यह एक ऐसा भू-राजनीतिक दाैर है, जिसमें लगभग हरेक उत्पाद या सेवा काे साैदेबाजी के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. ऐसे में, महत्त्वपूर्ण सेवाओं, सामग्रियाें और उत्पादाें के लिए दूसरे देशाें पर निर्भर रहने से भारत काे रणनीतिक नुकसान हाे सकता है. आज की दुनिया में किसी भी राष्ट्र की सुरक्षा केवल राॅकेटाें या टैंकाें से मुमकिन नहीं है. इसमें अब आर्थिक सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा और तकनीकी सुरक्षा का बेहद अहम याेगदान हैं. चूंकि इन सभी के मूल में उभरती तकनीकी का महत्व है, इसलिए भारत काे तकनीकी संप्रभुता पाने के लिए अपनी क्षमताएं बढ़ानी चाहिए.तकनीकी संप्रभुता का अर्थ यह सुनिश्चित करना है कि भारत उन प्राैद्याेगिकियाें के लिए किसी दूसरे देश पर निर्भर नहीं रहेगा, जिनका सामाजिक महत्व है या जाे तकनीकी बताैर हथियार इस्तेमाल की जा सकती है.
इस दिशा में काम हाे भी रहा है. मसलन, हाल-फिलहाल हमने दूरसंचार से जुड़े हार्डवेयर काे देश में विकसित करने के लिए उल्लेखनीय कदम उठाए हैं. बिजली उत्पादन उपकरणाें के विकास काे भी हमने प्राेत्साहित किया है. दवा सामग्री, इले्नट्राॅन्निस व रक्षा उपकरणाें के घरेलू उत्पादन काे बढ़ाने के ठाेस प्रयास भी किए गए हैं. साथ ही, घरेलू उपग्रहाें, ड्राेनाें के विकास और सेमीकंड्नटर चिप के निर्माण की दीर्घकालिक याेजना भी सराहनीय प्रयास है.यह सब करना जरूरी है, इसका अंदाज पिछली कुछ घटनाओं से लगाया जा सकता है. जैसे, अंतरराष्ट्रीय भुगतान प्रणाली ‘स्विफ्ट’ने रूस के कुछ बैंकाें काे अपनी सेवाएं देनी बंद कर दीं. इसी तरह, माइक्राेसाॅफ्ट ने ऊर्जा कंपनी नायरा काे दी जाने वाली सेवाएं अचानक बंद कर दीं, क्योंकि वह रूस से तेल खरीदती थी. माइक्राेसाॅफ्ट के इस फैसले ने बताया कि वैश्विक प्राैद्याेगिकी कंपनियाें पर भारत किस कदर निर्भर है.
हालांकि, गूगल, अमेजाॅन, माइक्राेसाॅफ्ट जैसी शीर्ष प्राैद्याेगिक कंपनियाें के भारत में काैशल-विकास केंद्र है, लेकिन यूराेपीय संघ और अमेरिका इन कंपनियाें पर ऐसे कदम उठाने का दबाव डाल सकते हैं, जाे हमारी संस्थाओं के लिए नुकसानदेह हाें.इसी तरह, चीन ने कई देशाें काे किए जा रहे एक खास खनिज के निर्यात पर राेक लगा दी, क्योंकि वह इले्निट्रक गाड़ी की बैटरियाें के निर्माण काे नियंत्रित करना चाहता है. चूंकि किसी भी अंतरराष्ट्रीय कंपनी द्वारा दी जाने वाली तकनीकी सेवा का इस्तेमाल भू-राजनीतिक हिताें काे साधने के लिए बताैर हथियार किया जा सकता है, इसलिए भारत काे अपनी क्षमताएं बढ़ानी हाेंगी. ताकि वह बाहरी ताकताें के ब्लैकमेल का शिकार न बन सके. इसके लिए कुछ क्षेत्राें में तकनीकी आत्मनिर्भरता हासिल करना महत्वपूर्ण है.
पहला है, क्रांतिक चुंबकीय (क्रिटिकल मैग्नेट्स) क्षेत्र.
