कर जाती है. इसलिए यह स्पष्ट है कि लैंड पूलिंग याेजना अकारण नहीं थी. मेरी हताशा राजनीतिक नेतृत्व की उस कथनी पर यकीन न कर पाने से भी है, जिसे वे बार-बार हमें बताते रहते हैं. शुरुआत करने के लिए, निश्चित रूप से पंजाब काे फसल विविधीकरण की ज़रूरत है, जाे प्रचलित गेहूं-धान फसल चक्र पद्धति की जगह ले सके, लेकिन लैंड पूलिंग वह विविधीकरण नहीं था जिसकी आस पंजाब काे है. मेरी समझ में लैंड पूलिंग याेजना वास्तव में नीति निर्माताओं में व्याप्त ‘बाैद्धिक सूखे’ का अक्स है और इसमें सेवारत के अलावा प्रभावशाली सेवानिवृत्त नाैकरशाही, दाेनाें, शामिल हैं.
 
कुछ महीने पहले पंजाब विश्वविद्यालय में आयाेजित एक नीति संवाद में, सेवानिवृत्त नाैकरशाहाें काे खेती के एवज़ में तेज़ औद्याेगीकरण की वकालत करते सुनना काेई हैरानी की बात नहीं थी.यह सिर्फ पंजाब में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी नहीं; देशभर में हर किस्म के राजनीतिक दल ज़मीनें हड़पने में लगे हैं. किसी भी प्रमुख दल का नाम लीजिए, उसकी नज़र ज़मीन हड़पने पर ही है. हरियाणा आगामी 6 नए इंटिग्रेटेड मल्टीमाॅडल टाउनशिप के लिए 35,000 एकड़ ज़मीन अधिग्रहण करने की याेजना बना रहा है. कर्नाटक में, साढ़े तीन साल तक चले किसानाें के लंबे विराेध प्रदर्शन के बाद, मुख्यमंत्री ने बेंगलुरु के आसपास के 13 गांवाें तक फैले देवनहल्ली तालुका में 1,777 एकड़ कृषि भूमि का अधिग्रहण करने वाला फैसला वापस ले लिया है. - देविंदर शमा
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