पुणे, 13 सितंबर (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क) निरंतर बदलते आज के दौर में सशस्त्र बलों की परिचालन क्षमताओं को बढ़ाने के लिए सार्वजनिक एवं निजी उद्योग, डीआरडीओ जैसे अनुसंधान संस्थानों और अकादमिक जगत के बीच सहयोग बढ़ाने का आह्वान रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह ने किया है. वे शुक्रवार (12 सितंबर) को पुणे, महाराष्ट्र में दक्षिणी कमान द्वारा आयोजित प्रौद्योगिकी, अनुसंधान और रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र का तालमेल इस विषय पर आयोजित स्ट्राइड सेमिनार के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे. वर्तमान तकनीकी व्यवधान न केवल युद्ध की प्रकृति को, बल्कि उद्योग के व्यवसाय को भी तेजी से बदल रहा है, उन्होंने सभी हितधारकों से नवीनतम तकनीकी रुझानों से अवगत रहने और आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मिलकर काम करने का आह्वान किया. रक्षा सचिव ने इस बात पर जोर दिया कि तकनीकी श्रेष्ठता और औद्योगिक ताकत अक्सर युद्ध के परिणाम निर्धारित करती है, और यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि रक्षा उद्योग हमारे बाकी विनिर्माण क्षेत्र के साथ गति से बढ़े ताकि विकसित भारत और 2047 तक 30 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य प्राप्त किया जा सके. उन्होंने आगे कहा, यह बदलाव नवाचार का एक विकसित राष्ट्र बनने, भारत की स्टार्टअप संस्कृति को बढ़ाने, हमारे औद्योगिक आधार को व्यापक बनाने, हमारे सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण की हिस्सेदारी बढ़ाने और रोजगार पैदा करने और प्रौद्योगिकी के दोहरे उपयोग से होने वाले लाभों के व्यापक मुद्दे के लिए महत्वपूर्ण है. राजेश कुमार सिंह ने बताया कि चल रहे संघर्षों के परिणामस्वरूप दुनिया भर में प्रतिस्पर्धी लोकलुभावनवाद और आर्थिक संरक्षणवाद को बढ़ावा मिला है, साथ ही आर्थिक विखंडन, बहुपक्षीय संस्थाओं का पतन और राष्ट्रवाद की बढ़ती लहर भी देखी गई है. इस संदर्भ में, उन्होंने कहा, हमारी सॉफ्ट पॉवर को समर्थन देने की आवश्यकता है क्योंकि हार्ड पॉवर अधिकाधिक महत्वपूर्ण होती जा रही है. रक्षा सचिव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा तकनीकी दौड़ में देश को आगे बनाए रखने के लिए उठाए गए कदमों का जिक्र किया. इन उपायों में रक्षा उपकरण खरीद नियमावली 2009 और रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया 2020 में संशोधन शामिल हैं. ताकि उन्हें अधिक गतिशील, सक्रिय, कम प्रक्रिया-भारी और परिणामों पर अधिक केंद्रित बनाया जा सके. उन्होंने कहा, निजी क्षेत्र और स्टार्ट-अप के लिए प्रवेश बाधाओं को कम करने, जमीनी स्तर पर नवाचार को प्रोत्साहित करने और प्रतिस्पर्धी बोली सुनिश्चित करने की आवश्यकता है. इसका उद्देश्य भारत के रक्षा औद्योगिक आधार को व्यापक और विविधतापूर्ण बनाना है. रक्षा क्षेत्र को मजबूत बनाने और इसे आत्मनिर्भर बनाने में निजी उद्योग की भूमिका की सराहना करते हुए, राजेश कुमार सिंह ने उनसे अनुसंधान एवं विकास तथा विनिर्माण क्षमता में निवेश बढ़ाने का आग्रह किया. उन्होंने कहा कि जब तक निजी क्षेत्र में आगे बढ़ने और निवेश करने की इच्छाशक्ति नहीं होगी, तब तक रक्षा क्षेत्र सशस्त्र बलों के लिए आवश्यक नवाचार और क्षमता का वह स्तर प्राप्त नहीं कर पाएगा| उन्होंने कहा, रक्षा एक ऐसा क्षेत्र है जहां आपको छिटपुट आधार पर ऑर्डर मिलते हैं, लेकिन अगर आपके पास तकनीक और इंजीनियरिंग क्षमता है, तो आप घरेलू और निर्यात ऑर्डर के संयोजन के माध्यम से खुद को बनाए रख पाएंगे. अपने संबोधन में, दक्षिणी कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल धीरज सेठ ने रक्षा क्षमताओं में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए एक समग्र राष्ट्र दृष्टिकोण के महत्व पर प्रकाश डाला. इस कार्यक्रम में सशस्त्र बलों के प्रतिष्ठित विशेषज्ञ, पूर्व सैनिक, विद्वान, डीआरडीओ, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, निजी उद्योग और शिक्षा जगत के प्रतिनिधि शामिल हुए, जिसका उद्देश्य अनुसंधान एवं विकास, उत्पादन, रखरखाव और नवाचार को शामिल करते हुए एक स्वदेशी रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र का रोडमैप तैयार करना था. सेमिनार में प्रमुख विषयों पर आकर्षक पैनल चर्चाएं हुईं.
अत्याधुनिक स्वदेशी उपकरण प्रदर्शनी का आयोजन इस कार्यक्रम के एक भाग के रूप में एक जीवंत उपकरण प्रदर्शनी का आयोजन किया गया, जिसमें अत्याधुनिक स्वदेशी नवाचारों का प्रदर्शन किया गया और भविष्य के लिए तैयार क्षमताओं के निर्माण की दिशा में सहयोग और साझेदारी को बढ़ावा दिया गया. सेमिनार में आत्मनिर्भर भारत के विजन को आगे बढ़ाने, हितधारकों के बीच तालमेल को बढ़ावा देने और क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर राष्ट्रीय रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने के लिए दक्षिणी कमान की प्रतिबद्धता की पुष्टि की गई.
सार्वजनिक प्रोजेक्ट और शिक्षा जगत के बीच सहयोग
राजेश कुमार सिंह ने कहा रिवर्स इंजीनियरिंग और अकादमिक अनुसंधान के लिए उद्योग वित्तपोषण के माध्यम से विशिष्ट तकनीकों को तेजी से आगे बढ़ाना. स्वदेशी नवाचार को उत्प्रेरित करने में डीआरडीओ की भूमिका को मजबूत करना. निजी उद्योग, सार्वजनिक उपक्रमों और शिक्षा जगत के बीच बेहतर सहयोग के माध्यम से रक्षा विनिर्माण विकास में तेजी लाना जरूरी है.