जब तक आप दुनिया से जुड़े हुए रहेंगे तब आप अपनी भीतरी दुनिया की मस्ती का अनुभव नहीं कर पायेंगे क्योंकि दुनिया के लोगों का दृष्टिकोण बहुत ही विचित्र रहता है. उनकी बातों पर जब तक आप ध्यान देते रहेंगे तब तक आप अपने मन की प्रसन्नता, स्थिरता, शांति और समाधि प्राप्त नहीं कर पायेंगे. यदि आपको सच्चे रास्ते पर चलना है तो दुनियादारी से अलिप्त होना होगा. एक बार एक संन्यासी साधु महात्मा किसी एक नदी किनारे पर पत्थर का तकिया बनाकर सो रहे थे. इतने में नदी से पानी भरने के लिए वहां से चार स्त्रियां निकलीं, जैसे ही संत को पत्थर का तकिया बनाकर सोए हुए देखा तो एक स्त्री ने कहा, साधु तो बन गए पर मोह नहीं छूटा है, तकिया के बगैर नींद नहीं आ रही है, इसलिए तो पत्थर का तकिया बनाकर सो रहे हैं. यह सुनकर साधु ने पत्थर फेंक दिया, यह देखकर दूसरी औरत बोली - देखो, दुनियाभर का गुस्सा तो इन्हीं के दिमाग में भरा है. इतना भी सुन नहीं सकते. साधु ने सोचा, अब मैं क्या करु ? इतने में तीसरी औरत ने कहा, महाराज ! दुनिया तो बोलती रहे, आप अपने हरि भजन में ध्यान केंद्रित करेें. तब चौथी औरत ने कहा, आप ने सब कुछ छोड़ा परन्तु चित्त की चंचलता नहीं छोड़ी, वरना इन बातों को सुनने की और इसके बारे में सोचने की जरुरत ही कहां पड़ती. Moral : Finally, संत ने सोचा कि, यह दुनिया बड़ी जालिम है, यहां तो सब अपने दृष्टिकोण से ही सामनेवाले को देखते हैं पर मूल तक, सच्चाई तक तो कोई नहीं पहुंच पाता, यही तो दुनिया का कड़वा सच है.