व्नफ कानून, फैसला और उभरे कुछ जरुरी सवाल?

22 Sep 2025 16:15:53
 
 

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व्नत कानून पर सर्वाेच्च न्यायालय ने पूरी तरह से राेक लगाने पर इन्कार करते हुए जाे अंतरिम आदेश जारी किया है, उसके तीन बड़े पहलू हैं. पहला, अंग्रेजाें ने साल 1923 में इस बारे में कानून बनाया था. सुप्रीम काेर्ट के जजाें ने व्नफ संपत्तियाें के कुप्रबंधन के आंकड़ाें का सिलसिलेवार अध्ययन करने के बाद कहा कि 100 साल पहले 1923 के कानून में संपत्तियाें की जांच-पड़ताल के लिए जाे प्रावधान थे, उन्हें अभी क्यों नहीं लागू किया जा सकता? चरणजीत लाल चाैधरी बनाम भारत संघ मामले में 1950 के संविधान पीठ के फैसले के अनुसार, जजाें ने कहा कि पूर्व धारणा हमेशा कानून की संवैधानिकता के पक्ष में हाेती है. चुनाैती देने वालाें की जिम्मेदारी है कि वे साबित करें कि संसद से पारित कानूनाें से माैलिक अधिकाराेंं का स्पष्ट उल्लंघन हुआ है.
 
दूसरा, सुप्रीम काेर्ट के अनुसार,1923 के कानून में व्नफ के पंजीकरण की आवश्यकता बताई गई थी. बंगाल के 1934 के कानून के अनुसार, व्नफ संपत्तियाें के बेहतर प्रबंधन और भ्रष्टाचार काे राेकने के लिए राज्य सरकार की जवाबदेही तय की गई थी. साल 1995 के कानूनी संशाेधन में व्नफ संपत्तियाें के रजिस्ट्रेशन का प्रावधान था, जिसे 2013 में मनमाेहन सरकार ने खत्म कर दिया था.
इससे व्नफ बाेर्ड काे मनमानी के अधिकार मिल गए थे और सिविल अदालताें के क्षेत्राधिकार में कटाैती की गईं थी. साल 2025 के कानूनी बदलाव से व्नफ संपत्तियाें के प्रबंधन में पारदर्शिता और बेहतर प्रबंधन काे लाने का प्रयास किया गया है.तीसरा, यह अंतरिम आदेश है. जाे अंतिम सुनवाई में बहस या निर्णय काे प्रभावित नहीं करेगा.
 
शुरुआत में यह मामला चीफ जस्टिस संजीव खन्ना के पास सुनवाई के लिए आया, जाे रिटायर हाे गए. अब चीफ जस्टिस गवई की दाे जजाें की बेंच ने अंतरिम आदेश जारी किया है, जाे नवंबर में रिटायर हाे जाएंगे. इन जटिल मामलाें में दाे जजाें के बीच मतभेद की स्थिति बनने पर तीसरे जज के बहुमत से फैसला हाे सकता है. इसलिए इस तरह के मामलाें की सुनवाई के लिए न्यूनतम तीन जजाें की बेंच का गठन हाेना चाहिए. इस बारे में राज्याें काे नियम बनाने हैं.कानून के समर्थन और विराेध में कई राज्य सरकारें अर्जी लगा सकती हैं. नागरिकता कानून, पूजा स्थल, उपासना कानून जैसे अनेक मामलाें में पिछले कई वर्षाें से सर्वाेच्च न्यायालय में मुकदमेबाजी हाे रही है. ऐसे में व्नफ मामले के निपटारे में भी कई वर्ष लग सकते हैं. लेकिन अंतिम फैसला आने तक अंतरिम आदेश के अनुसार, व्नफ कानून के अधिकांश प्रावधानाें पर सिलसिलेवार तरीके से अमल हाे सकता है.
 
मामले के जल्द निपटारे और न्यायिक अनुशासन काे सुनिश्चित करने के लिए इस मामले की सुनवाई के लिए चीफ जस्टिस द्वारा पांच सदस्यीय संविधान पीठ का गठन बेहतर विकल्प हाे सकता है.व्नफ बिल पर संसद की संयु्नत समिति में लंबी बहस हुई, जहां सरकार ने 14 संशाेधन स्वीकार किए थे. कई संशाेधन जाे स्वीकार नहीं किए, उनके बारे में सुप्रीम काेर्ट में याचिकाएं दायर हुई थीं. याचिकाकर्ताओं के अनुसारनए कानून से धार्मिक स्वतंत्रता के साथ अनेक माैलिक अधिकाराें का हनन हाे रहा है. उन सभी दलीलाें का सरकार ने जवाब दिया, जिसके बाद जजाें ने 128 पेज का भारी- भरकम अंतरिम आदेश जारी किया है.कानून के विराेधियाें के अनुसार,अन्य धर्माें की संपत्तियाें के प्रबंधन में सरकार का हस्तक्षेप नहीं है.
 
ऐसे में, मुस्लिम धर्म से जुड़ीं संपत्तियाें के व्नफ बाेर्ड में गैर-मुस्लिमाें की नियु्नित समानता के साथ धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकाराें का उल्लंघन है.केंद्र सरकार ने सुनवाई के दाैरान आश्वासन दिया था, जिसके अनुसार, गैर-मुस्लिम सदस्य अधिकतम 2-4 ही रहेंगे. सरकार की बात काे लिखित ताैर पर शामिल करते हुए अंतरिम आदेश में कहा गया है कि केंद्रीय व्नफ परिषद में अधिकतम चार बाेर्डाेर् में अधिकतम तीन गैर-मुस्लिम सदस्य हाे सकते हैं.काेर्ट ने कहा कि जहां तक संभव हाे सीईओ मुस्लिम हाेना चाहिए. दूसरी आपत्ति के अनुसार, दानदाता काे पांच साल से अधिक मुस्लिम हाेने की शर्त और गैर-मुस्लिमाें काे व्नफ के माध्यम से दान से वंचित करना भेदभावपूर्ण है.
 
इस बारे में आदेश में कहा गया है कि जब तक राज्य सरकारें यह तय करने के लिए नियम नहीं बनातीं कि काेई व्य्नित मुस्लिम है या नहीं, तब तक इस कानून पर अमल नहीं हाेगा.व्नफ का मुद्दा धर्मांतरण से भी जुड़ा है.जबरन और प्रलाेभन से धर्मांतरण राेकने के लिए हरियाणा, मध्यप्रदेश राजस्थान और उत्तराखंड के कानूनाें काे चुनाैती देने वाली कुछ याचिकाओं काे सुप्रीम काेर्ट ने हाईकाेर्ट के पास से अपने पास ट्रांसफर करने का आदेश जारी किया है.तीसरी आपत्ति के अनुसार, व्नफ कानून में कले्नटर के अधिकाराें और सरकारी हस्तक्षेप से व्नफ की जमीन सरकारी दर्ज हाे जाएगी. केंद्र सरकार ने सुनवाई के दाैरान कहा था कि कले्नटर केवल प्रारंभिक जांच करता है और अंतिम फैसला ट्रिब्यूनल या काेर्ट का हाेता है. उसके अनुसार, सर्वाेच्च न्यायालय के आदेश में कहा गया है कि कले्नटर काे नागरिकाें के संपत्ति अधिकाराें पर फैसलाेें करने की अनुमति नहीं दी जा सकती. -विराग गुप्ता
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