जैन धर्म की प्रत्येक आराधना को क्षमापना रुप में मनाया जाता है. धर्म की आराधना का मुख्य संदेश है, सभी जीव से क्षमा मांगे, सभी जीव को क्षमा करे और खुद क्षमा में बने रहे. दुनिया का सिर्फ एक मात्र जैन धर्म ऐसा है कि, जिसमें जीव मात्र की भूल को माफ करने का बताया गया है, किसीके पास माफी मांगने से मन हल्का हो जाता है और किसी को माफ करने से जीवन हल्का फूल बन जाता है. मनुष्य जीवन का प्राण है धर्म, धर्म का प्राण है भाव, भाव का प्राण है समर्पण, समर्पण का प्राण है पर्यूषण, पर्यूषण का प्राण है संवत्सरी और संवत्सरी का प्राण है क्षमापना. जैन धर्म की आराधना के माध्यम से मनुष्य को अपने जीवन में सभी प्रकार के भार से मुक्त होने का सिखाया गया है ताकि इस जीवन से आत्मा का निश्चित तौर पर कल्याण हो सके, खास करके प्रत्येक मानव के जीवन में पापों का भार, गलतियों का भार, किसीकी बातों का भार और अशुभ कर्मों का भार बना हुआ रहता है, इन सभी प्रकार के भार से मुक्त होना ही ‘मिच्छामि दुक्कडम्' का मार्ग है और पर्यूषण की सफलता का सार है.
जैन धर्म के शास्त्रो में क्षमा पांच प्रकार की बताई गई है -
1. क्षमा हार्दिक होनी चाहिए
2. क्षमा बिन शरती होनी चाहिए
3. क्षमा सभी की होनी चाहिए
4. क्षमा चिरंजीव होनी चाहिए और
5, ज्ञान गर्भित होनी चाहिए.
मैं सदैव लोगों को कहता हूं कि - रोज करो परमात्मा की प्रार्थना, रोज करो अद्भूत दिव्य साधना, रोज करो भव्य धर्म आराधना, रोज करो सर्व जीवों की क्षमापना |
* प्रार्थना, साधना, आराधना और क्षमापना इन चार को हमारे जीवन के मुख्य चार स्तंभ के रुप स्थापित करते हुए हम अपने भविष्य को उज्वल बनाए, आत्म तत्व को निर्मल बनाए, भाव जगत को शुभ बनाए और अपने आपसी व्यवहार को पवित्र बनाए यही शुभ कामना. अंत में - मत करना किसी की आलोचना, शुभ कार्य की करना अनुमोदना, फैलाओ सत्कार्य की शुभ भावना, सभी जीवों से करना दिल से क्षमापना |
- पू. जे. पी. गुरुदेव सुजय गार्डन जैन संघ, मुकुंदनगर, पुणे