मनुष्य का इतिहास प्रतिपल सघन हाेता जाता है, वह किसी महाघटना की ओर गतिमान है. इसलिए जैसे-जैसे वह महाघटना करीब आती है, वैसे -वैसे और भी अधिक अर्जुनाें के जागने की सम्भावना प्रगाढ़ हाेती जाती है.एक बहुत बड़ा रूपांतरण करीब है, जब बहुत से बीज एक साथ टूटेंगे. और जब बहुत से वृक्ष एक साथ फूलाें से लद जाएँगे. वसंत आने काे है. और जैसे सुबह आने के पहले अंधकार बहुत गहन हाे जाता है, ऐसे ही वसंत आने के पहले भी ऐसा लगता है कि सब खाे गया.बड़ी अराजकता हाे जाती है. मनुष्यता एक खास घड़ी के करीब पहुँच गई है.जैसा मैंने पहले तुम्हें कहा कि हर पच्चीस साै वर्ष में मनुष्यता एक घड़ी के करीब आती है.
कृष्ण के समय में आई. फिर पच्चीस साै साल बाद बुद्ध और महावीर के समय मेें आई. अब फिर पच्चीस साै साल पूरे हाे रहे हैं, अब फिर वह घड़ी करीब आ रही है. आने वाले पच्चीस वर्ष मनुष्यता के जीवन में बड़े चिरस्मरणीय रहेंगे. इन पच्चीस वर्षाें में हजाराें बीज फूटेंगे और हजाराें व्य्नित जाे साधारण थे, अचानक अर्जुन और जनक हाे जाएँगे. तुम अगर चूके ताे अपने ही कारण चूकाेगे. फिर तुम पच्चीस साै वर्ष तक पछताओगे.्नयाेंकि वैसी घड़ी फिर तब आती है, जब पच्चीस साै वर्ष में एक वर्तुल पूरा हाेता है.जैसा पृथ्वी एक वर्ष में च्नकर लगाती है सूर्य का ऐसे सूर्य पच्चीस साै वर्षाें में किसी महासूर्य का एक च्नकर पूरा करता है, उसका एक वर्ष पूरा हाेता है. वह एक वर्ष जब पूरा हाेता है, ताे सारे जीवन में बड़ी उलथ-पुथल हाेती है, सब अतीत व्यर्थ हाे जाता है.
सब मूल्य टूट जाते हैं. वैसी ही घड़ी कृष्ण के समय में थी.सब मूल्य टूट गये थे, अधर्मी का जीतना मालूम पड़ रहा था; युधिष्ठिर भीख माँगते फिर रहे थे. धर्म भीख माँग रहा था, अधर्म सिंहासन पर था.कृष्ण के वचन बड़े महत्वपूर्ण है कि ‘ जब -जब अधर्म बढ़ जाता है और धर्म की हानि हाेती है, मैं लाैट आता हूँ. असाधु काे विनष्ट करने, साधु काे बचाने.’ काेई कृष्ण लाैट आते हैं-ऐसा नहीं हैं. तब तुम भूल गये, तुम समझे न बात. हर पच्चीस साै वर्ष में वैसी अराजक घड़ी आती है और कृष्णचेतना का जन्म हाेता है. कृष्ण नहीं लाैटते, कृष्ण चेतनाकभी क्राइस्ट के रूप में, कभी बुद्ध के रूप में-वही चेतना लाैटती है. क्योंकि चेतना में ताे काेई गुण भेद नहीं है.