पुणे, 25 सितंबर (आ.प्र.) यशवंत सहकारी शुगर फैक्ट्री की जमीन खरीदते समय संबंधित सभी वित्तीय संस्थाओं के बकाए, कर्ज, माप-तौल और जमीन के कब्जे जैसी सभी कानूनी प्रक्रियाओं की जाँच कर ही लेन-देन करने का निर्णय मंगलवार की मासिक बैठक में लिया गया था. लेकिन इस बैठक की कार्यवाही पूरी होने से पहले ही अगले दिन बुधवार को बाजार समिति ने 50 लाख रुपये यशवंत फैक्ट्री के खाते में जमा कर दिए. न्यायालय में मामला लंबित रहते हुए सीधे धनराशि हस्तांतरित करने से निदेशक मंडल की मुश्किलें बढ़ने के संकेत हैं. उच्च न्यायालय में दायर रिट याचिका के निर्णय के अधीन रहते हुए, थेऊर स्थित यशवंत सहकारी शुगर फैक्ट्री की लगभग 99.27 एकड़ जमीन को 299 करोड़ रुपये में पुणे बाजार समिति के उपबाजार के लिए खरीदने की राज्य सरकार ने अनुमति दी है. इस संबंध में शासनादेश भी जारी हुआ है. लेकिन, विपणन संचालक ने अब तक इस लेन-देन के लिए समिति को अनुमति प्रदान नहीं की है. इसी पृष्ठभूमि में मंगलवार को हुई निदेशक मंडल की बैठक में नियमानुसार और कानूनी प्रक्रिया पूरी करके ही लेन-देन करने की बात कुछ निदेशकों ने रखी थी. इसके अनुसार, सातबारा पर दर्ज सभी बकाया चुकता करने, सरकारी माप-तौल से जमीन का कब्जा लेकर जितनी जमीन मिलेगी उतना ही भुगतान करने और सभी कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के बाद ही खरीदखत करने का निर्णय हुआ था, ऐसा सभापति प्रकाश जगताप ने स्पष्ट किया था. बैठक में 50 लाख रुपये भुगतान करने का कोई निर्णय नहीं लिया गया था, ऐसा कुछ निदेशकों का कहना है. सामान्यतः मासिक बैठक के बाद बैठक की कार्यवाही टाइप कर ठहराव की प्रति क्रियान्वयन के लिए दी जाती है और उसके बाद संबंधित विभाग आगे की कार्यवाही करता है. लेकिन इस प्रक्रिया को दरकिनार कर और समझौता करार से पहले ही बाजार समिति ने सीधे 50 लाख रुपये यशवंत फैक्ट्री के नाम पर आरटीजीएस कर दिए, जिससे हैरानी व्यक्त की जा रही है.
संबंधित विभाग के कर्मचारी मुश्किल में पड़ सकते हैं
सभी नियमों की अनदेखी कर बाजार समिति ने फैक्ट्री के खाते में 50 लाख रुपये जमा किए है. आगे चलकर इसी प्रकार करोड़ों रुपये हस्तांतरित किए जाने की संभावना है. लेकिन इस प्रक्रिया में बाजार समिति के संबंधित विभाग के कर्मचारी मुश्किल में फंस सकते हैं और उनकी नौकरी पर भी संकट आ सकता है.
सभापति और सचिव ने साधा मौन
राशि हस्तांतरित करने के बारे में बाजार समिति के सभापति प्रकाश जगताप और सचिव डॉ. राजाराम धोंडकर से संपर्क साधने का प्रयास किया गया, लेकिन सफलता नहीं मिली. फिलहाल इस विषय पर दोनों मौन हैं. वहीं, विपणन संचालक विकास रसाल से पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यशवंत फैक्ट्री को राशि हस्तांतरित करने के लिए हमारे कार्यालय की ओर से किसी भी प्रकार का पत्रव्यवहार नहीं किया गया है.