आज बड़ी अर्थव्यवस्थाएं दुर्लभ मृदा चुंबक के उत्पादन में घरेलू क्षमता विकसित करने में जुटी हैं. भारत भी इसका अपवाद नहीं है. दुर्लभ मृदा चुंबकाें के उत्पादन काे बढ़ाने के लिए सरकार ने प्राेत्साहन याेजना बनाने का ऐलान किया है.सरकार इस बाबत 1,345 कराेड़ रुपये की एक याेजना शुरू करने जा रही है, और उसका लक्ष्य उन लाेगाें तक पहुंचना है, जाे इसका प्रसंस्करण कर रहे हैं, यानी दुर्लभ मृदा ऑ्नसाइड से लेकर चुंबक बनाने तक . भारतीय स्टेट बैंक की एक रिपाेर्ट बताती है कि विभिन्न क्षेत्राें में बढ़ती खपत के कारण भारत में दुर्लभ मृदा चुंबकाें का आयात बढ़ा है. चूंकि इस क्षेत्र में चीन का दबदबा है, इसलिए भारत काे स्थानीय स्तर पर इससे जुड़ा अन्वेषण बढ़ाने और आयात पर अपनी निर्भरता कम करने की जरूरत है. दूसरा है, डिजिटल कने्निटविटी. यह एआई के लिए ऑ्नसीजन की तरह है.
जैसे-जैसे दुनिया एआई काे आत्मसात करने और उसकाे नियंत्रित करने के लिए खुद काे संगठित कर रही है, डिजिटल कने्निटविटी में निवेश महत्वपूर्ण साबित हाेता जा रहा है. माना जाता है कि समुद्र के अंदर केबल बिछाने और सैटेलाइट कने्निटविटी जैसे कामाें में किए जा रहे अरबाें डाॅलर के निवेश का सुफल एआई के स्मार्ट उपयाेग व प्रबंधन के रूप में निकल सकता है. इस साल दाे अन्य ‘अंडर सी केबल (इंडिया-एशिया ए्नसप्रेस और इंडिया यूराेप ए्नसप्रेस) की शुरुआत हाे रही है.कहा जा रहा है कि इससे भारत की डाटा ट्रांसमिशन की क्षमता चार गुना तक बढ़ जाएगी. यही नहीं, ये केबल देश काे दुनिया के प्रमुख बाजाराें से जाेड़ देंगी. लिहाजा, अब भारत काे यह सुनिश्चित करना हाेगा कि उसकी घरेलू क्षमताएं वैश्विक कंपनियाें द्वारा दी जा रही सेवाओं जितनी ही मजबूत हाें.तीसरा क्षेत्र है, जेनरेटिव एआई और लार्ग लैंग्वेज माॅडल.
भारत ने इंडिया एआई मिशन और सेमीकंड्नटर क्षेत्राें के लिए धनराशि बढ़ाई है. इले्नट्राॅन्निस व सूचना प्राैद्याेगिकी मंत्रालय के बजट में लगभग 50 प्रतिशत की वृद्धि की गई है. बेशक, यह आवंटन महत्वपूर्ण है, लेकिन उन्नत विनिर्माण तंत्र में निवेश बढ़ाने के लिए कई नीतिगत उपाय करने हाेंगे.प्राैद्याेगिकी काे राष्ट्रीय आर्थिक सुरक्षा का एक अहम पहलू समझना हाेगा और साइबर सुरक्षा के लिए अधिक निवेश, अधिक पूंजी और अधिक संस्थागत प्रयास की जरूरत हाेगी.एआई काे लेकर चल रही प्रतिस्पर्धा के इस दाैर में छाेटी भाषा माॅडल की आवश्यकता भी बढ़ेगी, इसलिए इस पर भी ध्यान देना जरूरी है.चाैथा है, तकनीकी जाेखिम और साइबर सुरक्षा. चूंकि परिवर्तन की लहर अपने साथ जाेखिम भी लाती है, इसलिए तकनीकी विकास के साथ-साथ खतरे भी बहुआयामी हाेते जा रहे हैं. विश्व आर्थिक मंच की वैश्विक जाेखिम रिपाेर्ट में कहा गया है कि साइबर जासूसी व युद्ध, और जैविक, रासायनिक या परमाणु हाथियाराें का आपसी संयाेजन मानव समुदाय के लिए काफी बड़ा खतरा है. -प्रांजल शमा