जीएसटी मेें भी माफियाओं का राज चल रहा है.देश में कराेड़ाें के जीएसटी बिल का फर्जीवाड़ा धड़ल्ले से चल रहा है. जालसाजाें द्वारा 50 लाख से 20 कराेड़ से भी ज्यादा का फर्जी बिल तैयार करते हैं. 5 प्रतिशत कमिशन पर कराेड़ाें का फर्जीवाड़ा से अपनी जेब भर रहे हैं और सरकार काे कराेड़ाें के राजस्व का भारी नुकसान करते हैं. बता दें कि बिलाें में न ताे माल हाेता और न ही काेई वास्तविक सप्लाई लेकिन कागजाें पर सब कुछ वैध दिखाया जाता है.वहीं दूसरी ओर जीएसटी से देश की जनता बेहद दुखी और परेशान है. देश में जीएसटी चाेरी के संगठित नेटवर्क का खुलासा हुआ है. सूत्राें के अनुसार दिल्ली के वजीरपुर इंडस्ट्रियल एरिया में स्थित एक जर्जर फैक्ट्री के भीतर फर्जी जीएसटी बिलाें का काराेबार चल रहा था.
बाहर से देखने पर यह जगह किसी बंद गाेदाम जैसी नजर आती है, लेकिन अंदर प्रवेश करते ही यह फर्जी बिल बनाने का अड्डा साबित हुई. सूत्राें के अनुसार जांच में सामने आया कि यहां 50 लाख से लेकर 20 कराेड़ तक के फर्जी जीएसटी बिल मात्र 5% कमीशन पर तैयार किए जाते हैं. बिलाें में न ताे माल हाेता है और न ही काेई वास्तविक सप्लाई, लेकिन कागजाें पर सब कुछ वैध दिखाया जाता है. इस चालबाजी से काराेबारी लाखाें रुपये बचा लेते हैं और सरकार काे भारी राजस्व नुकसान हाेता है. सूत्राें अनुसार जांच टीम के कैमरे पर एक्सपाेज़ इस पूरे रैकेट काे दिखाया कि किस तरह जीएसटी माफिया एक पुरानी फैक्ट्री के भीतर कागजाें का खेल खेलकर हर महीने हजाराें कराेड़ की टैक्स चाेरी काे अंजाम दे रहे हैं. इससे हमारी सरकार बे-फिक्र है. विशेषज्ञाें के अनुसार, यहबल्कि ईमानदार काराेबारियाें काे भी प्रतिस्पर्धा में पीछे धकेल रहा है. हालांकि सरकार लगातार फर्जी बिलिंग पर नकेल कसने के प्रयास कर रही है, लेकिन जांच रिपाेर्ट बताती है कि ऐसे गैंग अभी भी सक्रिय हैं.
यह खुलासा एक बार फिर इस बात की पुष्टि करता है कि जीएसटी चाेरी राेकने के लिए सख्त निगरानी और त्वरित कार्रवाई बहुत ही जरूरी है. गुड्स एंड सर्विस टैक्स यानी (जीएसटी) एक ऐसा अप्रत्यक्ष कर है जिसे हम किसी भी सामान या सेवा पर खरीदते समय अदा करते हैं. काेई व्यापारी एक कंपनी से सामान खरीदता है और उस पर जीएसटी चुकाता है. बाद में वही व्यापारी जब उस सामान काे बेचता है ताे वह ग्राहक से जीएसटी वसूलता है. अब व्यापारी का फायदा यह है कि उसे दाेबारा टैक्स नहीं देना पड़ता. वह पहले दिए गए टैक्स (खरीद पर) काे अपनी देनदारी से घटा सकता है. इसे इनपुट टैक्स क्रेडिट यानी आईटीसी कहते हैं, इसी के जरिए जीएसटी फ्राॅड हाे रहा है. सूत्राें के अनुसार राजीव नाम का एक शख्स एक टैक्स कंसल्टेंट है, लेकिन उसकी आड़ में फर्जी बिलिंग और इनपुट क्रेडिट का रैकेट चला रहा है. उसे पता है कि कराेड़ाें के बिल अलग-अलग कंपनियाें के नाम पर बांटकर कैसे दिखाए जा सकते हैं. रैकेट न केवल सरकारी खजाने काे चपत लगा रहा है.