भारत के साथ रिश्ताें में ट्रम्प खटास क्यों घाेल रहे हैं?

27 Aug 2025 15:01:16
 
 
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इस महीने की शुरुआत में अमेरिकी राष्ट्रपति डाेनाल्ड ट्रंप ने भारत पर टैरिफ लगाने का ऐलान किया. भारतीय उत्पादाें पर 25 प्रतिशत शुल्क लगाने के साथ इसकी शुरूआत हुई. इसके तुरंत बाद रूस द्वारा तेल खरीदने पर 25 प्रतिशत अतिर्नित जुर्माना लगाने की घाेषणा भी की गई. इस तरह, भारत पर कुल 50 प्रतिशत टैरिफ लगाया गया, जिससे नए दाैर के अमेरिका-भारत संबंधाें के बिगड़ने का खतरा बढ़ गया है. दाे दशकाें से भी ज्यादा समय से अमेरिकी प्रशासन ने नई दिल्ली के साथ अपने रिश्ते काे मजबूत बनाने के लिए अथक प्रयास किए हैं. इसके लिए उसके कर्ता-धर्ताओं ने न सिर्फ पर्याप्त समय खर्च किया, बल्कि राजनीतिक संबंध बनाने व आपसी भराेसा कायम करने की भरपूर काेशिशें भी कीं. मगर राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा अचानक टैरिफ बढ़ाने से यह रफ्तार रूक सकती है.
 
अमेरिका और भारत का माैजूदा रिश्ता पिछले पांच अमेरिकी राष्ट्रपतियाें के कार्यकाल के दाैरान किए गए द्विपक्षीय प्रयासाें का परिणाम है. राष्ट्रपति बिल ्निलंग्टन की साल 2000 की ऐतिहासिक भारत यात्रा संबंधाें में एक नए युग का प्रतीक थी, ताे 2008 में ऐतिहासिक भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु करार करके राष्ट्रपति जाॅर्ज डब्ल्यू बुश ने इस रिश्ते काे नया आयाम दिया. राष्ट्रपति बराक ओबामा ने दाे बार भारत यात्रा करके इस संबंध काे और आगे बढ़ाया. अपनी पहली यात्रा में उन्हाेंने इस द्विपक्षीय रिश्ते काे ‘21 वीं सदी की निर्णायक साझेदारी’ कहा था, जाे काफी चर्चित हुआ था.यहां तक कि राष्ट्रपति डाेनाल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल में भी लाभ-हानि के तमाम भावाें के बीच गर्मजाेशी के क्षण दिखे.ह्यूस्टन में ‘हाउडी माेदी’ रैली और अहमदाबाद में ‘नमस्ते ट्रंप’कार्यक्रम इसके उदाहरण हैं.
 
मगर अपने दूसरे कार्यकाल में ट्रंप ने हलचल मचा दी है.जैसा कि सीएनएन के फरीद जकारिया कहते हैं,‘डाेनाल्ड ट्रंप की भारत के प्रति इस अचानक और अकारण आक्रामकता से उनके पिछले प्रशासन सहित’ पांच सरकाराें के तहत अपनाई गई नीतियां पलटती दिख रही हैं. अगर ऐसा ही चलता रहा.ताे यह ट्रंप के राष्ट्रपति कार्यकाल की अब तक की सबसे बड़ी रणनीतिक भूल साबित हाेगी. ऐसा क्यों हाे सकता है? यह समझने के लिए हमें भारत और अमेरिका के आर्थिक रिश्ताें की पड़ताल करनी हाेगी.दाेनाें देशाें ने 2024 में लगभग 130 अरब डाॅलर मूल्य के उत्पादाें का व्यापार किया. यह संकेत है कि हमारे आर्थिक रिश्ते काफी गहरे हैं. भारत कालीन, कपड़े, परिधान से लेकर फर्नीचर, रत्न और आभूषण तक अमेरिका काे निर्यात करता है. जिससे लाखाें भारतीय परिवाराें की राेजी-राेटी चलती है.
 
न्यूयाॅर्क टाइम्स के अनुसार, कालीन उद्याेग एक ऐसा क्षेत्र है, जाे नई व्यापार बाधाओं से खासा प्रभावित हाे सकता है क्योंकि भारत अपना करीब 60 फीसदी कालीन अमेरिका काे निर्यात करता है. इतना ही नहीं, अमेरिका काे सबसे अधिक जेनेरिक उपभाे्नताओं काे सस्ती दराें पर स्वास्थ्य सेवाएं मिल पाती हैं. फिर भी, ट्रंप प्रशासन इन दवाओं पर टैरिफ लगाने पर विचार कर रहा है, जाे 150 से 250 प्रतिशत तक बढ़ सकता है. जाहिर है, इससे दाेनाेंं देशाें की अर्थव्यवस्थाओं पर दूरगामी असर पड़ेंगे.हालांकि, ट्रंप जितना समझ रहे हैं, भारत अमेरिकी टैरिफ से उतना प्रभावित नहीं हाेगा. वह अपने जीडीपी का महज 20फीसदी निर्यात करता है, साथ ही उसके पास अपना विशाल उपभाे्नता बाजार है, जिस कारण उसकी अर्थव्यवस्था मुख्यत: घरेलू बनी हुई है. टैरिफ से नुकसान ताे हाेगा, लेकिन इससे भारत की विकास-दर शायद ही प्रभावित हाेगी.
 
यह सच है कि वर्षाें में हुई उल्लेखनीय प्रगति के बावजूद भारत और अमेरिका के काराेबारी रिश्ते अपने सर्वाेच्च स्थिति में नहीं पहुंच सके हैं. कई माैकाें पर वाशिंगटन और नई दिल्ली में व्यापार संबंधी मुद्दाें पर टकराव देखा गया है.बाैद्धिक संपदा अधिकार, कृषि सब्सिडी और बाजार तक पहुंच ऐसे ही मसले रहे हैं. यही नहीं, अमेरिका बार-बार कहता रहा है कि भारत की संरक्षणवादी नीतियाें के कारण हार्ले-डेविडसन माेटरसाइकिल से लेकर चिकित्सा उपकरणाें तक कई अमेरिकी उत्पाद भारतीय बाजार में नहीं पहुंच पाते.फिर भी, किसी अमेरिका राष्ट्रपति ने सार्वजनिक निंदा से दूरी बरती थी. मगर ट्रंप के साथ यह परंपरा बदल गई है और उन्हाेंने भारत पर ‘अमेरिका काे धाेखा’ देने जैसा आराेप मढ़ दिया है. यह किसी आवेग में नहीं, बल्कि जान-बूझकर दिया गया बयान था.
 
राष्ट्रपति के लंबे समय से व्यापार सलाहकार और टैरिफ समर्थक पीटर नवाराे ने भी फाइनेंशियल टाइम्स में लिखे अपने हालिया लेख में भारत की निंदा की. नवाराे ने भारत पर रूसी तेल के लिए ‘वैश्विक ्निलयरिंग हाउस’ की तरह काम करने, छूट पर प्रतिबंधित कच्चे तेल खरीदने और उसे रिफाइन करके विदेशाें में बेचने का आराेप लगाया. उनके मुताबिक, ‘इससे हाेने वाली आमदनी भारत के राजनेताओं के करीब ऊर्जा दिग्गजाें के पास आ जाती है, और फिर व्लादिमीर पुतिन के खजाने में. यह साेच ट्रंप के नजरिये से मेल खाती है, जाे कहते रहे हैं कि विदेशी राष्ट्र प्रतिस्पर्धी बनकर अमेरिका के खुलेपन का नाजायज फायदा उठा रहे हैंं. ट्रंप के टैरिफ से निश्चय ही भारत में समस्या पैदा हाेगी, लेकिन इस तरह की बयानबाजी कहीं गहरे घाव दे सकती है.
-फ्रैंक एफ इस्लाम, अमेरिकी उद्यमी व समाजसेवी
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